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कब तक मांगेगा देश बलिदान !

पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राईक का असर नहीं, देना होगा मजबूत जवाब..

अमित कुमार गुड्डू, संयुक्त संपादक केवल सच, ‘कर चले हम फिदा जानो तन साथियो, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों-’।यह गीत हर बार सुनकर देश की रक्षा, सुरक्षा पर न्योछावर वीर जवानों के बलिदानों की हमेशा याद दिलाती है।सनद् रहे कि जिस वक्त कोई जवान सेना की वर्दी पहनता है, उसी वक्त से वह अपने देश और उसकी जमीं के लिए समर्पित हो जाता है तथा उसका परिवार देश की वह समस्त जनता हो जाती है और उसी जनता की हिफाजत को लेकर वह हर वक्त दुश्मनों से लोहा लेने को तैयार रहता है।यही उनका कर्तव्य और धर्म होता है, तभी तो सेना के जवान ‘‘शोर्यम दक्षम युद्धे, बलिदान परम धर्मः’’ की बात बार-बार दोहराते रहते हैं।चूकि भारतीय सेना का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की एकता सुनिश्चित करना, राष्ट्र को बाहरी आक्रमण और आंतरिक ऽतरों से बचाव और अपनी सीमाओं पर शांति और सुरक्षा को बनाए रहना हैं।उसे वह निष्ठापूर्वक अपने जान की परवाह किये बगैर निभाते हैं।यह सत्य है कि जो आपके लिए जीवनभर का असाधारण रोमांच है वो सेना के जवानों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी है।बहरहाल हमारा झंडा इसलिए नहीं लहराता, क्योंकि हवा चल रही होती है बल्कि यह हर उस जवान की आखरी सांस से लहराता है, जो इसकी रक्षा में अपने प्राणों का त्याग कर देता है, हम उसे ही फौजी कहते हैं।गौरतलब हो कि अभी पुलवामा, कुपवाड़ा और उरी की दर्दनाक घटना का घाव भरा भी नहीं था कि पाकिस्तान समर्थित दहशतगर्दों ने बीते दिनों हंदवाड़ा में आतंकी घटना को अंजाम दे दिया, जिसमें हमारे दो कर्नल समेत पांच जवान शहीद हो गये।बेवकुफियत और दरिंदगी की हद तो यह देखिए की जब पूरा विश्व कोरोना वायरस के प्रकोप से स्वयं लड़ रहा है, वैसे में सिर्फ और सिर्फ मानवता का दृश्य ही सभी देख रहे हैं, ऐसे में भलां आतंक का सहारा लेना निंदनीय है।खैर ! जंग-ए-मैदान के बारे में अभी तक यही कहा जाता था कि लड़ती तो फौजें हैं और नाम सरदारों का होता है।अर्थात् जवान ही मैदान में लड़ाई करते हैं और अफसरों का तो सिर्फ नाम होता है, पर कश्मीर में ऐसा नहीं है। जवानों का मनोबल कायम रहने को कमांडिंग आफिसर रैंक के अफसर भी जवानों के कंधे से कंधा मिला कर आतंकियों के विरूद्ध मोर्चा ले रहे हैं।आज शहादत पाने वाले 21 राष्ट्रीय रायफल्स के कमांडिंग आफिसर कर्नल आशुतोष शर्मा इसका ताजा उदाहरण हैं। सेना के अधिकारी आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाए गए नागरिकों को बचाने जा रही टीम का नेतृत्व कर रहे थे।यह बात अलग है कि करीब 5 सालों के बाद सेना ने किसी कर्नल रैंक के अधिकारी को कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में दिया है।इससे पहले वर्ष 2015 में उसने कर्नल रैंक के दो अधिकारी दिए थे और उसके नीचे के रैंक के अधिकारियों की शहादत फिलहाल रूक नहीं पाई है।वर्ष 2015 में 17 नवम्बर को 41 आरआर- के कमांडिंग आफिसर संतोष महादिक भी कुपवाड़ा में वीरगति को उस समय प्राप्त हुए थे जब वे एलओसी क्रॉस कर आए आतंकियों के एक गुट से भिड़ गए थे और वे अपने जवानों को फ्रंट से लीड कर रहे थे।उसी साल जनवरी में कर्नल एम-एन- राय भी शहीद हो गए थे।वर्ष 2015 में ऐसी कोशिशों में सेना के करीब 5 अफसरों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी।