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दुर्गम यात्रा के बावजूद भी लाखों भक्त गुप्तेश्वरनाथ की करते है जलाभिषेक..

बिहार/श्रीधर पांडे एक तरफ जहाँ लोकतंत्र की जननी, शेरशाह की जन्मस्थली, महात्मा बुद्ध की कर्मस्थली, महावीर की जन्मस्थली, उच्च शिक्षा के लिए प्रख्यात नालन्दा विश्वविद्यालय, सिखो के दसवे गुरु गोविंद सिंह की जन्म स्थली, आचार्य चाणक्य विष्णुगुप्त, सम्राट अशोक, आर्यभट्ट की धरती जिसने पूरे विश्व को अपना लोहा मनवाया था, को लेकर पूरे विश्व में आस्था, विश्वास का प्रतीक बना रहा हैं।वहीं दूसरी तरफ झारखण्ड से अलग होने के बावजूद बिहार के पास अपनी कोई प्राकतिक संसाधन नाम मात्र का रहा हैं, लेकिन इसकी ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक महत्व को देखते हुए सूबे के लोकप्रिय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था “क्या हुआ हमारे पास प्राकृतिक संसाधन नहीं है तो, हमारे पास प्राकृतिक का ही देन है कि इतने सुदृढ़ एवं महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है, जिसे रोड मैप कर विकसित करने की योजना हैं।बिहार के पास बोधगया, नालन्दा, पटना, शाहाबाद, नवादा, चम्पारण, मधुबनी, भागलपुर एवं अन्य महत्वपूर्ण शहरों के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए विकसित करने की योजना चल रही हैं, वही कुछ पर्यटक स्थल बोधगया, पटना एवं नालन्दा अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अमिट छाप छोड़ चुके है, जहाँ लाखो पर्यटक यहाँ के ऐतिहासिक, पौराणिक एवं धार्मिक महत्व को जानने, समझने एवं आत्मसात करने के लिए आते रहे हैं।आज हम आपको सूबे के रोहतास जिले के अंतर्गत “गुप्तेश्वर नाथ धाम” के बारे में बताना चाहेंगे, जो विकास की बाट खोज रहा हैं।जिस तरह झारखण्ड के देवघर स्थित भगवान भोले नाथ की बैधनाथ धाम अपनी ऐतिहासिक महत्व को लेकर पूरे देश मे विख्यात है, जहां लाखो भक्त सालोभर दर्शन करने जाते हैं एवं झारखंड सरकार के राजस्व में उसका भी एक अलग योगदान हैं ठीक उसी प्रकार गुप्तेश्वर नाथ के प्रति भी लोगो की आस्था हैं, देश के कोने-कोने से भक्त अब इस जटिल एवं संघर्ष यात्रा के बावजूद भी आने लगे है।गुप्तेश्वर धाम के लिए ऐसा चर्चा है कि भगवान शिव ने अपने भक्त भस्मासुर को उसके इच्छा के अनुसार वरदान दे दिया था कि वह जिसके सर पर अपना हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा।एक दिन यह वरदान उनके लिए ही घातक सिद्ध होने लगी, वह शिव के ऊपर ही अपना  दाएं हाथ रखकर यह जानने की कोशिश करने लगा कि क्या यह सही है।इस डर से भगवान शिव ने अपनी जान बचाए विंध्य की पहाड़ियों में स्थित एक गुफा में छिप गए थे जो रोहतास जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर स्थित आलमपुर के पनियारी घाट एवं चेनारी स्थित उगहनी घाट से पहाड़ो की चढ़ाई कर लगभग 20 किमी दूर गुप्तेश्वर नाथ गुफा तक जाया जाता हैं।भगवान विष्णु से शिव की यह विवशता देखी नहीं गई और उन्होंने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया।उसके बाद गुफा के अंदर छुपे शिव बाहर निकले।ऐसी मान्यता है कि यहाँ भगवान भोलेनाथ की दर्शन मात्र से सारी मनोकामनाए पूर्ण होती हैं, इसलिए हर साल भक्तो की तांता लगते आ रहा हैं।विंध्य पहाड़ियों पर स्थित पनियारी घाट से सीधी पहाड़ की चढ़ाई एवं आगे  समतल एरिया में बसे कुछ गांव से बगल से चलते हुए फिर दूसरे पहाड़ से निचे उतरना एवं दो नदियों को पार कर गुफा तक पहुंचने के बीच मे कई ऐसे अद्भुत, अविस्मरणीय स्थान देखने को मिलेंगे जिसको देखने के लिए लंदन, स्विट्जरलैंड  या अपने देश मे ही स्थित कई हिल स्टेशन हैं जहाँ लाखों पर्यटक जाते हैं वहाँ का मजा आप रोहतास में आकर ले सकते हैं।