ब्रेकिंग न्यूज़राज्य

*डॉ.नम्रता आनंद पर्यावरण लेडी ऑफ बिहार बनी लोगों के नजरों में*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा,मीडिल स्कूल की शिक्षिका, शिक्षा के क्षेत्र में राजकीय और समाजसेवा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करना, प्रोफेशनल डेडिकेशन, जीकेसी (ग्लोवल कायस्थ कांफ्रेस) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था की बिहार प्रदेश अध्यक्ष का पद धारण करना, सामाजिक गतिविधियों और उपलब्धियों को रेखांकित करती है डॉ० नम्रता आंनद।

डॉ० नम्रता आंनद ने दीदीजी फाउंडेशन और गरीब बच्चों के लिए संस्कारशाला सहित पटना से सटे कुरथौल में एक पुस्तकालय के संस्थापक के रूप में एक लंबी लकीर खिंचने का प्रयास की हैं। पर्यावरण से इनका काफी लगाव है। पौधारोपन के लिए कभी इनके हाथों में पौधों का बंडल दिख जाता है तो कभी मोटरसाइकिल पर पौधों को लेकर भागती हुई दिख जाती है। पेड़ लगाना इनका शगल बन चुका है।

डॉ० नम्रता आंनद राज्य सरकार की योजना जल जीवन हरियाली का सपोर्ट करते कभी भी और कहीं भी देखा जा सकता है। जीकेसी (ग्लोवल कायस्थ काफ्रेंस) की ‘गो ग्रीन’ प्रोजेक्ट की नेतृत्व पूरे प्रदेश में कर रही हैं। नीम, पिपल, तुलसी अभियान में भी इनकी जबर्दस्त भागीदारी रहती है। प्रदेश के पर्यावरण की चिंता करते-करते ये देश के पर्यावरण से जुड़ गई, इन्हें भी यह पता नहीं चला।

डॉ० नम्रता ने छतीसगढ़ के बक्सवाहा में जगलों के बचाव की लड़ाई में जुटी हैं । ध्यातव्य है कि बक्सवाहा के जंगलों के नीचे हीरे के खान हैं और उन हीरों को निकालने के लिए जंगलों की कटाई की जानी है। इन जंगलों को बचाने के लिए ये अपनी टीम के साथ बक्सवाहा जाकर आमरन अनशन करने को आतुर हैं। बक्सवाहा के जंगल को बचाने के लिए डा. नम्रता आनंद जैसे पर्यावरण प्रेमियों ने नारा दिया है -हीरे नहीं, हमें हरियाली चाहिए। नम्रता कहती हैं कि जीवन के लिए हीरे से ज्यादा कीमती हरियाली होती है। इसलिए हरियाली की कीमत पर हमें हीरे नहीं चाहिए।

डॉ०नम्रता की पर्यावरण प्रेम को देखते हुए इनके जानने वाले इन्हें कोई पर्यावरण लेडी, तो कोई इन्हें पर्यावरण लेडी आफ बिहार, तो कोई ट्री वीमेन कहकर बुलाता है। कोरोना की दूसरी लहर में जब प्रदेश के अधिकतर लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे तब नम्रता आनंद अपने खाली समय का सदुपयोग करते हुए पटना और आस पास के इलाकों में पेड़ पौधे लगा रही थीं । इनका तर्क था कि कोरोना के दूसरे लहर में आक्सीजन के लिए जो मारामारी हुई वैसी मारामारी इस धरती पर कभी न हो, और कृत्रिम आक्सीजन प्लांट लगाने की जगह प्राकृतिक आक्सीजन प्लांट पेड़ और पौधे ही क्यों न लगाए जाएं। इसी तर्क के बूते इन्होंने कोरोना की दूसरी लहर में ही विभिन्न राजनीतिक- सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर लगभग दो हजार पेड़ पौधे लगाए। वैसे सामान्य दिनों में भी इन्हें पेड़ पौधे लगाते सहज ही देखा जाता है। सोशल मीडिया और न्यूज साइट पर इनसे जुड़ी ऐसी खबरें लगातार दिखाई देती हैं। इसी कारण से लोग इन्हें पर्यावरण लेडी आफ बिहार से संबोधित करते हैं।

