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किशनगंज : नवरात्र के सातवें दिन की गई मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना

या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रुपेण संस्थिता-नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:किशनगंज, 21 अक्टूबर (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, नवरात्र के सातवें दिन नवदुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा अर्चना मंदिर और घरों में विधि-विधान पूर्वक किए गए। शनिवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि शक्ति स्वरूप मां कालरात्रि शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाली हैं। मां कालरात्रि वह देवी है जिन्होंने मधु कैटभ नामक असुर राक्षक का वध किया था। देवी कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला है। मां का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है। ये अपने तीनों बड़े-बड़े उभरे हुए नेत्रों से भक्तों पर अनुकम्पा की दृष्टि रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। साथ ही इनकी पूजा करने वाले भक्तों को भूत, प्रेत और बुरी शक्ति का भय नही सताता है। गुरु साकेत ने बताया कि नवरात्रि में सप्तमी तिथि का विशेष महत्व रहता है। इस दिन से पूजा पंडाल में भक्तों के लिए देवी मां के दर्शन के लिए द्वार खुल गए। मां कालरात्रि की पूजा शुरु करने से पूर्व मां कालरात्रि के परिवार के सदस्यों, नवग्रहों और दशदिक्पाल को प्रार्थना कर आमंत्रित किया गया। सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवताओं की पूजा की गई। हाथों में फूल लेकर मंत्र का ध्यान किया गया। पूजा के उपरांत मां को गुड़ का भोग लगाया गया। गुरु साकेत ने बताया कि तंत्र साधना के लिए सप्तमी तिथि का बड़ा महत्व है। इसलिए सप्तमी की रात्रि को सिद्धियों की रात भी माना गया है। इस दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते है। इस दिन मां की आंखें खुल जाती है। कुंडलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे रहते हैं। वे महा सप्तमी के दिन सहस्त्रासार चक्र का भेदन करने में सफल होते हैं। शास्त्रों में मां कालरात्रि को त्रिनेत्री कहा गया है। इनके त्रिनेत्र बह्नमांड की तरह विशाल होते हैं। इनके आंखों से बिजली की तरह किरणें प्रज्वलित होती है। गले में विद्युत की चमकवाली माला है। इनकी नाक से आग की भयंकर ज्वालाएं निकलती है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाई ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान और नीचे की भुजा से अभय का आर्शीवाद प्रदान करती है। बाए ओर की दोनो भुजाओं में तलवार और खडग धारण की हुई है। माता कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है। माता कालरात्रि की विधिवत रूप से पूजा अर्चना और उपवास करने से मां अपने भक्तों को सभी बुरी शक्तियां और काल से बचाती हैं अर्थात माता की पूजा करने के बाद भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। माता के इसी स्वरूप से सभी सिद्धियां प्राप्त होती है इसलिए तंत्र मंत्र करने वाले माता कालरात्रि की विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं। माता कालरात्रि को निशा की रात भी कहा जाता है। गुरु साकेत कहते है कि असुर शुंभ निशुंभ और रक्तबीज ने सभी लोगों में हाहाकार मचाकर रखा था, इससे परेशान होकर सभी देवता भोलेनाथ के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। भोलेनाथ की बात मानकर माता पार्वती ने मां दुर्गा का स्वरूप धारण कर शुभ व निशुंभ दैत्यों का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज का भी अंत कर दिया तो उसके रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर मां दुर्गा का अत्यंत क्रोध आ गया। क्रोध की वजह से मां का वर्ण श्यामल हो गया। इसी श्यामल रूप से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज समेत सभी दैत्यों का वध कर दिया और उनके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया। इस तरह सभी असुरों का अंत हुआ। इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया।

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