भगवान केवल भक्ति भाव से ही मिलते हैं न कि दिखावा और चढ़ावा से – नवेन्दु मिश्र

भगवान श्री रामचंद्रजी माता शबरी को “भामिनी” कह कर संबोधित करते हैं। जीव के कुरुप होने पर भी यदि उसके अंदर भक्ति है , प्रेम है तो वह भगवान की दृष्टि में सुंदर है। भगवान अपने श्री मुख से कहते हैं जाति , पाॅ॑ति , कुल , धर्म , बड़ाई , धन , बल , कुटुंब ,गुण और चतुरता इनके होते हुए भी मनुष्य के अंदर यदि भक्ति नहीं है तो वह मनुष्य कैसा है जैसे बिना जल का बादल । जैसे बादलों की शोभा जलसे है वैसे ही मनुष्य की शोभा भक्ति से है और परमपिता हमारे रामजी एक भक्ति का ही नाता मानते हैं।।
कह रघुपति सुनु भामिनी बाता । मानौं एक भगति कर नाता ।।जाति पाॅ॑ति कुल धर्म बड़ाई ।धन बल परिजन गुन चतुराई ।।भगतिहीन नर सोहइ कैसा । बिनु जल बारिद देखिअ जैसा ।।
श्री रघुनाथ जी बोले – हे भामिनी! मेरी बात सुनो। मैं तो मात्र एक भक्ति का ही संबंध मानता हूं। जाति , पाॅ॑ति , कुल , धर्म , बड़ाई , धन , बल , कुटुंब , गुण , चतुरता इनके होते हुए भी भक्ति से रहित मनुष्य कैसा सोहता है जैसा बिना जल का मेघ ( शोभा हीन) दीख पड़ता है।
भक्तिविहीन सौंदर्य कुरूपता है , माता शबरी भक्ति से परिपूर्ण हैं इसलिए प्रभु उनको “भामिनी” कह कर संबोधित करते हैं । “भामिनी” का अर्थ होता है अत्यंत सुंदर।
इस प्रसंग से यही निष्कर्ष निकलता है कि भगवान कभी सुंदरता नही देखते। भगवान केवल भाव देखते है
हम आपसे पूछना चाहते है क्या शवरी पढ़ी लिखी थी। बिल्कुल नही, क्या शवरी हवन पूजा पाठ करती बिल्कुल नही,। क्या शवरी अपने शरीर को सजाती संवारती बिलकुल नही,। शवरी माँ न सुंदर थी जर्जर शरीर कभी स्न्नान भी नही करती।सूखी चमड़ी। चमड़ी पर मैल की पर्त जमी हुई है।। फिर भी प्रभु भामिनि कह रहे है।
।।प्रभु सुंदरता से नही मिलते।
शवरी केवल अपने गुरु के बचनों पर विस्वास करके रामजी के आने का इंतजार करती। श्रद्धा और विस्वास और भाव से पुकारने पर प्रभु शवरी के जीवन मे आये। अगर प्रभु को सच में पाना है तो ये तीनो चीजे द्रढ कर लो और कुछ आपको करने की जरूरत नही।