डॉ०नम्रता आनंद अपने नाम के अनुकूल नम्र और विनम्र स्वभाव से ओत प्रोत हैं और दूसरों को हर पल आनंद या खुशी देने वाला व्यवहार रखती हैं। यह इनकी उपलब्धि है, जो धीरे-धीरे उनकी कार्यशैली और उनके त्याग ने दी है। डा.नम्रता कहना हैं कि माया मोह सब यहीं रह जाता है और आपके बाद भी आपके कर्म और व्यवहार याद किये जाते हैं। वही पुण्यफल आपके साथ जाता भी है फिर इतनी मारा मारी क्यों। उनकी इसी फिलॉस्फी ने बच्चे, महिलाओं और असहाय वृद्धों के लिए कुछ विशेष करने की प्रेरणा दी। असहाय वृद्धों के लिए नम्रता आनंद एक वृद्धाश्रम शुरु कर रही हैं। पटना में ये आश्रम निर्माणाधिन है और राशि के आभाव में फिलहाल इसका निर्माण रूका हुआ है। लेकिन नम्रता निराश नहीं हैं। कहती हैं कि लगन से किया गया काम पूरा होता ही है। मुझे विश्वास है कि देर-सवेर यह वृद्धाश्रम समाज के काम आएगा ही। फिलवक्त तो मैं दूसरे अनाथआश्रम और वृद्धाश्रम जाती रहती हूं और जो मुझसे बन पड़ता है वो करती रहती हूं।

बच्चे और महिलाओं से भी इन्हें अगाध प्रेम है । यही कारण है कि पुस्कालय और संस्कारशाला की इन्होंने स्थापना की है। आज के युग में जब पुस्तकालय अपनी उपयोगिता खो रही है तब भी पुस्तकालय की जरूरत की वकालत करती हुई नम्रता आनंद कहती हैं कि एक खास और समृद्ध वर्ग के लिए पुस्तकालय की जरूरत नहीं रही, लेकिन आज भी एक बड़ा वर्ग है जिनके बच्चों के लिए न तो पुस्तक खरीदने के पैसे उपलब्ध हैं और न ही उनके हाथ में एंड्रोयाड फोन है कि वो अपनी जरूरत की सामग्री नेट पर ढूंढ सकें। ऐसे बच्चों के लिए सार्वजनिक पुसकालय ही एक मात्र साधन होता है जहां उनकी शैक्षणिक जरूरतें पूरी होती है।

डॉ०नम्रता कहती है कि संस्कारशाला का कंसेप्ट भी कुछ इसी प्रकार का है। बड़े-बड़े निजी स्कूलों और सरकारी सकूलों के बीच के फर्क को कम करने के मकसद से ही संस्कारशाला की स्थापना की गई है। इस संस्कारशाला में गरीब और असहाय बच्चों के साथ साथ सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए आधुनिक शिक्षा के साथ संस्कार भी उपलब्ध कराने की कोशिश की जाती है। हालांकि ये कोशिश अभी अपने प्रारंभिक चरण में है। लेकिन जल्द ही इसके परिणाम समाज में दिखने लगेंगे।

डॉ० नम्रता आनंद की शिक्षा दीक्षा बेहतर तरीके से हुई है। समाज में परिवार की प्रतिष्ठा मिलती रही है, लेकिन अपने कालेज जीवन से ही वह स्लम के बच्चों के दीदी जी बन गई थी। अपने छात्र जीवन से ही नम्रता स्लम के बच्चों को शिक्षित करने की मुहीम में जुट गई थी। अपने पाकेटमनी से वह उन स्लम के बच्चों के लिए कॉपी, किताब, पेंसिल और चॉकलेट्स लेकर जाती थी और पढ़ाती थी। बदले में बच्चे उन्हें दीदीजी कह कर प्यार देते थे और धीरे धीरे नम्रता अपने कॉलेज लाइफ में नम्रता आनंद से दीदीजी बन गई।

