राज्य

आदिवासी परंपरा का गौरवगान -जनजातीय गौरव दिवस

त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-विविध संस्कृतियों और परंपराओं की भूमि भारत ने हमेशा देश की आजादी के लिए लड़ने वाले अपने बहादुर योद्धाओं के योगदान और बलिदान का जश्न मनाया है। हालाँकि, इस उत्सव के बीच, आदिवासी समुदाय की वीरता और संघर्ष पर अक्सर ध्यान नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आदिवासी समाज और संस्कृति के प्रति सम्मान और अटूट प्रेम ही है, जिसने भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयन्ती के दिवस को “जनजातीय गौरव दिवस” के नाम से मनाने की घोषणा कर आदिवासी समाज का पूरे देश में मान बढ़ाया है ।आज यह तीसरा वर्ष है जब पूरा देश आदर, सम्मान और उत्साह के साथ भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती “जनजातीय गौरव दिवस”के रूप में मना रहा है | इस दिवस से लोगों ने जनजातीय समुदायों के सह-अस्तित्वको स्वीकारा है और दशकों के इंतजार के बाद सामाजिक समानता के सपने को हकीकत में बदल दिया है।

भगवान बिरसा मुंडा ने हमेशा वन भूमि के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा की और उसी संकल्प को पूरा करते हुए अपने साथियों के साथ अंग्रेजों से लड़ते हुए शहादत दी | ऐसे ही देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे आदिवासी लोगों ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी क्योंकि जनजातीय लोगों ने कभी भी अंग्रेजों की गुलामी को स्वीकार नहीं किया, शायद अभी तक बहुत कम ही लोग ये जानते थे कि अग्रेजों को सबसे प्रारम्भिक और सशक्त चुनौती देश के जंगलों से आदिवासी समाज से ही मिलना प्रारम्भ हुई थी।

चाहे तिलका माँझी के नेतृत्व में पहाड़िया आंदोलन हो,बुधू भगत के नेतृत्व में चला ‘लरका आंदोलन’ हो, सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में संथाल हूल आंदोलन हो, रानी गाइदिन्ल्यू के नेतृत्व में नागा आंदोलन हो, अल्लूरी सीता राम राजू का रम्पा आंदोलन हो, कोया जनजाति का विद्रोह हो, गोविंद गुरु का ‘भगत’ आंदोलनहो, अंग्रेजों के विरुद्ध जनजाति समाज का एक व्यापक, विस्तृत व विशाल योगदान रहा है।

‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा की अपने माटी के प्रति संघर्ष की ही पृष्ठभूमि थी कि अंग्रेजों को छोटा नागपुर काश्तकारी-सीएनटी अधिनियम बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। जिसके अधीन परंपरागत वन अधिकार भुईंहरी खूँट के नाम से निहित है | भुईंहरी खूँट, जो जल, जंगल, जमीन पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार देता है ।

भगवान बिरसा मुंडा के संघर्ष के बल पर देश भर के जनजातीय क्षेत्रों में हुए ऐतिहासिक भूल को स्वीगकारते हुए हमारी संसद ने वन अधिकार कानून पारित किया। भगवान बिरसा मुंडा के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किया कि उनके अपने समाज की स्वशासन व्यवस्था पर किसी भी प्रकार का बाह्य हस्तक्षेप न हो | इस कारण पेसा जैसे कानून इस देश में बने, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी परंपरागत व्यवस्था पर कोई हस्तक्षेप न हो, परंपरागत ढंग से नियंत्रणाधीन व्यवस्थाओं के अनुरूप ही पेसा का कानून चले और साथ ही साथ संवैधानिक प्रावधानों का समावेशीकरण हो सके। । इसकी मुख्य अवधारणा अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत की व्यवस्था हो ताकि उसकी सांस्कृतिक परंपरा और नैसर्गिक व्यवस्था बनी रहे और प्राकृतिक समन्वयता पर किसी तरह का प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

भगवान बिरसा मुंडा के अनुरूप जनजातीय समाज पुनर्स्थापित हो, इस चुनौती भरे कार्य को दायित्व के रूप में हमें लेना पड़ेगा साथ ही अपनी जनजातीय जीवंत संस्कृति पर गर्व करते हुए बनाए रखना पड़ेगा ।

भारत सरकार का वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) सामाजिक व्यवस्था के साथ जोड़कर पुनर्स्थापित करने पर जोर देता है। वनाधिकार कानून एकाधिकार को ही सुनिश्चित नहीं करता है, बल्कि मानव समुदाय को प्राकृतिक दृष्टि से समानुपातिक सहभागिता के रूप में देखता है।

कई चुनौतियों के बीच हमें इन सारे विषयों पर संवेदनशील होकर देखने की जरूरत है। प्रकृति का अन्योन्याश्रय संबंध न बिगड़े इस पर समस्त भारत वासियों को पुनरावलोकन करना पड़ेगा । यह भगवान बिरसा मुंडा का विशेष सूत्र रहा है ।

जनजातीय गौरव दिवस का उत्सव भारत में आदिवासी समुदायों के योगदान और संघर्षों को पहचानने और सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह इन हाशिए पर मौजूद समूहों के कल्याण और सशक्तिकरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। विभिन्न नीतियों, कार्यक्रमों और कानून के माध्यम से, सरकार का लक्ष्य आदिवासी समुदायों का उत्थान करना और ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना है। भारत के संविधान ने, अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के प्रावधानों के साथ, उनके अधिकारों की रक्षा करने और समावेशिता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वन अधिकार अधिनियम, पेसा और अन्य कानूनों ने आदिवासी समुदायों के अधिकारों को और मजबूत किया है और उन्हें अपने जीवन के तरीके की रक्षा करने के लिए सशक्त बनाया है। ट्राइफेड और एनएसटीएफडीसी जैसे संस्थानों ने आदिवासी समुदायों को आर्थिक रूप से आगे बढ़ने और उनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए सहायता और अवसर प्रदान किए हैं।
जनजातीय लोगों ने अपनी सभ्यता और संस्कृति की धरोहरों को युगों से संजोया हुआ है, जनजातीय गौरव दिवस एक अवसर है आदिवासियों की जीवन परंपरा, रीति-रिवाज व सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था को समझने का जो कि अत्यधिक समृद्ध है। आज देश यह बात जान गया है कि राष्ट्र निर्माण में आदिवासी समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और आगे भी उनकी इस भव्य विरासत से प्रेरणा लेकर हमें इस अमृत काल में नव भारत निर्माण का संकल्प पूरा करना होगा|
अर्जुन मुंडा केन्द्री य जनजातीय कार्य मंत्री
*****

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button