शहादत देने वालों में कर्नल रैंक से लेकर मेजर, कैप्टन और लेफ्रिटनेंट रैंक के अधिकारी भी शामिल थे।यह सिर्फ 2015 के साल का आंकड़ा है और अगर आतंकवाद के दौर के इतिहास पर एक नजर दौड़ाएं तो ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारियों की शहादत से भी कश्मीर की धरती रत्त फ़रंजित हो चुकी है।सबसे ज्यादा शहादतें सेना को वर्ष 2010 में देनी पड़ी थीं, जब उसके 10 से ज्यादा अफसर शहीद हुए थे और अब ताजा घटना हंडवाड़ा के चांजमुल्ला इलाके की है जहां 21 राष्ट्रीय रायफल्स के कमांडिंग आफिसर कर्नल आशुतोष शर्मा को अपने जवानों का मनोबल बनाए रहने के लिए अपनी शहादत देनी पड़ी।5 साल के अंतराल के बाद वे ऐसे पहले कर्नल रैंक के अधिकारी थे जो कश्मीर में आतंकियों से जूझते हुए शहीद हो गए।उनके साथ एक मेजर अनुज सूद, दो जवान व कश्मीर पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर भी शहादत पा गए।सेना को सबसे ज्यादा शहादतें वर्ष 2010 में देनी पड़ी थीं जब उसके 10 से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारी शहीद हो गए थे।वर्ष 2010 की एक घटना कुपवाड़ा के लोलाब इलाके की भी थी, जहां 18 राष्ट्रीय रायफल्स के कमांडिंग आफिसर कर्नल नीरज सूद को अपनी शहादत देकर जवानों का मनोबल कायम रऽने जैसे कदम को उठाना पड़ा था। सेना के वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि 40 साल के युवा कर्नल सूद आतंकियों से जारी मुठभेड़ का हिस्सा नहीं थे पर वे अपने जवानों का हौंसला बढ़ाने की खातिर उन्हें लीड करना चाहते थे।कर्नल शर्मा या फिर कर्नल संतोष पहले अफसर नहीं थे जो आतंकियों के खिलाफ मोर्चे पर जुटे अपने जवानों का मनोबल बढ़ाने की खातिर उन्हें लीड करना चाहते थे और शहादत पा गए बल्कि इस सूची में कई अफसरों के नाम दर्ज हैं।इनके इन बलिदानों पर एक शहीद स्मारक पर लिखी वह पंक्ति याद आती है, जिसमें लिखा था- ‘‘जब आप घर जायें, उन्हें हमारे बारे में जरूर कहना।आपके कल के लिए, हमने अपना आज दिया है’’।आगे बताते चले कि वर्ष 2010 का ही रिकार्ड देखे तो तब 24 फरवरी को सोपोर में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में कैप्टन देवेंद्र सिंह ने शहादत पाई तो 4 मार्च को ही पुलवामा जिले के डाडसर इलाके में कैप्टन दीपक शर्मा वीरगति को प्राप्त हो गए।जवानों का मनोबल कायम रहने की खातिर फ्रंट पर  बंदूक उठाकर आतंकियों का मुकाबला करते हुए शहादत पाने वाले सेना के अफसरों की सूची यहीं खत्म नहीं हो जाती।20 मार्च 2010 को ही कंगन में ग्रेनेड फूटने से मेजर जोगेंद्र सिंह शहीद हो गए तो दो दिनों के बाद 22 मार्च को कुपवाड़ा जिले के हफरूदा जंगल में हुई मुठभेड़ में मेजर मोहित समेत तीन जवानों को शहादत देनी पड़ी।यही नहीं 5 मई को भी उत्तरी कश्मीर के बांडीपोरा जिले में 15 घंटों तक चलने वाली भीषण मुठभेड़ में मेजर जोगेंद्र सिंह को शहादत देनी पड़ी थी।यह सिर्फ वर्ष 2010 के नाम थे उन सेनाधिकारियों के, जिन्होंने शहादत पाई।उन्हें उस समय शहादत देनी पड़ी जब कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ देने का दावा किया जा रहा था जबकि पिछले 32 सालों के आतंकवाद के इतिहास में शहादत पाने सैंकड़ों सैन्य अफसर हैं, जिनकी शहादत के कारण ही आज कश्मीरी आतंकियों से मुत्तिफ़ पाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।उन तमाम शहीदों के जुबां बस एक ही बात कहती है-‘‘भारत को जो करना नमन छोड़ दे, कह दो वो मेरा वतन छोड़ दे।मजहब प्यारा है जिसे भारत नहीं, वो इसकी मिटटी में होना दफन छोड़ दे’’।