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भील या डाकू।..

पटना डेस्क:-भील सनातनी भाषा में पुलिस को कहते थे, जब ब्रिटिश पुलिन व्यवस्था थोपी गई, तब जो भील थे, जो भोलाई कर वसूलते थे, तो वो घोड़ों पर कर वसूलने जाते रहे, इस प्रकार धीरे धीरे वह डाकू के रूप में प्रचारित किये गए और फिर वास्तव में डाकू बन गए। अंग्रेजों ने सैन्य साजो सामान बनाने वाले व -आंतरिक सुरक्षा दलों को अपराधी जनजाति में डाल दिया औ उनकी प्रताड़ना का आरोप ब्राह्मणों पर लगाकर, अपने विश्वस्व चापलूसों की सहायता से,, इस प्रकार से इतिहास लिखा और उसे सुंनियोजित तरीके से आयोजित करवाया की, भारतीय आपस में लड़ने लगे और उनके द्वारा लिखे ब्रिटिश संविधान का विरोध न कर पाए। सारांश यह हैं कि वर्तमान में जो शोषित वर्ग हैं, वह घोड़े पर भी चढ़ता था, दाड़ीमूछ भी रखत था, लेकिन उनके टंट्या भील, बिरसा मुंडा जैसे पूर्वजों ने जिस ब्रिटिश कानूनों के विरोध में अपना बलिदान दिया था, आज वह उन्हीं कानूनों का सबसे बड़ा समर्थक बन गया हैं और वह सत्य मानने लगा हैं, जैसा उन्हें पढ़ाया और बताया गया।

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