विशेषज्ञों और हितधारकों की कोविड की दूसरी लहर पर चर्चा

विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों ने 10 मई को कोविड संकट की स्थिति से निपटने में श्रेष्ठ दृष्टिकोण अपनाने पर विचार करने के लिए एक समान वर्चुअल प्लेटफार्म पर आकर चर्चा की।
“त्रिलोकी नाथ प्रसाद-कोविड की दूसरी लहर पर चर्चा- विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिप्रेक्ष्य” विषय पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संगठन प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (टीआईएफएसी) द्वारा आयोजित ऑनलाइन बैठक में वैज्ञानिक, डॉक्टर, औषधि निर्माता, उद्योग जगत के प्रमुख लोगों और नीति निर्माताओं ने चर्चा की ताकि वायरस के फैलाव को नियंत्रित किया जा सके।
बैठक में टीआईएफएसी के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी के सारस्वत ने कहा “देश में ऑक्सीजन की काफी अधिक आवश्यकता है, आपूर्ति श्रृंखला मजबूत नहीं होने के कारण भारत ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर जैसे महत्वपूर्ण उपकरण के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी समुदाय को औद्योगिक साझेदारों के साथ हमारी निर्भरता कम करने के लिए प्रमुख उपाय करने होंगे। देश में टीका उत्पादन भी दूसरे देशों से मिलने वाली कच्ची सामग्री पर निर्भर है। इसलिए देश में सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयव (एपीआई) के उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।” उन्होंने कहा, “हमारी स्वास्थ्य संरचना को मजबूत बनाने की तैयारी के लिए चिकित्सा सहायकों और एमबीबीएस पास करने वाले डॉक्टरों के अल्पकालिक प्रशिक्षण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी संरचना तैयार करने पर हमें फोकस करना होगा।”
डॉ. सारस्वत ने विशेष रूप से जीनोम अनुक्रमण में अनुसंधान सुविधाओं को बढ़ाने, टीके तथा विभिन्न दवाओं की आपूर्ति और वितरण के लिए ड्रोन जैसी विज्ञान और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल, टीका उत्पादन सुविधा और प्रबंधन के लिए एआई जैसी प्रौद्योगिकी के उपयोग और भारत की आबादी के पूर्ण टीकाकरण पर बल दिया ताकि वायरस के फैलाव को रोका जा सके। उन्होंने चर्चा में भाग लेने वालों से वैसे कार्यक्रमों के साथ आगे को कहा जो तत्काल और मध्यम अवधि की समस्याओं का समाधान कर सकें।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा ने कहा कि कोविड-19 की दूसरी लहर तथा भविष्य की समान चुनौतियों के समाधान के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा नवाचार प्रमुख स्तंभ हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न घटक हैं जो कोविड-19 के लिए प्रासंगिक हैं। इनमें वायरस के संक्रमण से लेकर इसके प्रभाव को समझना, प्रासंगिक टेक्नोलॉजी तथा उत्पादों का विकास और बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इन सभी घटकों को समेकित रूप से जोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि पहली लहर में यह प्रमुख सीख हमें मिल चुकी है और हमें इसे भूलना नहीं चाहिए।
प्रो. शर्मा ने कहा कि समान रूप से महत्वपूर्ण विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अन्य पहलू हैं। इनमें कोविड-19 के बाद के विज्ञान और टेक्नोलॉजी के हस्तक्षेपों पर ध्यान देने के लिए अच्छे शोध वाले श्वेत पत्र शामिल हैं। टीआईएफएसी के शोध से विभिन्न क्षेत्रों में आगे की कार्रवाई हुई है। उन्होंने कहा कि अन्य महत्वपूर्ण गतिविधि में कोविड के बारे में प्रचार है जो विज्ञान प्रसार द्वारा किया जा रहा है। इंडिया साइंस ओटीटी चैनल के माध्यम से लगभग एक कोविड बुलेटिन प्रचारित किया जाता है। टीआईएफएसी ने प्रवासी श्रमिकों और कर्मचारियों के लिए एक पोर्टल बनाया है ताकि आवश्यक कौशल की आपूर्ति और मांग का मिलान किया जा सके। उन्होंने कहा कि निर्णय, नियोजन और गवर्नेंस के लिए गणितीय मॉडलिंग बड़ा उपाय है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने देश में 30 विभिन्न समूहों को मॉडलिंग गतिविधि के लिए समर्थन दिया है और भविष्य में भी इसे आगे बढ़ाया जाएगा।
हेल्थकेयर कंसल्टेंट डॉ. विजय चौथाईवाले ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी महामारी का मूल्यांकन और नियंत्रण तीन स्तरों- लक्षण, रोकथाम और इलाज- पर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दूसरी लहर ने हमारी कमियों और हमारे समाज की मजबूती को इन तीनों स्तरों पर दिखाया है। इसलिए हमें इनका गहन विश्लेषण करने की जरूरत है। टीका के मोर्चे पर आने वाले दिनों में तस्वीर और साफ होगी जब वर्तमान आपूर्तिकर्ताओं की ओर से सप्लाई बढ़ेगी तथा स्पुतनिक, जायडस तथा कैडिला आएंगी।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महामारी तथा संचारी रोग प्रभाग के पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रमण गंगाखेडकर ने आगे की राह के बारे में अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि यह समय अपने अंदर झांकने की है क्योंकि वायरस धीरे-धीरे अपना रूप बदल रहा है और मिलेजुले तरीके से विकसित हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी टीका उत्पादन क्षमता बढ़ानी होगी, तेजी से टीका लाना होगा और वायरस के बदलते स्वरूप को देखते हुए टीका विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास कार्य में आवश्यक रूप से निवेश करना होगा। दवा विकसित करना ही संक्रमण से लड़ने का एकमात्र तरीका है। इसके लिए औषधि विकास को समर्थन देना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे मानक स्थल विकसित करने में निवेश करना चाहिए जहां क्लीनिकल परीक्षण हो सके। इससे लागत और समय की बचत होगी। उन्होंने कहा कि हमें संपूर्ण कोरोना टीके का विकास करना होगा और एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध के बारे में भी सोचने की जरूरत है।
टीआईएफएसी के कार्यकारी निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीवास्तव ने अपने स्वागत भाषण में बैठक के उद्देश्य की चर्चा की कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए कार्य योजना दस्तावेज लाने का लक्ष्य रखा।
बैठक के अन्य प्रमुख वक्ताओं में प्रो. नंदिता दास, प्रोफेसर फार्मास्युटिकल साइंसेज, कॉलेज ऑफ फार्मेसी और हेल्थ साइंस, बटलर यूनिवर्सिटी यूएसए, श्री पीके पाठक, विशेष सचिव, आयुष मंत्रालय तथा विभिन्न हितधारक शामिल थे। इन लोगों ने क्लीनिकल / स्वास्थ्य परिप्रेक्ष्य के महत्वपूर्ण विषयोः संक्रमण दर / मृत्यु दर / रोग लक्षण /इलाज पद्धति तथा औषधि और फार्मास्युटिकल / चिकित्सा उपकरण /अवसंरचनाः आवश्यकता- वास्तविक और उपलब्धता (वर्तमान), आपूर्ति/ वितरण में भारत की तैयारी तथा आपात स्थिति के लिए योजना – वर्तमान मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने, नए संयंत्र/ प्रौद्योगिकी / विदेशी स्रोतों से जरूरत पड़ने पर अधिग्रहण तथा आवश्यक धन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की।
इस बैठक से देश के लिए ढांचागत कार्य योजना बनाने में मदद मिलेगी जिससे कोविड महामारी से कारगर तरीके से निपटा जा सके।