राज्य

उद्यानिक फसलों के विकास के लिए जिलावार तैयार की जायेगी कार्ययोजना।…

दक्षिण बिहार के जिलों में शुष्क बागवानी के विकास हेतु किया जायेगा विशेष प्रावधान

आँवला, जामुन, बेल, कटहल और नींबू की गुणवत्तयुक्त पौध रोपन सामग्री की जायेगी तैयार

त्रिलोकी नाथ प्रसाद :-कृषि विभाग द्वारा आज बामेती, पटना के सभागार में बिहार में सीड हब तथा बीज उत्पादन एवं उद्यानिक फसलों से संबंधित परिचर्चा का आयोजन किया गया। माननीय मंत्री, कृषि, बिहार श्री कुमार सर्वजीत इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय मुख्यमंत्री, बिहार के कृषि सलाहकार डाॅ॰ मंगला राय द्वारा की गई। इस कार्यक्रम में कृषि विभाग के सचिव श्री संजय कुमार अग्रवाल, कृषि निदेशक डाॅ॰ आलोक रंजन घोष, संयुक्त सचिव श्री अनिल कुमार झा, संयुक्त सचिव श्री संजय कुमार सिंह, निदेशक, उद्यान श्री अभिषेक कुमार, संयुक्त सचिव श्री शैलेन्द्र कुमार, अपर निदेशक (शष्य) श्री धनंजयपति त्रिपाठी, डाॅ॰ संजय कुमार, निदेशक, भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, मऊ सहित विभागीय मुख्यालय एवं क्षेत्र के पदाधिकारीगण तथा कृषि वैज्ञानिकगण उपस्थित थे।
माननीय मंत्री ने कहा कि जामुन, कटहल, बेल, नींबू का गुणवत्तापूर्ण पौधे बिहार में कम होते जा रहे है। इसे नये क्षेत्र में बढ़ावा देने की आवश्यकता है। प्रत्येक जिला के जरूरत के अनुसार पौधे की उपलब्धता हेतु कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने निदेश दिया कि मखाना के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि किया जाये। उद्यानिक फसलों से किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है। उन्होंने कहा कि विभागीय योजनाओं का लाभ नये किसानों तक पहुँचाया जाये। अधिकारियों को अपने कर्तव्य का निर्वहन करने की आवश्यकता है, जिससे बिहार का विकास हो सके।
माननीय मुख्यमंत्री, बिहार के कृषि सलाहकार डाॅ॰ मंगला राय ने कहा कि अपनी कमजोरियों को जाने और उसको दूर करें। उन्होंने अधिकारियों को अपने जिला में नये-नये कार्य करने को कहा। फसलों का चयन जिला के भौगोलिक स्थिति एवं जलवायु के अनुसार किया जाये। उन्होंने तकनीकी आधारित तथा ज्ञानपरक विकास के माध्यम से बागवानी के क्षेत्र में कार्य करने का सलाह दिया।
कृषि विभाग के सचिव श्री संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि राज्य में लगभग 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उद्यानिक फसलों की खेती की जाती है, जिसमें बढ़ोतरी की अपार संभावनाएँ है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 19 प्रतिशत है, जिसमें बागवानी का योगदान लगभग 30 प्रतिशत है। बिहार में कृषि को नये ऊचाईयों तक पहुँचाना है। राज्य में अब तक तीन कृषि रोड मैप के कार्यान्वयन के माध्यम से काफी काम किया है, किन्तु और आगे तक पहुँचने हेतु और काम करना होगा। इसके लिए उद्यानिक फसलें महत्वपूर्ण घटक साबित होगा। उन्होंने निदेश दिया कि बाजार की माँग की आधार पर योजना बनाई जाये। सब्जी का आच्छादन क्षेत्र, उत्पादन एवं निर्यात को बढ़ाने की बहुत संभावनाएँ है। अन्य राज्यों में उद्यानिक फसलों के विकास से वहाँ के किसानों की स्थिति सुदृढ हुई है। इस क्रम में दक्षिण बिहार में आँवला तथा अमरूद का क्षेत्र विस्तार करना होगा। अभी तक उद्यानिक फसलों की खेती मुख्यतः उतरी बिहार तक ही सीमित थी, परन्तु इसे दक्षिण बिहार के शुष्क क्षेत्रों में भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राज्य में केला के उत्पादन के लिए अपार क्षमता है, विशेषकर पारम्परिक केला के प्रभेदों के क्षेत्र विस्तार तथा इसकी खेती को विकसित करने की आवश्यकता है। राज्य का विशिष्ट केला मालभोग, चीनियाँ तथा बतीसा जैसे प्रभेदों के पौध रोपन सामग्री का प्रोटोकाॅल तैयार करते हुए विकसित करने की जवाबदेही कृषि विश्वविद्यालयों को दी गई है, ताकि आने वाले दिनों में इसका क्षेत्र विस्तार किया जा सके। इन प्रभेदों के केला में पनामा बिल्ट रोग नहीं लगता है, जो कि जी 09 प्रभेदों में पनामा बिल्ट एक समस्याँ है। मालभोग और बतीसा स्वादिष्ट होने के कारण इसकी माँग अधिक है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर फसल विविधीकरण पर जोर देना होगा। मखाना के क्षेत्र विस्तार पर कार्रवाई की जानी है।

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button
error: Content is protected !!