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किशनगंज : महाकाल भू-लोक के शासक है: गुरु साकेत

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।

किशनगंज, 16 अप्रैल (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, भगवान शिव की गणना भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में होती है, किन्तु महाकाल का महात्म केवल इतना ही नहीं है, ब्रम्हाण्ड को मुख्यतः तीन लोकों में विभाजित किया गया है आकाश, पृथ्वी एवं पाताल। इन तीनों लोकों का शासन सर्व व्यापि सदा शिव अपने त्रिगुणात्मक स्वरूप से इस प्रकार करते है-आकाशे तारकं लिंग, पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालं, लिंग त्रय नमोऽस्तुते।। आकाश में तारका लिंग तथा पाताल में हाटकेश्वर पूजित है। महाकाल भू-लोक के शासक है। योगी जन इन तीनों शिव लिंगों का स्मरण करके इन्हें नमस्कार करते हैं तो उनके द्वारा महादेव की मानस पूजा सम्पन्न हो जाती है। मंगलवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि स्कन्ध पुराण में भगवान शिव के महाकाल वन में निवास तथा यहां से सृष्टि की संरचना का शुभारंभ करने की कथा है। स्कन्ध पुराण के ब्रम्होत्तर खण्ड में राजा चन्द्र सेन एवं श्रीकर गोप की शिव भक्ति तथा महाकालेश्वर की महिमा का गुणगान मिलता है। पुरातत्य तथा प्राचीन इतिहास के अध्ययन से यह सिद्ध होता है कि शिव की प्रतिमा से भी अधिक प्राचीन लिंग पूजन तथा लिंग का महत्व रहा है। गुरु साकेत कहते है कि लिंग एक रस, एक गुण एक परम तत्व पर ब्रह्म सृष्टि, पंचतत्व सबका प्रतीक है और नन्दी संसार के धर्म का तथा परब्रह्म क़ी उपासना का प्रतीक है। इसलिए शिव लिंग के सामने अवस्थित रहता है। शिव के तेज का सहन करता है संभालता है। इसलिए प्रायः देखा गया है कि जहां शिव लिंग के सामने नन्दी नहीं होता वहां का लिंग अति उग्र हो जाता है। महाकाल लिंग के समक्ष नंदी नही होते हैं, जिस कारण वे अति उग्र है। शिव पुराण, वायु पुराण, कुर्म पुराण, लिंग पुराण, स्कन्ध पुराण (संहितात्मक तथा खण्डात्मक) वामन पुराण में तो विशेष रूप से आद्योपान्त इन्हीं की महिमा व्याप्त है। इन पुराणों इत्यादि सभी के अनुसार महाकाल (शिव) योगी राज हैं। सबमें शिव लिंग एकोऽहं द्वितीयो नास्ति का प्रतीक है तथा इस पर जल छोड़ने का अर्थ ब्रह्म में प्राण लीन करना है। गुरु साकेत ने बताया कि लिंग पुराण में महाकाल को मृत्यु लोक के स्वाभी के रूप में स्तवन किया गया है “मृत्यु लोके महाकालं लिंग रूप नमोऽस्तुते। “तंत्र शास्त्र की दृष्टि में दक्षिण मुखी शिवलिंग अति उग्र होने से प्रचण्ड शक्तिशाली एवं त्वरित फलदायी माना जाता है। भगवान महाकाल स्वरूप अपने आप में पूर्ण क्रोधमय स्वरूप है। उनके इसी क्रोध और प्रचण्डता से साथक के शत्रु भयभीत एवं निस्तेज हो जाते हैं। गुरु साकेत कहते है कि भगवान महाकाल अपने साधक की हर संकट से रक्षा करते हैं, खतरे की घड़ी में उसके हर सम्भावी खतरों से रक्षा करते हैं। यदि शत्रु आपकी जीवन के पीछे पड़ गये हों तो भी महाकाल की साधना से उनकी मति पलट जा सकती है और वे शांत हो जाते है। किसी प्रकार की कोई असामयिक दुर्घटना नही होती। ऐसा माना जाता है कि महाकाल के समक्ष महामृत्युंजय जप करने से आयी हुई मृत्यु भी उलटे पैर वापस लौट जाती है। रोगी स्वस्थ्य हो कर दीर्घायु हो जाता है। मरणशय्या पर पड़ा व्यक्ति भी नया जीवन पाता है। महाकाल काल चक्र के प्रवर्तक है “काल चक्र प्रवर्तको महाकालः प्रतापनः। “फाल्गुण मास कृष्ण पक्ष षष्टी से चर्तुदशी तिथि तक उज्जैन नगरी में महाकालेश्वर नवरात्र हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसी प्रकार महाकाल मंदिर किशनगंज में भी फाल्गुन कृष्ण पक्ष के षष्ठी से फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तक महाकाल नवरात्र मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालु जलाभिषेक कर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की याचना करते हैं। महाकाल अपने प्रत्येक भक्त को पिता स्वरूप सर्वत्र रक्षा करते हैं। तथा भक्तों की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण करते हैं। महाकाल की आराधना से अकाल मृत्यु का योग नष्ट हो जाता है।

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