हांलाकि बीते दिनों हंदवाड़ा के आतंकी घटना में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने लश्कर के कश्मीर के चीफ कमांडर हैदर को ठिकाने लगा दिया।हैदर पाकिस्तान का रहने वाला था।इसके अलावा दो और आतंकी भी मारे गए हैं।आईजी कश्मीर विजय कुमार ने इसकी पुष्टि की है।इस मुठभेड़ में सेना के एक कर्नल रैंक तथा मेजर रैंक के अधिकारी समेत 5 जवान उस समय शहीद हो गए जब वे उस मकान में धोखे से फंस गए थे, जहां आतंकी छुपे हुए थे।दोपहर बाद मुठभेड़ स्थल पर भीड़ एकत्र हो गई थी और वहां हुए एक धमाके में 8 नागरिक गंभीर रूप से जख्मी हो गए।अधिकारियों द्वारा बताया गया कि हंदवाड़ा के चांजमुल्ला इलाके में हुई मुठभेड़ में 3 आतंकवादी भी मारे गए।यह इलाका उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले का हिस्सा है।मारे गए आतंकियों में लश्कर-ए-तौयबा का कश्मीर का कमांडर इन चीफ हैदर भी शामिल था, जो पाकिस्तानी नागरिक था। हुआ यूं कि हंदवाड़ा के चांजमुल्ला इलाके में आतंकियों की मौजूदगी का खुफिया इनपुट मिलने के बाद सुरक्षा बलों ने ज्वाइंट ऑपरेशन चलाया।इसमें सेना की राष्ट्रीय रायफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान शामिल हुए।नागरिकों को आजाद कराने के लिए सेना के कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज सूद, नायक राजेश और लांस नायक दिनेश घर में घुसे।पांच लोगों की इस टीम में जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर शकील काजी भी शामिल थे।इस ऑपेशन का नेतृत्व 21 राष्ट्रीय राइफल्स यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल आशुतोष शर्मा कर रहे थे।अधिकारियों द्वारा बताया गया कि लश्कर के आतंकियों के एक दल को बीते कुछ दिनों से राजवार के जंगलों में देखे जा रहा था।इनमें लश्कर का नामी डिवीजनल कमांडर हैदर भी था, इसकी खबर मिल रही थी।सूत्रों की मानें तो हैदर एलओसी पार से आने वाले आतंकियों के एक नए दस्ते को लेने अपने साथियों संग आया था।हालांकि सुरक्षा एजेंसियों ने इस तथ्य की पुष्टि नहीं की है।वह मुठभेड़ के दौरान सेना के दो अफसरों समेत सुरक्षा बलों के पांच जवान लापता हो गए थे।इनका टीम से संपर्क कट गया था।आपको बता दें कि कुपवाड़ा में तलाशी अभियान के 20 घंटे बाद आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ शुरू हुई।इन सभी लोगों ने टार्गेट एरिया (जहां आतंकी छिपे थे) में घुसकर आतंकियों का सामना किया।इस दौरान एक-एक करके घर में बंधक बनाए गए सभी नागरिकों को सुरक्षित निकाल लिया गया।भीषण गोलीबारी के बीच सेना के जांबाजों ने पहले नागरिकों को महफूज किया।इस रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बहादुर जवानों को कई गोलियां लग गई।इन जांबाजों में से एक शहीद कर्नल आशुतोष कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ अभियान में पहले भी कई बार बहादुरी दिखा चुके थे।उन्हें दो बार वीरता पदक मिल चुका था।कश्मीर घाटी में तैनात श्रेष्ठ कमांडिंग ऑफिसर्स में उनकी गिनती थी।भारतीय सेना के जांबाजों की जवाबी कार्रवाई में तीन आतंकी ढे़र हो गए।गौरतलब हो कि उत्तरी कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए कर्नल आशुतोष शर्मा का पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया।कर्नल शर्मा की पत्नी पल्लवी व उनके भाई ने चिता को मुखअग्नि दी।शहीद संतोष के पार्थिव शरीर को दिया गया गार्ड ऑफ ऑनर, पत्नी की चित्कार और बेटे की मासूमियत देख अधिकारियों के भी छलके आंसू..

