सम्राट विक्रमादित्य को उनके प्रत्येक कार्यों के लिए याद किया जाता है

नवेंदु मिश्र
अयोध्या नष्ट होकर अपना अस्तित्व खो चुकी थी, तब साधु संत सम्राट विक्रमादित्य के पास आए हुए थे तो उन्होंने सम्राट से कहा कि यदि आप अयोध्या को पुनः बसा देंगे तो इतिहास आपको हमेशा याद रखेगा।
इच्छा तो विक्रमादित्य की भी बहुत थी लेकिन 100 साल पुराने तो पेड़ भी नही बचते तो हजारों साल पुरानी अयोध्या कैसे मिलती।
विक्रमादित्य ने साधुओं से साधारण रूप से कहा की “मैंने राजा रहते और भी बहुत काम किए है मुझे लगता है इतिहास मुझे यू भी याद रखेगा।”
इस पर साधुओं ने कुछ नही कहा, लेकिन सम्राट के एक नवरत्न कालिदास ने धीरे से कहा कि “सम्राट आप अयोध्या का क्या करते हैं, उसके लिए इतिहास आपको इन सबसे अलग याद करेगा।”
आखिरकार विक्रमादित्य ने जांच के आदेश दिए, वे अयोध्या को कृत्रिम रूप से बसाने की जगह उसके मूल स्थान को ढूंढकर बसाने के इच्छुक थे। सरयू नदी के आसपास के इलाको में अपार खुदाई हुई और आखिरकार प्राचीन अयोध्या के अवशेष मिले।
84 स्तंभ सेना ने ढूंढ निकाले, सम्राट विक्रमादित्य ने इन्ही के आधार पर निर्माण के आदेश दे दिए और महज चार कोस में अयोध्या बस गई। कालिदास की बाते सही थी, विक्रमादित्य ने अनेकों महान काम किए लेकिन राम मंदिर के लिए उन्हें अलग से याद किया जाता है।
जब 1527 में मुगलों के घोड़े अयोध्या पहुंचे और बाबर के सेनापति मीरबाकी ने मंदिर तोड़ने के आदेश दिए तो चार ब्राह्मण मंदिर के सामने खड़े हो गए, मुस्लिम सैनिकों ने उनके सिर काट दिए और मंदिर के बाहर की दीवार तोड़ दी।
हिंदू अपने समय के कारण असहाय था, अपनी आंखों के सामने मंदिर टूटता देखने को विवश था। जब मुस्लिम शिल्पियों ने मस्जिद के लिए दीवारे खड़ी करने की कोशिश की तो वो बारंबार गिरने लगी। मानो कोई दैवीय शक्ति बाबर को कुछ इशारा कर रही हो।
आखिरकार मीरबाकी ने मंदिर का शिखर तोड़कर उसे ही मस्जिद का आकार दे दिया, लेकिन मंदिर के स्तंभ चीख चीख कर गवाही दे रहे थे कि वो मस्जिद नही अपितु मंदिर है। बस वो वर्ष था और अब आज का वर्ष है कि राम राज्य का आदर्श स्थापित करने वाले राम को न्याय मिला।
निश्चिंत रहिए अब कोई बाबर नही आयेगा, आया भी तो ये 1528 का भारत नही बल्कि 2024 का सशक्त आत्मनिर्भर भारत है। बाबर को दिल्ली तो वैसे भी नही मिलनी, क्या पता उज़्बेकिस्तान भी हाथ से निकल जाए।