जिस तरह नवादा का ककोलत अपनी और लोगो को आकर्षित करता हैं ठीक उसी तरह यहां शीतल एवं मंझर कुंड स्थित हैं जहाँ लोग सावन एवं पर्व के मौके पर ही जाकर पिकनिक मनाते हैं।दुर्गम इलाको में भ्रमण करते हुए हमारी टीम ने जब गुप्तेश्वर नाथ के गुफा तक पहुंची तो बीच में आए हुए रास्तों का वर्णन कर यहाँ की जनता एवं सरकार तक अपनी बातों को पहुंचाने के लिए विवश हो गयी।एक तरफ बिहार पूरी तरह ड्राई स्टेट है लेकिन पहाड़ पर चढ़ाई के साथ ही हर कदम पर लोगो के लिए दुकाने सजकर तैयार थी सभी चीजें की दुकानें जहाँ खाने के अलावा शराब भी भारी मात्रा में खुलेआम बिक रही थी।कदम कदम बढ़ते हुए जब पहाड़ के शीर्ष पर पहुंचने के बाद अद्भुत नजारा मानो कोई हिल स्टेशन है, प्राकृतिक यह नजारा जो पूरी तरह अविकसित हैं जहाँ लाखो भक्त नक्सलियो एवं पहाड़ो पर स्थित ग्रामीण की मदद से सुरक्षित हैं वहाँ सरकार के विकास के नाम पर कुछ हैं ही नहीं।उसके बावजूद भी भक्त के कदम नहीं रुकते, हर साल अपने आराध्य को जलाभिषेक करने आते हैं।भगवान शिव लगभग 600 मीटर अंदर मोड़दार गुफा में स्थित हैं जहां तक जाना सभी के बस की बात नहीं हैं क्योंकि गुफा में प्रवेश के लिए उतने सुरक्षित नहीं है, न ही आक्सीजन की समुचित व्यवस्था, जिससे कि हर भक्त अपने आराध्य पर जलाभिषेक कर सके।अगर इस स्थिति में किसी भी व्यक्ति की स्थिति बिगड़ जाए तो वह भगवान भरोसे है जैसे उतरी बिहार के बाढ़ एवं मुजफ्फरपुर के चमकी बुखार।यहाँ दोनों जगह तो सरकारी अधिकारी एवं सरकार तो पहुंचने की कोशिश भी करती हैं लेकिन वहाँ इनसब का जाना नामुनकिन हैं।पहाड़ पर बसे कई गाँव के लोग इसलिए अपने मताधिकार का भी प्रयोग से वंचित रह जाते है कि वहाँ मत देने की व्यवस्था नहीं हैं, उसके लिए उन्हें कई कई किमी दूर पहाड़ के नीचे आना होगा।वहाँ के जनजीवन भी भगवान के भरोसे ही स्थित है जिस प्रकार भक्त का स्वास्थ्य।मुख्यालय सासाराम से 30 किमी की दूरी तय करने के बाद बेहद अद्भुत नजारे या यूँ कहे भगवान गुप्तेश्वर की गुफा पर शासन एवं प्रशासन अगर गम्भीर होता तो झारखण्ड की देवघर जितना राजस्व देने के लिए यह स्थान सक्षम हैं।यहाँ बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, झारखण्ड एवं अन्य क्षेत्रों से सावन के महीनों में लाखों भक्त आते हैं।यह क्षेत्र विकसित होता तो कितने को रोजगार के लिए सामान्य अवसर भी मिलते एवं इसकी महत्ता की चर्चा दुनिया के कोने कोने में फैलती।सरकारी उदासीनता की शिकार की वजह से हरेक साल हजारों हजार की संख्या में भक्त केवल इसलिए नहीं आ पाते कि रास्ते बहुत दुर्गम हैं, न ही किसी प्रकार की कोई व्यवस्था है।ऊपर बसब गाँव वालों की कृपा पात्र की वजह से ही ऊपर में भोजन एवं कहीं कहीं लाइट की व्यवस्था हैं, नहीं तो आपके लिए एक टॉर्च एवं लाठी ही सहारा मात्र हैं।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर्यटन की दिशा में बिहार के ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक एवं लौकिक महत्व को पर्यटन स्थल की दर्जा देने एवं रोड मैप बनाकर विकसित करने के लिए प्रयासरत जरूर है लेकिन जितनी विकास बौद्ध, जैन एवं सिख सर्किट के लिए किया गया उतना ही प्रयास अगर गुप्तेश्वर नाथ धाम एवं अन्य सर्किट के लिए किया गया होता तो यह बिहार के राजस्व में अपनी महत्वपूर्ण स्थान रखते।बिहार में बस पर्यटन ही यहाँ के बड़ा संसाधन हैं, जो सभी के पास नहीं हैं, इसलिए इसे जानने, समझने एवं आत्मसात करने के लिए लोग जरूर आना पसन्द करेंगे।

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