अदम्य शाहस और वीरता के प्रतीक थे, बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले सीआरपीएफ के शहीद जवान संतोष कुमार मिश्रा।जिन्होंने अपनी बहादूरी के कारनामे जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में हुए आतंकी मुठभेड़ में आतंकवादियों से लड़ते हुए दिखलाया और वीरगति को प्राप्त किया।गौरतलब हो कि जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में सिपाही के पद पर तैनात शहीद जवान संतोष कुमार मिश्रा का पार्थिव शरीर को विशेष विमान से गया हवाईअड्डा लाया गया।तत्पश्चात गया हवाईअड्डा पर सीआरपीएफ के जवानों सहित प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया। सनद् रहे कि इस दौरान सीआरपीएफ के कई अधिकारी एवं प्रशासनिक पदाधिकारी भी मौजूद थे।गार्ड ऑफ ऑनर देने के बाद उनके पार्थिव शरीर को सड़क मार्ग सेे औरंगाबाद जिले के देवहरा स्थित उनके पैतृक गांव रवाना कर दिया गया।उक्त मौके पर सीआरपीएफ महानिरीक्षक राजकुमार, उप महानिरीक्षक संजय कुमार, सीआरपीएफ समादेष्टा निशित कुमार, कोबरा बटालियन समादेष्टा दिलीप श्रीवास्तव, एसएसबी के समादेष्टा राजेश कुमार सिंह, द्वितीय कमान अधिकारी सोहन सिंह, अवधेश कुमार, मोतीलाल के अलावा गया के जिलाधिकारी अभिषेक मिश्रा, वरीय पुलिस अधीक्षक राजीव मिश्रा, हवाईअड्डा निदेशक दिलीप कुमार सहित कई अधिकारी मौजूद थे।बताते चले कि उक्त मौके पर सीआरपीएफ आईजी राजकुमार ने कहा कि संतोष कुमार मिश्रा सीआरपीएफ 92वीं बटालियन के सिपाही के पद पर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में तैनात थे।पेट्रोलिंग के दौरान आतंकियों द्वारा हमला किया गया, जिसमें सीआरपीएफ के तीन जवान शहीद हुए।उनमें एक औरंगाबाद जिला के देवहरा निवासी संतोष कुमार मिश्रा भी शामिल थे।बताते चले कि हंदवाड़ा में शहीद संतोष मिश्रा का पार्थिव शरीर जैसे ही घर पहुंचा, घर में कोहराम मच गया।लॉक डाउन के बीच भी कच्चा घर भीड़ से पट गया।हर कोई शहीद का अंतिम दर्शन करना चाह रहा था।चारो तरफ रोने की आवाज और चित्कार सुनाई दे रही थी।वही फिर शहीद जवान संतोष की पत्नी दुर्गा को पकड़कर घर की महिलाएं दर्शन कराने के लिए लायी।जैसे ही पति शहीद संतोष के चेहरे को देखी, वह छाती पीटकर रोते हुए बोली-आपने वादा पूरा नहीं किया।बोले थे तुम्हारा साथ निभाउंगा, नहीं निभा पाए।लेकिन देश के लिए शहीद हो गए। हमें फक्र है, यह कहकर बेहोश हो गई।इसके बाद घर की महिलाएं उसकी बेहोश पत्नी को उठाकर उसके कमरे में ले गई।पानी की छीटा मारकर होश में किया, फिर पानी पिलाया।लेकिन बार-बार वह बेहोश हो जा रही थी।इसी बीच शहीद संतोष का तीन वर्षीय बेटा पार्थिव शरीर देखकर समझ भी नहीं पा रहा था।उसके पापा को क्या हुआ है, आखिर सभी रो क्यों रहे हैं।कभी इस गोदी तो कभी उस गोदी लोग उसे कर रहे थे।इसी बीच कभी वो भी रो रहा था तो कभी खामोश हो रहा था।मौजूद अधिकारियों के आंखो में भी बच्चे को देखकर आंसू छलक पड़े।इसके बाद देवहरा पुनपुन नदी घाट पर चिता सजने के बाद सीआरपीएफ के आइजी राजकुमार व औरंगाबाद एसपी दीपक बरनवाल ने संयुत्त रूप से बड़े भाई के हाथ में तिरंगा सौंपा।हाथ में तिरंगा लेते ही बड़े भाई विजय मिश्रा फफककर रोते हुए कहने लगे, हे ईश्वर ये कौन सा दिन दिखाया।लेकिन रोते हुए ये भी कहा-भाई तुम्हारे शहादत पर मुझे गर्व है।मेरा भाई देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया।यह हर किसी को नसीब नहीं होता।मैं अपने भतीजा को भी फौज में अधिकारी बनाकर भेजूंगा।ताकि वो न सिर्फ आतंकियों को ठिकाने लगाए, बल्कि पाक अधिकृत पीओके में भी झंडा लहराने के गौरव प्राप्त करे।उसकी यह बाते सुनकर मौजूद अधिकारी व आम लोगों की आंखे नम हो गई। सीआरपीएफ के साथी जवान भी फफककर रोने लगे, जिन्हें हर कोई देख सनद् रहे कि शहीद के बड़े भाई विजय मिश्रा ने बताया कि आखिरी बार कार्तिक छठ मेले में संतोष अपने घर आए थे।वह काफी व्यवहार के कुशल थे।उनके व्यवहार का हर कोई कायल था।छठ में घाटो की सफाई भी की थी।छठ उन्हें काफी पसंद था।परिजनों से बोले भी थे, अगली बार नए मेहमान के आने के बाद जरूर छठ करूंगा।माता की भत्ति व छठ में उनकी कृपा थी।महादेव के भी आस्था में गहरा विश्वास था।वे बिना पूजा किए खाना नहीं खाते थे।परिजनों की दिनचर्या सुधारने की बाते बताते थे।बहरहाल जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में बंधक बनाए गए नागरिकों को छुड़ाते हुए शहीद हुए सीआरपीएफ जवान, देवहरा के माटी का लाल संतोष मिश्रा को उनके तीन वर्षीय बेटे आदर्श ने मुखाग्नि दी।सनद् रहे कि देवहरा पुनपुन नदी घाट पर बेटे को मुखाग्नि देता देखकर वहां मौजूद लोग रोने लगे और भारत माता की जय, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे।वही शहीद संतोष के अंतिम यात्रा में सीआरपीएफ के आईजी राजकुमार, सीआरपीएफ के डीआईजी, डीएम सौरभ जोरवाल, स्थानीय भाजपा विधायक मनोज शर्मा, पूर्व विधायक डॉo रणविजय शर्मा समेत सैकड़ों गणमान्य लोग मौजूद रहे।

पुरानी चुंगी श्मशान घाट में इस अवसर पर शहीद के परिजनों के साथ-साथ सैन्य अधिकारी मौजूद थे।शहीद की पत्नी पल्लवी ने हौसला बनाए रखा और पूरे समय वहां मौजूद रहकर सभी रस्म क्रियाओं में भाग लिया। इससे पहले शहीद कर्नल शर्मा के पार्थिव शरीर को जयपुर मिल्ट्री स्टेशन के 61वें केवलरी ग्राउंड में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व दक्षिण पश्चिमी कमान के कमांडर आलोक कलेर, अन्य अधिकारियों व परिवार के सदस्यों ने शहीद को पुष्पांजलि अर्पित की।गहलोत व कलेर ने वहां मौजूद कर्नल शर्मा की पत्नी पल्लवी व अन्य परिवारजनों को ढांढस भी बंधाया।राज्य के सैनिक कल्याण मंत्री प्रताप सिंह, सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, जयपुर के जिला कलेक्टर जोगाराम व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी पुष्पांजलि अर्पित की।बहरहाल, अशुभ माना जाने वाला अंक ‘13’ थलसेना में शामिल होने के लिए कर्नल आशुतोष शर्मा के लिए भाग्यशाली रहा था और फौज में भर्ती होने के लिए अपनी साढ़े छः साल की कोशिश के बाद वे आखिरकार 13वें प्रयास में कामयाब हुए थे।सेना की वर्दी पहनने के अलावा उनका कोई और सपना नहीं था।आतंकवाद का मुकाबला करने के दौरान अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वे 21वीं राष्ट्रीय राइफल्स के दूसरे कमांडिंग ऑफिसर थे। कर्नल शर्मा को याद करते हुए उनके बड़े भाई पीयूष ने कहा कि वे हमेशा ही अपने तरीके से काम किया करते थे, चाहे जो कुछ क्यों न हो जाए।उनका एकमात्र सपना थलसेना में भर्ती होना था, कुछ और नहीं।13वें प्रयास में सफलता हासिल करने तक वे थलसेना में शामिल होने के लिए जी-जान से जुटे रहे थे।कर्नल शर्मा अपने बड़े भाई पीयूष से 3 साल छोटे थे।कर्नल शर्मा 2000 के दशक की शुरुआत में थल सेना में शामिल हुए थे।अपने भाई के साथ 1 मई को हुई बातचीत को याद करते हुए पीयूष ने कहा कि यह राष्ट्रीय राइफल्स का स्थापना दिवस था और उसने हमें बताया कि उन लोगों ने कोविड-19 महामारी के बीच इसे कैसे मनाया।