किशनगंज : नवरात्रि के पांचवे दिन करे नव दुर्गा के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

किशनगंज, 19 अक्टूबर (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, नवरात्रि के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवे स्वरुप मां स्कंदमाता की पूजा विधि विधान एवं वैदिक मंत्रोचार के साथ हुई। मां दुर्गा के दर्शन एवं पूजन के लिए सुबह से दुर्गा मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। शहर के प्रसिद्ध बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर, रुईधाशा महाकाल मंदिर सहित कई मंदिरों में मां दुर्गा की आराधना की गयी। श्रद्धालु मां दुर्गा के मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। वहीं घरों में भी कलश स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा आराधना की जा रही है। गुरुवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि मां स्कंदमाता को लाल रंग अतिप्रिय हैं। इसलिए पूजा अर्चना के क्रम में भक्तों को कुमकुम, अक्षत और फल के साथ लाल फूल और फल माता के चरणों में अर्पित करनी चाहिए। घी का दीपक जलाने के साथ केले का भोग भी लगाए। गुरु साकेत ने बताया कि मां स्कंदमाता की गोद में भगवान स्कंद बाल रूप में विराजित हैं। मां की चार भुजाएं हैं और कमल पुष्प पर विराजमान रहती हैं। इन्हें विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां सकंदमाता की अराधना करने से भक्तों की समसत मनोकामनाएं पूरी होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी स्कंदमाता की अराधना लाभकारी माना गया है। गुरु साकेत कहते है मां स्कन्दमाता कि पूजा करने से व्यक्ति के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कन्दमाता कहा गया है भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं, मां की चार भुजाएं हैं जिसमें दोनों हाथों में कमल के पुष्प हैं। देवी स्कन्दमाता ने अपने एक हाथ से कार्तिकेय को अपनी गोद में बैठा रखा है और दूसरे हाथ से वह अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। कहा गया है कि देवी स्कंदमाता की कृपा से ही कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत जैसी रचनाएं हुई हैं। मां स्कन्दमाता को वैसे तो जौ-बाजरे का भोग लगाया जाता है, लेकिन शारीरिक कष्टों के निवारण के लिए माता को केले का भी भोग लगाया जाता है। गुरु साकेत ने बताया कि इस दिन स्नानादि कर सभी कार्यों से निवृत्त हो जाए। इसके बाद मां की प्रतिमा एक चौकी पर स्थापित करके कलश की स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका भी स्थापित करें। इसके बाद स्कंदमाता को अक्षत्, धूप, गंध, पुष्प अर्पित करें। फिर पान, सुपारी, कमलगट्टा, बताशा, लौंग का जोड़ा, किशमिश, कपूर, गूगल, इलायची, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य भी चढाया जाता है। मां की विधिवत पूजा करें, मां की कथा सुनें और मां की धूप और दीप से आरती उतारें। उसके बाद मां को केले का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में केसर की खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें।