
उस समय लार्ड हार्डिंग भारत में गवर्नर जनरल थे।गवर्नर जनरल की हैसियत उस समय वही थी जो आज प्रधानमंत्री की होती है।उसी लार्ड हार्डिंग की हत्या की सबसे दुस्साहसी योजना बना डालने वाले क्रांतिकारी का नाम था रासबिहारी बोस।दिसंबर 1912 में नई दिल्ली में अंग्रेजों ने कलकत्ता से दिल्ली राजधानी शिफ्ट करने के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था।बोस अपने साथी बसंत कुमार बिस्वास के साथ कार्यक्रम में शामिल हुए।लार्ड हार्डिंग पाँच सौ वर्दीधारी व 2500 बिना वर्दीवाले पुलिसकर्मियों के साथ जुलूस में आगे बढ़ रहा था।बिस्वास ने लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका।जबरदस्त विस्फोट हुआ,हर तरफ अफरा तफरी मच गई।शोर हुआ हार्डिंग मारा गया…. लेकिन महावत व हाथी मारे गये,बम से हार्डिंग जख्मी हो गया लेकिन मरा नहीं।हालांकि वायसराय के कत्ल की योजना नाकाम हो गई लेकिन ब्रिटिश शासन हिल गया।ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों पर शिकंजा कसने की हर संभव कोशिश की।लेकिन इस बार भी रासबिहारी बच निकलने में कामयाब रहे।इस घटना को ‘दिल्ली कान्सपिरैसी’ के नाम से जाना जाता है।बाद में कई साथी पकड़े गये और फाँसी पर चढ़े।रासबिहारी बोस पर उस समय 75000 रूपये का इनाम घोषित था।लेकिन रासबिहारी बोस किसी तरह 1915 में जापान पहुँच गये। अंग्रेजों को पता चला कि रासबिहारी बोस जापान में हैं तो वे उनके पीछे पड़ गये।लेकिन जापान की जनता व स्थानीय नेताओं की सहायता से वे बचते रहे और क्रांति का बिगुल फूंकते रहे।जापानी महिला तोसिको,जो उन्हें कई बार भोजन व अन्य सहायता देती रहती थीं,से उन्होंने शादी कर लिया।दो बच्चे हुए, लेकिन 1925 में ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया।वे लगातार भारत माँ की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे।उन्होंने आजाद हिंद फौज की नींव रखी और उसका नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस के हवाले किया।
वे जापान में निर्वासित जीवन बिता रहे थे।तब जिस घर में रुकते थे,वहां रात को सोते वक्त वे सदैव दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुंह करके सोते थे।उनके जापानी मित्रों को यह बात बुरी लगती थी,क्योंकि जापान में दक्षिण-पश्चिम की ओर मुंह करके सोना शुभ नहीं माना जाता है। आखिर एक दिन उन लोगों ने बोस से इसका कारण पूछा तो वे बोले, “तुम्हारे देश के दक्षिण-पश्चिम में ही तो मेरी मातृभूमि भारतवर्ष है।मैं इस दिशा में मुंह करके सोता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है मानो रातभर मैं अपनी मां की गोद में सोया हूँ।जाग्रत अवस्था में तो मैं अपनी प्रिय मातृभूमि को नहीं पा सकता, इसलिए सोते वक्त मैं उसे इस प्रकार से पा लेता हूँ।”
हर भारतीय को जानना था,ऐसे माँ भारती के सपूत के बारे में।लेकिन विडंबना रही है कि देश के तथाकथित इतिहासकारों ने जिसका चाहा उसका कद आकाश तक उठा दिया, और जो सच में उन ऊँचाइयों के हकदार थे, उनको गुमनाम बना दिया।