मैं उसे कई बार आगाह किया करता था और उसने इसका एक ही जवाब तय कर रखा था- ‘मुझे कुछ नहीं होगा, भैया’।उन्होंने बताया कि कर्नल शर्मा ने कुछ तस्वीरें भेजी थीं और परिवार के पास यह उसकी आखरी यादें हैं।कर्नल शर्मा की बेटी तमन्ना छठी कक्षा में पढ़ती है।पीयूष ने कहा कि मुझे यह जरूर लगता है कि वह बहादुर पिता की बहादुर बेटी है-।विडम्बना है कि देश की सरहदों की सुरक्षा में तैनात जवानों के बलिदान से देशवासियों की आंखे नम हो गई है और लगातार इन वर्षों में फौजी भाई-बहनों के शव तिरंगे में लपेटे जब पास आते हैं तो जेहन से सिर्फ आवाज यही उठती है कि, मिटा तो पाकिस्तान को। वही देश के वीर जवानों का मुख से श्वर निकल रहे हैं कि, ‘‘आतंकवादियों को माफ करना ईश्वर का काम है, लेकिन उनकी ईश्वर से मुलाकात करवाना हमारी जिम्मेदारी है’’।सनद् रहे कि थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा है कि पाकिस्तान अब भी भारत में आतंकवादियों को धकेलने के अपने ‘अदूरदर्शी और तुच्छ’ एजेंडे पर काम कर रहा है।इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जब तक पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की अपनी नीति नहीं छोड़ता, हम उचित और सटीक जवाब देना जारी रखेगे।भारत संघर्ष विराम का उल्लंघन और आतंकवाद का समर्थन करने वाले सभी कृत्यों का करारा जवाब देगा।थल सेना में 13 लाख जवान हैं।उन्होंने हंदवाड़ा मुठभेड़ पर कहा कि भारत को अपने उन सुरक्षाकर्मियों पर गर्व है, जिन्होंने उत्तर कश्मीर के एक गांव में आतंकवादियों से आम नागरिकों की जान बचाते हुए अपना सर्वाेच्च बलिदान दिया।उन्होंने कर्नल आशुतोष शर्मा की खासतौर पर सराहना की, जिन्होंने उस ऑपरेशन का नेतृत्व किया।जनरल नरवणे ने कहा, ‘मैं जोर देना चाहूंगा कि भारतीय सेना संघर्ष विराम का उल्लंघन और आतंकवाद का समर्थन करने वाले सभी कृत्यों का करारा जवाब देगी।क्षेत्र में शांति बहाल करने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है।’उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान जब तक आतंकवाद की अपनी नीति नहीं छोड़ता, हम उचित और सटीक जवाब देना जारी रखेगे।जनरल नरवणे ने कहा कि जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास घुसपैठ के हालिया प्रयासों से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की दिलचस्पी महामारी कोविड-19 से मुकाबला करने में नहीं है तथा वह अब भी आतंकवादियों को भारत में धकेलने के अपने ‘अदूरदर्शी और तुच्छ’ एजेंडे पर काम कर रहा है।थल सेना प्रमुख ने कहा कि दक्षेस वीडियो सम्मेलन के दौरान भी पाकिस्तान की संकीर्णता पूरी तरह से प्रदर्शित हुई थी, जब उसने उस मंच का उपयोग अपने नागरिकों को महामारी से सुरक्षित रहने के तरीके खोजने के बजाय कश्मीर में मानवाधिकार के ‘गैर-मौजूद’ उल्लंघन की शिकायत करने के लिए की।उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना द्वारा संघर्ष विराम के उल्लंघन की बढ़ती घटनाओं से स्पष्ट होता है कि वह अपने ही देश के लिए वैश्विक खतरा है और अपने ही नागरिकों को राहत मुहैया कराने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।पाकिस्तानी सेना संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए नियंत्रण रेखा पर मासूम नागरिकों को निशाना बनाती है।वास्तव में पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों की सूची से कट्टर आतंकवादियों के नाम हटाने से साबित होता है कि वह अब भी राज्य की नीति के एक औजार के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल करने में विश्वास करता है।