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किशनगंज : डीएम की अध्यक्षता में स्वास्थ्य विभागीय सेमिनार का हुआ आयोजन

निजी अस्पताल संचालको को क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट का पढाया गया पाठ

किशनगंज, 08 जनवरी (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के अंतर्गत, स्वास्थ्य सेवाओं को स्थापित करने वाली संस्थानों को नियमित करना, सुरक्षित और गुणवत्ता से सेवाएं प्रदान करना, और स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य की स्थिति का निगरानी करना होता है। इससे सामाजिक स्वास्थ्य की सुरक्षा और सुधार होती है तथा स्थानीय समुदायों को उच्च-मानक स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त होती हैं। उक्त बातें जिलाधिकारी तुषार सिंगला के अध्यक्षता में स्वास्थ्य सेमिनार का आयोजन जिला परिषद सभागार में किया गया। इसमे जिले के इंडियन मेडिकल एसोसिएसन के अध्यक्ष डा. ए के सिन्हा , सचिव डा. जकी एवं जिला स्वास्थ्य समिति से पंजीकृत निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक सेंटर के पदाधिकारियों ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत जिलाधिकारी तथा सिविल सर्जन ने संयुक्त रूप से द्वीप प्रजवलित कर किया गया। डीएम तुषार सिंगला ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि चिकित्सक को धरती का भगवान कहा जाता है, लेकिन इस पेशे की आड़ में अवैध तरीके से क्लीनिक, नर्सिंग होम व अस्पताल, मरीजों के आर्थिक दोहन का पेशा बन चुका है। इस तरह के क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पतालों में अक्सर मरीजों की जान जाने की खबरें आती रहती हैं। बिहार में निजी क्लीनिकों को स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो क्लीनिक को अवैध संस्थान माना जा सकता है। कोई भी निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल संचालित करने के लिए क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत संस्थान का रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक होता है। सिविल सर्जन, डा. कौशल किशोर ने बताया कि जिले में अब तक 87 निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा 26 पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक सेंटर एवं 38 अल्ट्रासाउंड सेंटर ही रजिस्टर्ड हैं। जबकि, शहर के मुख्य चौराहे से लेकर गांव की गलियों तक सैकड़ों की संख्या में निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक सेंटर संचालित किए जा रहे हैं। सिविल सर्जन, डा. किशोर ने बताया कि गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा उपलब्धत कराने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2010 में क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट (रजिस्ट्रेशन एंड रेग्यूलेशन) एक्ट लागू किया था। सरकार ने केंद्र सरकार की नियमावली को वर्ष 2013 में अंगीकृत किया था। क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट के अनुसार जिला रजिस्ट्रीकरण प्राधिकार के तहत पंजीकरण कराना अनिवार्य है। इसके तहत एक साल का औपबंधिक निबंधन किया जाता है। वहीं विधि मान्य अवधि से एक माह पूर्व पंजीयन के नवीकरण के लिए आवेदन देना पड़ता है। अगर उक्त अवधि में नवीकरण के लिए आवेदन नहीं किया जाता है तो संस्थान को प्रति माह की दर से जुर्माना भरना पड़ता है। इसके अलावा रजिस्ट्रेशन के लिए बायो मेडिकल वेस्ट एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाणपत्र तथा अग्निशमन सुरक्षा प्रमाणपत्र सहित अन्य जरूरी दस्तावेज देने पड़ते हैं। सिविल सर्जन डा. किशोर ने बताया कि क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट एक्ट के तहत अवैध रूप से संचालित निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक सेंटर पर कार्रवाई का भी प्रावधान है। इसके लिए जिलाधिकारी के द्वारा अवैध रूप से संचालित जांचघर, डायग्नोस्टिक सेंटर, पैथोलाजी, लैबोरेट्री, अल्ट्रासाउण्ड, क्लीनिक, नर्सिंग होम के विरुद्ध कार्रवाई करने के निर्देश के आलोक में जिले के सभी अस्पतालों के उपाधीक्षक व प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी एवं अंचलाधिकारी का दल बनाकर जांच करवायी जा रही है। उन्होंने बताया कि क्लीनिकल इस्टैब्लिसमेंट (रजिस्ट्रेशन एवं रेगुलेशन) एक्ट 2010 (धारा 11) का पालन जरूरी है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति या संस्थान बगैर