तारीख़ पर तारीख़।….
पटना डेस्क:-चाहे सीबीआई हो, या कोई कमीशन, सब केवल टाइमपास करते हैं या फिर आम लोगों को प्रताड़ित । सुशांत, सुनंदा, श्रद्धा हो या हिरण, हथिनी, किसी को न्याय नहीं मिलता, मिलती हैं तो तारीख़ पर तारीख़, वो भी इसलिए कि समय के साथ, प्रमाण मिट जाए और लोग भूल जाएं, व्यवस्था का विरोध न करें और पेट्रोल, प्याज़ में ही भटकते रहें। विरोध हो भी जाए, तो लूप होल्स, संशोधन, बोलकर, लोगों का ध्यान भटकाओ और अपराधियों को बचाओं। मनुवाद में महिलाएं बोरी, अटैची या टुकड़ो में नहीं मिलती थी। महिलाएं ही यह तय करे कि उन्हें घूँघट में जीवित रहना पसंद हैं या अटैची या फ्रिज में, टुकड़ो में मिलना और विद्रोह के लिए तैयार रहें। तारीख़ पर तारीख़ में, केवल धन खर्च होता हैं, न्याय नहीं मिलता। पता सबकों हैं, पर चुप रहना हैं क्योंकि बोलने की स्वतंत्रता जो हैं। विजय सत्य की ही होगी।