दीदीजी के रूप में नम्रता आनंद को आसपास ऐसी प्रसिद्धि मिली कि जब इन्हें अपने समाजसेवा को संगठित और सिस्टेमेटिक रूप से करने के लिए एक रजिस्टर्ड संगठन की जरूरत पड़ी तो इन्होंने अपने संगठन का नाम ही दीदीजी फाउंडेशन रख लिया। लेकिन खास बात यह है कि दीदीजी फाउंडेशन को 15 साल बाद भी अभी तक कोई भी सरकारी सहायता नहीं मिली है। इस बावत नम्रता कहती हैं फाउंडेशन को जब सरकारी सहायता मिलेगी तब मिलेगी।उसके इंतजार में अपना काम नहीं रोका जा सकता है। मुझसे और मेरे सहयोगियों से जो बन पड़ता है, हम सब लगातार करते रहते हैं। और आगे भी करते रहेंगे। कोरोना के दोनों ही लहर में दीदीजी फाउंडेशन के बैनर तले नम्रता आनंद ने हजारों लोगों को मास्क और सेनेटाइजर और साबुन का वितरण किया। यह वितरण कार्य तब उन्होंने किया जब कोरोना के डर से लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे। यहां तक कि डाक्टरों का क्लिनिक तक बंद पड़ा था। इन सामग्रियों के वितरण के बहाने नम्रता सड़कों , गलियों और गांवों तक जाती थी और कोरोना गइडलाइन को लेकर जागरूकता भी फैलाती थी। नम्रता ने पहले तो मास्क खरीद कर वितरित किया फिर बाद में जब ये महंगा लगने लगा तो इन्होंने कुछ जरूरतमंद महिलाओं को अपने फाउंडेशन की ओर से सिलाई मशीन उपलब्ध करा कर और मास्क निर्माण की ट्रेनिंग देकर मास्क निर्माण का रोजगार भी उपलब्ध कराया। अच्छी बात ये है कि इनमें से कुछ महिलाए आज भी मास्क निर्माण कर अपना रोजगार कर रही हैं।
इतना सब के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोवल कायस्थ कांफ्रेस (जीकेसी) की बिहार प्रदेश का अधयक्ष पद भी वो संभाल रही हैं। इस बावत वो कहती हैं इस संस्था से जुड़ना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन ने मुझे इस पद से सुशोभित किया। संस्था की प्रबंध न्यासी रागिनी रंजन से मुलाकात के बाद तो मुझे लगा कि सही जगह मैं आ गई हूं। और आज मुझे गर्व है कि जीकेसी की मैं बिहार की प्रदेश अध्यक्ष हूं।

इसके अतिरिक्त नम्रता आनंद एक रोटेरियन भी हैं। रोटरी क्लब में भी इनकी सक्रिय भागीदारी होती है। रोटरी क्लब की ओर से भी समाज सेवा के कार्यों में ये अपनी हिस्सेदारी निभाती रहती हैं।

नम्रता आनंद एक पारिवारिक महिला हैं, इनके दो बच्चे भी हैं, फिर भी इतना सबकुछ कैसे कर पाती हैं। इसके जवाब में वो कहती हैं कि मैं कुछ अतिरिक्त नहीं करती। बस जो कुछ सामने दिखता है या जो संभव हो पाता करती चली जाती हूं। कोई प्लानिंग नहीं होती, कोई योजना नहीं बनाती, समाज सेवा योजना और प्लानिंग से हो भी नहीं सकती । इसके लिए सिर्फ एक ही शर्त है जरूरत पर उपलब्धता और मेरी कोशिश होती है किसी की जरूरत पर मै उपलब्ध रहूं। मैं यही करती हूं और समाज सेवा होता चला जाता है।
———–

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button