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आपातकाल और इंदिरा।…

जितेंद्र नाथ मिश्र/1971 का लोकसभा का आम चुनाव में इंदिरा जी एक बार पुनः जीत कर प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो चुकी थी। प्रतिद्वंद्वी स्व०राजनारायण ने गलत ढंग से चुनाव जीत जाने का आरोप लगाते हुए न्यालय में मुकदमा दायर कर दिया था।

इस बार कोई भी नीतिगत निर्णय वह स्वयं नहीं ले पा रही थीं। उनके छोटे पुत्र स्व०संजय गांधी उनपर हावी हो चुके थे। संजय प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में तो नहीं आए थे पर प्रशासनिक निर्णय वहीं ले रहे थे। उस काल में इंदिरा जी का बीस सूत्री और संजय जी का पांच सूत्री कार्यक्रम चल रहा था। इसी समय इंदिरा जी ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए जबरन नसबंदी का आदेश दे दिया। डाक्टरों को नसबंदी के लिए एक लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया ऐसी हवा उड़ रही थी। परिणाम यह हुआ कि गुजरात में छात्र आंदोलन की अग्नि प्रज्जवलित हुई जो बिहार आते ही शोला का रुप धारण कर लिया। बिहार के स्कूल कालेज महीनों तक बंद कर दिए गये।


इस आंदोलन को लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, विक्रम कुंअर जैसे अनेकों छात्र नेता अगुवाई कर रहे थे। आंदोलन को रंजन प्रसाद यादव, प्रोफेसर जाबिर हुसैन जैसे लोगों का भी समर्थन मिल रहा था। पर सच कहा जाए तो आंदोलन नेतृत्व विहिन था। बाद में स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी स्वर्गीय जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन में गति आई। आंदोलन को दबाने के लिए कर्फ्यू लगाया गया। पर आंदोलनकारी कहा रूकने वाले थे फलत: १८मार्च १९७४ को पटना और गया में निहत्थे आंदोलन कारियों पर पुलिस द्वारा बर्बरता पूर्वक गोलीयां बरसाईं गयी। इसी बीच रायबरेली से लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के विरुद्ध खड़े उम्मीदवार सम्भवतः स्व राजनारायण के पक्ष में जून १९७५ में न्यायालय ने फैसला दे दिया। अब इंदिरा के सामने प्रधानमंत्री पद छोड़ने का दवाब था। फलत: २५जून १९७५ को आपातकाल की घोषणा करते हुए प्रेस की आजादी छीन ली गई। एक नया कानून बना दिया गया नाम पड़ा डी०आई०आर०। इस कानून के अनुसार संदेह के आधार पर कभी भी किसी को भी गिरफ्तार किया जा सकता था। देश भर में लगभग ढाई लाख लोगों को गिरफ्तार कर जेल की काली कोठरी में डाल दिया गया। इस काले कानून के विरोध में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में एक मौन जुलूस निकाला गया था । जयप्रकाश नारायण पर पुलिस ने लाठी बरसाते हुए सभी प्रमुख छात्र नेताओं सहित जयप्रकाश को भी गिरफ्तार कर लिया गया था
इस आंदोलन को आजादी का दूसरा आंदोलन कहकर पुकारा जाने लगा। और जय प्रकाश को जनता ने एक नया नाम दिया था लोक नायक ।

आज तमाम विपक्षी दल कह रहे हैं कि संविधान खतरे में है । पर सच कहा जाए तो संविधान की हत्या २५जून १९७५को ही कर दी गई थी

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