रजिस्ट्रेशन कराये किसी भी तरह का क्लीनिक,नर्सिंग होम, पैथोलाजी व डायग्नोस्टिक, अल्ट्रासाउंड सेंटर का संचालन नहीं कर सकता। ऐसा किया जाना अवैध है। इस एक्ट का पालन नहीं करने पर जुर्माना लगाया जायेगा। एक्ट की धारा 41(1) के मुताबिक आर्थिक दंड का प्रावधान तय है। इसके मुताबिक पहली बार पकडे जाने पर 50 हजार, दूसरी बार में 02 लाख तक और तीसरी बार पकडे जाने पर 5 लाख तक जुर्माना वसूला जायेगा। इसके अलावा क़ानूनी कार्यवाही भी की जाएगी। डा. कौशल किशोर ने बताया कि जिला स्तर पर गठित रजिस्ट्रीकरण प्राधिकार में जिलाधिकारी अध्यक्ष और सिविल सर्जन संयोजक होंगे तथा सदस्यों में जिले के पुलिस अधीक्षक, उप विकास आयुक्त और जिला आईएमए के अध्यक्ष को शामिल किया गया है। विभाग के अनुसार किसी भी अस्पताल को निबंधन के लिए न्यूनतम मानकों का पालन करना होगा। निर्धारित कर्मचारियों की उपलब्धता रखनी होगी। जितने भी मेडिकल रिकार्ड हैं उनका रखरखाव करना होगा। रिपोर्ट उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी होगी। रजिस्ट्रीकरण के लिए अस्पतालों को निर्धारित फीस के साथ आनलाइन या आफलाइन आवेदन देना होगा। उन्होंने ने बताया कि जिलाधिकारी के दिशा-निर्देश के आलोक में निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम व निजी अस्पताल तथा पैथोलाजी केन्द्र की जांच के लिए तीन जांच दल का गठन किया गया है। जिनके द्वारा अबतक 19 निजी अस्पताल एवं 10 अल्ट्रासाउंड सेंटर की जांच कर रिपोर्ट दिया गया है। साथ ही, जिन निजी क्लीनिकों, जांच घरों, डायग्नोस्टिक सेंटरों के पास पंजीकरण नहीं है उन्हें अब नोटिस भी भेजी जा रही । नोटिस के सात दिनों के अन्दर शर्तो को पूरा कर पंजीकरण करवाना अनिवार्य होगा। यह पंजीकरण के लिए अंतिम अवसर होगा। उसके बाद उन्हें या तो ऐसे केंद्र बंद करने होंगे या उनके खिलाफ नियम संगत कार्रवाई की जाएगी। जिले के विभिन्न हिस्सों में संचालित क्लीनिक को स्वास्थ्य विभाग में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। अन्यथा उन्हें अवैध संस्थान की श्रेणी में रखकर नियम संगत तरीके से कार्रवाई की जाएगी। बगैर पंजीकरण ऐसे संस्थानों को सख्ती के साथ बंद की जाएगी। विभाग की ओर से इसी वजह से तेजी से जांच कराई जा रही है। डीएम तुषार सिंगला ने बताया कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार जैव चिकित्सा अपशिष्ट से होने वाले संभावित खतरों एवं उसके उचित प्रबंधन जैसे-अपशिष्टों का सेग्रिगेशन, कलेक्शन भंडारण, परिवहन एवं बायो-मेडिकल वेस्ट का उचित प्रबंधन जरूरी है। इसके सही तरीके से निपटान नहीं होने से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। अगर इसका उचित प्रबंधन ना हो तो मनुष्य के साथ साथ पशु- पक्षीयों के को भी इससे खतरा है। इसलिए जैव चिकित्सा अपशिष्टों को उनके कलर-कोडिंग के अनुसार ही सेग्रिगेशन किया जाना चाहिए। हर अस्पताल में जैव और चिकित्सकीय कचरा उत्पन्न होता है। जो अन्य लोगों के लिए खतरे का सबब बन सकता है। इसे देखते हुए इस कचरे का उचित प्रकार निस्तारण कराने का प्रावधान भी है। अस्पतालों की परख जैव चिकित्सा अपशिष्ट (बायो मेडिकल वेस्ट) प्रबंधन के मानकों पर की जाएगी। जिसके मुताबिक उन्हें न सिर्फ इसका उचित इंतजाम करना होगा, साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण पत्र भी लिया जाएगा। हर अस्पताल में जैव और चिकित्सकीय कचरा उत्पन्न होता है। जो अन्य लोगों के लिए खतरे का सबब बन सकता है। इसे देखते हुए इस कचरे का उचित प्रकार निस्तारण कराने का प्रावधान भी है। जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली 2016 में पारित किए गए नियम में प्रावधानों को और कड़ा किया गया है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में पारित आदेश के अनुसार पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिमाह 1 करोड़ रुपए वसूला जा सकता है। सभी अस्पतालों के लिए एक नोडल अधिकारी नामित किया जाएगा। नोडल अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि वह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लाइसेंस हासिल करें। साथ ही जैव चिकित्सा अपशिष्ट समिति का गठन कराया जाएगा। यही नहीं, अस्पताल के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को टीकाकरण के जरिए प्रतिरक्षित और जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन पर प्रशिक्षण भी मुहैया कराना होगा।

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