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*अरवल का नया संकल्प – “अरवल का नेता, अरवल का बेटा।

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण की अधिसूचना जारी होते ही राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। नामांकन की प्रक्रिया 13 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक चलेगी। इस बीच अरवल विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी मोहन कुमार ने अपने क्षेत्रीय दौरे के दौरान समर्थकों और मीडिया से बातचीत में बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि अब अरवल जिला बाहरी उम्मीदवारों को स्वीकार नहीं करेगा।

मोहन कुमार ने कहा है कि 21वीं सदी अब युवावस्था में प्रवेश कर चुका है और इसी के साथ अरवल के युवा भी अपने भविष्य और विकास को लेकर अधिक सजग और जागरूक हो गए हैं। उनका कहना है कि अब यह समझ आ गया है कि अरवल का विकास केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो इस क्षेत्र की मिट्टी, संस्कृति, समस्याओं और जनता के मनोभाव को गहराई से समझता हो। बाहरी नेताओं द्वारा लंबे समय से नेतृत्व किए जाने के बावजूद विकास की गति अपेक्षाकृत धीमी रही है। इसलिए अब जनता ने ठान लिया है कि नेतृत्व अरवल के ही किसी स्थानीय, ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति के हाथों में जाएगा।

मोहन कुमार ने तीखे शब्दों में कहा है कि पिछले चार दशकों से अरवल की राजनीति बाहरी चेहरों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। जिन लोगों ने अरवल का प्रतिनिधित्व किया है, वे स्थायी रूप से जिले से जुड़े नहीं रहे हैं। परिणामस्वरूप, क्षेत्रीय मुद्दे जैसे—बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं आज भी अधूरी हैं। उन्होंने कहा है कि यह चुनाव केवल प्रतिनिधि चुनने का नहीं है, बल्कि राजनीतिक परिपक्वता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनेगा। अरवल में बड़ी संख्या में युवा मतदाता हैं। मोहन कुमार का मानना है कि यह वर्ग अब जाति, धर्म और दलगत राजनीति से ऊपर उठ चुका है। उन्होंने कहा है कि अरवल के युवा बदलाव की बयार बनेंगे। वे ऐसे उम्मीदवार को वोट देंगे जो अरवल की मिट्टी से जुड़ा हो और विकास के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण रखता हो।

मोहन कुमार ने अपने बयान में राजनीतिक दलों को भी चेताया है। उन्होंने कहा है कि अब राजधानी में बैठे शीर्ष नेता यह सोच लें कि वे किसी बाहरी व्यक्ति को टिकट देकर अरवल में जीत हासिल कर लेंगे, तो यह उनकी भूल साबित होगी। जनता अब “थोपे गए उम्मीदवारों” को मत नहीं देगी। यह चुनाव अरवल की राजनीतिक सोच को नया आयाम देगा और यह साबित करेगा कि जनता अपने नेतृत्व का चयन स्वयं करना जानती है।

मोहन कुमार का यह बयान अरवल की राजनीति में नई हलचल पैदा कर गया है। स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार की बहस अब मुख्य मुद्दा बन चुका है। यह तय है कि इस बार का विधानसभा चुनाव अरवल के लिए केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं है, बल्कि राजनीतिक स्वाभिमान और आत्मनिर्णय की परीक्षा भी होगा। जनता ने संकेत दे दिया है “अरवल का नेता, अरवल का बेटा।”
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