वास्तव में पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों की सूची से कट्टर आतंकवादियों के नाम हटाने से साबित होता है कि वह अब भी औजार के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल करने में विश्वास करता है।पाकिस्तान अब भी न सिर्फ भारत के अंदर बल्कि अफगानिस्तान में भी आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए छप्र रूप से काम कर रहा है।थल सेना प्रमुख ने कहा कि अफगान सुरक्षा बलों के खिलाफ अचानक हिंसा में वृद्धि से मादक पदार्थों की तस्करी और धनशोधन के संकेत मिलते हैं। वही चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने भी नागरिकों की जिंदगियां बचाने के लिए जवानों के अदम्य साहस और समर्पण का जिक्र किया।जनरल रावत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में चलाया गया ऑपरेशन लोगों की जान बचाने के लिए सुरक्षा बलों के दृढ़निश्चय को दर्शाता है।सेना को उनके साहस पर गर्व है।उन्होंने सफलतापूर्वक आतंकियों को मार गिराया।हम इन बहादुर सैनिकों को सलाम करते हैं और उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हैं।ज्ञात हो कि देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस दुखद घटना पर शोक व्यत्तफ़ करते हुए इसे बेहद परेशान करने वाला और दर्दभरा करार दिया।सिंह ने कहा कि जवानों ने आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में साहस की मिसाल पेश की और उनकी बहादुरी और संघर्ष को हमेशा याद किया जाएगा।रक्षामंत्री ने ट्वीट किया, हंदवाड़ा में हमारे जवानों और सुरक्षाकर्मियों की क्षति बेहद परेशान करने वाली और दर्दभरी है।इन्होंने आंतकवादियों के खिलाफ अदम्य साहस दिखाया और देशसेवा में बड़ा बलिदान दिया।हम इनकी बहादुरी और संघर्ष को कभी भुला नहीं पाएंगे।सिंह ने शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके परिवारों के प्रति संवेदना व्यत्तफ़ की।उन्होंने यह भी कहा कि भारत वीर शहीदों के परिवारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।बहरहाल, भारतीय सैनिक अजेय, अपराजित, अनुशासित, निर्भीक, राष्ट्रभत्तफ़, विपरीत परिस्थितियों में भी जैसे-कठोर जलवायु, गगनचुंबी बर्फीली चोटियों की होगी जमाने वाली सर्दी, दुर्गम घाटियां, घने-पहाड़ी जंगल, रेगिस्तान की भयानक गर्मी एवं असामान्य जल-जीवन में सैनिक अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा में तत्पर रहते हैं।जीवन की अशांति और बेचौनी उनके लिए एक माहौल तैयार करती है।आम नागरिक, जिन्होंने युद्ध जैसा वातावरण नहीं देखा है, उनके लिए यह सब कल्पना से परे है। भारतीय सैनिक कर्तव्यपरायणता, देशभत्तिफ़ एवं नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत होते हैं।जिससे विपरीत परिस्थितियों में भी आवश्यकता अनुसार राष्ट्र सेवा में सर्वाेच्च बलिदान देने के लिए तत्पर रहते हैं।यह बातें प्रशिक्षण के समय से ही सेना के मूल्य, एक सैनिक के दिलो-दिमाग में कूट-कूट कर भरी दिए जाते हैं।उनके इस पराक्रम को याद करते हुए यह पंक्ति बार-बार दोहराने को दिल कहता है-‘‘लिपट कर वतन कई तिरंगे में आज भी आते हैं, यूं ही नहीं दोस्तों हम आजादी मनाते हैं, चलो अब तो सभी भारतीय एक जुट हो जाएं, भारतीय सेना के मनोबल को और बढ़ाते हैं’’।

अमित कुमार गुड्डू, संयुक्त संपादक केवल सच

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