किशनगंज : कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने के लिए सदर अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती करें: जिलाधिकारी
वित्तीय वर्ष 2023-24 में अब तक 56 अतिकुपोषित बच्चों को मिला जीवनदान, यहां कुपोषित बच्चों के खानपान के साथ-साथ स्वास्थ्य की सम्पूर्ण देखभाल की है विशेष सुविधा

किशनगंज, 04 सितंबर (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, बच्चों को कुपोषण जैसी समस्या से मुक्त कराने के लिए राज्य सरकार और जिला प्रशासन काफी गंभीर है। राज्य सरकार ने कुपोषण की समस्या से निबटने के लिए प्रत्येक जिला के सदर अस्पताल परिसर में पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) की स्थापना की है। जिले के सदर अस्पताल परिसर स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र के नोडल अधिकारी विश्वजीत कुमार ने बताया कि कुपोषण की समस्या से जूझ रहे बच्चों और उसके मां या अन्य परिजन को 14 से 28 दिनों के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र में रखा जाता है। यहां फीडिंग डिमोस्ट्रेटर के नेतृत्व में कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य की नियमित मॉनिटरिंग की जाती है। इस दौरान बच्चे और उनके परिजन के खाने और पीने के लिए नियमित रूप से पौष्टिक भोजन और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। 14 दिनों तक कुपोषित बच्चे के स्वास्थ्य की नियमित जांच के बाद यदि उसके स्वास्थ्य में मानक के अनुसार सुधार होता है तो ही उसे डिस्चार्ज किया जाता। अन्यथा पुनः उसे अगले 14 दिन के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र में ही रखा जाता है। यहां से डिस्चार्ज होने के बाद भी स्थानीय आशा कार्यकर्ता या आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के द्वारा उसके स्वास्थ्य की नियमित मॉनिटरिंग की जाती है। जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने बताया कि जिले को अतिकुपोषित की श्रेणी से मुक्ति दिलाने में हम सभी की जिम्मेदारी बनती है। सामूहिक सहभागिता से ही कुपोषण की समस्या से पूर्णत: निजात पायी जा सकती है। इसके लिये स्वास्थ्य, शिक्षा, आईसीडीएस सहित संबंधित अन्य विभागों के बीच परस्पर बेहतर समन्वय जरूरी है। स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मियों को इसके प्रति विशेष रूप से सजग होने की जरूरत है। ताकि जिले में पोषण पुनर्वास केंद्र का सफल संचालन सुनिश्चित करायी जा सके। जहां भी अतिकुपोषित बच्चों की जानकारी मिले तो सदर अस्पताल स्थित एनआरसी भेजने के बाद समय-समय पर निगरानी भी करें। जब तक आम नागरिक जागृत नहीं होगा तब तक किसी अन्य को अपने कर्तव्यों का बोध नहीं हो सकता है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित पोषण पुनर्वास केंद्र विगत कई वर्षों से ज़िले सहित आसपास के बच्चों के लिए वरदान साबित हुआ है। पुनर्वास केंद्र बच्चों को न केवल नवजीवन प्रदान कर रहा, बल्कि कुपोषण के खिलाफ जारी मुहिम में सबसे बड़ा हथियार भी साबित हो रहा है। उन्होंने बताया कि एनएफएचएस 5 (2019-20) के आंकड़ों के अनुसार जिला में बच्चों के नाटापन के प्रतिशत में 7 प्रतिशत का सुधार हुआ है। बताया कि एनएफएचएस 4 (2015- 16) के आंकड़ों के अनुसार जिला में 46.9 प्रतिशत बच्चे नाटापन के शिकार थे जो अब एनएफएचएस 5 (2019-20) के आंकड़ों के अनुसार घटकर मात्र 39.9 प्रतिशत रह गए हैं। पोषण पुनर्वास केंद्र के नोडल पदाधिकारी सह जिला योजना समन्वयक विश्वजीत कुमार ने बताया कि यहां भर्ती कुपोषित बच्चों के खानपान का डाक्टर की सलाह के अनुसार विशेष ख्याल रखा जाता है। यहां रखे गए बच्चे यदि 14 दिनों अंदर कुपोषण से मुक्त नहीं हो पाते तो वैसे बच्चों की एक माह तक विशेष रूप से देखभाल की जाती है। पोषण पुनर्वास केंद्र में मिलने वाली सभी सुविधाएं नि:शुल्क होती हैं । यहां भर्ती हुए बच्चों के वजन में न्यूनतम 15 प्रतिशत की वृद्धि के बाद ही उसे यहां से डिस्चार्ज किया जाता है। कुपोषण जिले के प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं से एक है- एनएफएचएस 05 के आंकड़ों के मुताबिक जिले में पांच साल से कम उम्र के 41.1 फीसदी बच्चे अल्पवजन के शिकार हैं। इसी आयु वर्ग के 23.9 फीसदी बच्चों की लंबाई उम्र की तुलना में कम है। 7.6 फीसदी बच्चों की लंबाई की तुलना में वजन कम है। समय रहते समुचित इलाज से बच्चों को कुपोषण की समस्या से निजात दिलायी जा सकती है। सिविल सर्जन डा. कौशल किशोर ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में अब तक 56 अतिकुपोषित बच्चों को एनआरसी के चिकित्सकों एवं पोषण विशेषज्ञ द्वारा नया जीवन दिया जा चुका है। कुपोषण के शिकार बच्चे को एनआरसी में भर्ती करने के लिए कुछ मानक निर्धारित किए गए हैं। इसके तहत बच्चों की विशेष जांच जैसे उनका वजन व बांह आदि की माप की जाती है। इसके साथ हीं छह माह से अधिक एवं 59 माह तक के ऐसे बच्चे जिनकी बांई भुजा 11.5 सेमी हो और उम्र के हिसाब से लंबाई व वजन न बढ़ता हो वो कुपोषित माने जाते हैं। वैसे बच्चों को ही पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती किया जाता है। इसके साथ ही दोनों पैरों में पिटिंग एडीमा हो तो ऐसे बच्चों को भी यहां पर भर्ती किया जाता है।