कुणाल कुमार / पटना। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव रामनरेश पाण्डेय ने कहा है कि महागठबंधन सरकार द्वारा लागू किये गए 65 फीसद आरक्षण का खारिज होना दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के साथ अन्याय है। राज्य सरकार पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी केंद्र सरकार से बिहार के नये आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करती है।
भाकपा राज्य सचिव रामनरेश पाण्डेय ने कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 27 नवंबर 2023 को ही केंद्र सरकार से बिहार के नये आरक्षण कानून को तत्काल संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की थी ताकि आरक्षण को लेकर न्यायालय में कोई पेच नहीं फंसे। केंद्र सरकार इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया और मामला कोर्ट में फंस गया। आरक्षण कानून नौवीं अनुसूची में शामिल रहता तो कोर्ट से खारिज नहीं होता। भाजपा जातीय जनगणना और आरक्षण का विरोधी रहा है। ज्ञात हो कि कोर्ट में जाने वाले व्यक्ति भी भाजपा से जुड़े हैं।
भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि कई अन्य राज्यों ने भी आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने के बाद आरक्षण कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग केंद्र से की है। तमिलनाडु में आरक्षण सीमा 69 प्रतिशत तक बढ़ाई गई है।
भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि महागठबंधन की सरकार ने बिहार में जातीय गणना के बाद राज्य में आरक्षण का दायरा बढ़ाते हुए दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अतिपिछड़ों के आरक्षण में बढ़ोतरी की थी। दलितों को 20 फीसदी, आदिवासीयों को दो फीसदी, पिछड़ों को 18 फीसदी और अतिपिछड़ों के लिए 25 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया था। इसके अलावे पहले से सवर्ण वर्ग को मिलने वाला 10 फीसदी आरक्षण लागू रहेगी की घोषणा की थी। बिहार में आरक्षण की सीमा 60 फीसदी से बढ़ाकर 75 फीसदी कर दी गई है। अब हाई कोर्ट ने नए आरक्षण कानून को खारिज कर दिया है। राज्य सरकार जल्द से जल्द हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र सरकार से बिहार के नये आरक्षण को तत्काल प्रभाव से संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने की गारंटी करे।