किशनगंज : जिले में फाइलेरिया मुक्त के लिए प्रयास जारी।
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बहादुरगंज में फाइलेरिया (एमएमडीपी) क्लिनिक का शुभारम्भ।
- फाइलेरिया ग्रस्त मरीजों को होगी सहूलियत।
- जिले के कोचाधामन, ठाकुरगंज एवं बहादुरगंज में फाइलेरिया क्लिनिक खुला।
किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, जिले को फाइलेरिया मुक्त बनाने की दिशा में स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। इसी के तहत जिलेभर में फाइलेरिया क्लिनिक (एमएमडीपी) की शुरुआत की जा रही है। मंगलवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बहादुरगंज में एमएमडीपी (फाइलेरिया) क्लिनिक का शुभारम्भ प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रिजवाना तबस्सुम ने फीता काटकर किया। मौके पर उन्होंने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि फाइलेरिया क्लिनिक में फाइलेरिया के मरीज के लिए दवा और फाइलेरिया मरीज को कैसे अपने आप को साफ-सुथरा रखना चाहिए उसके बारे में सारी जानकारी के साथ उन्हें स्वऊपचार के साथ-साथ पैर की देखभाल, व्यायाम तथा सही तरह के चप्पल पहनने आदि के बारे में प्रशिक्षण भी दिया जायेगा। इस अवसर पर जिला भीबीडी नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने कहा कि समेकित सहभागिता से कालाजार की तरह फाइलेरिया से भी जिले को मुक्त करेंगे। जिले में अभी 1570 हाथीपांव के मरीज, जबकि 501 हाइड्रोसील के मरीज हैं। जिला भीबीडी सलाहकार अविनाश रॉय ने बताया की अब तक जिले के 03 प्रखंड कोचाधामन, ठाकुरगंज एवं बहादुरगंज में फाइलेरिया क्लिनिक खुल चूका है शेष 04 प्रखंडो में 30 दिसंबर तक फाइलेरिया क्लिनिक का शुभारम्भ किया जायेगा। क्लिनिक खोलने का मकसद है कि फाइलेरिया जैसी बीमारी को रोका जा सके। इसके साथ ही फाइलेरिया पीड़ित मरीजों को बेहतर सुविधा मुहैया कराने एवं क्लीनिकल ट्रीटमेंट उपलब्ध कराने को लेकर इसकी शुरुआत की जा रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों व हेल्थ एण्ड वेलनेस सेन्टर पर एमएमडीपी क्लिनिक खोला जा रहा है, ताकि लोगों को परामर्श हेतु बहुत दूर नहीं जाना पड़े। जो फाइलेरिया रोगी जिला मुख्यालय तक नहीं आ सकते, उनके लिए उनके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों पर उपचार और जरूरी सुविधा ए भी मिलेंगी। भीबीडी नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने कहा ने फाइलेरिया के कारण, लक्षण, ऊपचार तथा बचाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हाथीपाँव एक लाइलाज बीमारी है जो क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। संक्रमण के बाद इसके लक्षण प्रकट होने में 5 से 6 वर्ष लग जाते हैं। सही व समुचित देखभाल के अभाव में यह हाथीपाँव का रूप ले लेता है। परन्तु इससे बचाव बहुत ही आसान है। डीईसी और अल्बेन्डाजोल की एक खुराक साल में एक बार सभी को (2 वर्ष से छोटे बच्चे, गर्भवती स्त्री और गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को छोड़कर) अवश्य खानी चाहिए। सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने बताया की उष्ण कटिबंधीय जलवायु प्रदेशों में खासतौर पर होने वाले रोग फाइलेरिया यानि हाथी पांव, कालाजार, कुष्ठ, डेंगू, चिकनगुनिया को नेग्लेक्टेड ट्रापिकल डिजीज यानि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों की श्रेणी में रखा गया है। वर्ष 2030 तक देश से ऐसी बीमारियों से मुक्त कराने का लक्ष्य है। इसे लेकर विभागीय स्तर से जरूरी पहल किये जा रहे हैं। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डा मंजर आलम ने कहा कि एनटीडी सूची में शामिल रोग जन स्वास्थ्य के लिये बड़ी चुनौती बनी हुई है। अब हाथीपांव, कालाजार सहित अन्य रोगों पर प्रभावी नियंत्रण को ठोस कदम उठाये जा रहे हैं। ताकि समय पर संबंधित मामलों का पता लगाकर, इसके नियंत्रण, सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम, चिकित्सकीय सेवाओं तक लोगों की आसान पहुंच संबंधी प्रयासों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करते हुए रोग नियंत्रण संबंधी उपायों को मजबूती दिया जा सके।