किशनगंज : नवरात्रि के नौवें दिन महाकाल मंदिर में हुई मां सिद्धिदात्री की पूजा
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊँ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा

ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
किशनगंज, 17 अप्रैल (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन शहर के रुईधाशा स्तिथ महाकाल मंदिर में गुरु साकेत के सानिध्य में मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की गई। गौर करे कि महाकाल मंदिर में पहले दिन से ही कलश स्थापित कर माता की पूजा अर्चना शुरू की गई थी। यहां माता के साथ महाकाल की भी पूजा की जाती है। इस अवसर पर भक्त सुबह से ही माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे थे। मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया गया था। संध्या में आरती की जाती है। बुधवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना से सभी तरह की सिद्धियां प्राप्त होती है और लौकिक-परलौकिक सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है। माता की पूजा करने से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती। गुरु साकेत कहते है कि मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा ऋषि-मुनि, यक्ष, देव, दानव, साधक, किन्नर और गृहस्थ आश्रम में जीवनयापन करने वाले भक्त मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना करते हैं। सिद्धि और मोक्ष देने वाली मां दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। इनके स्वरूप की बात करें तो देवी मां भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान हैं और चार भुजाओं से युक्त हैं। मां सिद्धिदात्री हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं। सिंह इनकी सवारी है। मां सिद्धिदात्री समस्त संसार का कल्याण करती हैं। इसके लिए उन्हें जगत जननी भी कहते हैं। गुरु साकेत ने बताया कि नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नौ तरह का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के फल-फूल आदि अर्पित करना चाहिए। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं। गुरु साकेत कहते है मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना अन्य दिनों की तरह करें। लेकिन इस दिन परिवार के साथ हवन का भी विशेष महत्व है। आज माता की पूजा करने के बाद सभी देवी-देवताओं की भी पूजा की जाती है। स्थापित माता की तस्वीर या मूर्ति के आसापस गंगाजल से छिड़काव करें और फिर पूजा सामग्री अर्पित करके हवन करें। हवन करते समय माता के साथ एक बार सभी देवी-देवताओं के नाम की आहुति भी दें। हवन के समय दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक के साथ मां की आहुति दें। फिर परिवार के साथ माता की आरती उतारें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं और कन्या पूजन शुरू करें। मां सिद्धिदात्री को भोग में हलवा व चना चढ़ाने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही पूड़ी, खीर, नारियल और मौसमी फल भी अर्पित कर सकते हैं। गुरु साकेत कहते हैं इनकी पूजा से व्यक्ति को हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। देवी सिद्धिदात्री सुख समृद्धि और धन की प्रतीक हैं। कहा जाता है कि देवी सिद्धिदात्री में संसार की सारी शक्तियां हैं। देवी सिद्धिदात्री ने मधु और कैटभ नाम के राक्षसों के अत्याचार को समाप्त करके दुनिया का कल्याण किया था। गुरु साकेत ने बताया कि भगवान शिव ने भी मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही सिद्धियों को प्राप्त किया था और इन्हीं की कृपा से भगवान शिव अर्द्धनारीश्वर कहलाये। विशिष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के लिए आज सिद्धिदात्री की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। साथ ही इस अति विशिष्ट मंत्र का 21 बार जप भी करना चाहिए। मंत्र है-‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊँ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा। गुरु साकेत कहते है मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व-ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या 18 बताई गई है। 1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व, वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि। मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरु साकेत कहते है सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है।