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एनीमिया जागरूकता: मातृ मृत्यु रोकने के लिए प्रथम एएनसी से पोषण और जांच पर ध्यान आवश्यक

एचएससी बैठक में स्वास्थ्य व्यवस्था को और प्रभावी बनाने पर जोर — संस्थागत प्रसव से घटेगा एनीमिया व पीपीएच का जोखिम

किशनगंज,14अक्टूबर(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, एनीमिया केवल खून की कमी नहीं, बल्कि गर्भवती महिलाओं के जीवन के लिए मौन खतरा है। गर्भावस्था के दौरान आयरन की कमी मातृत्व को कमजोर कर देती है और प्रसव के समय पोस्टपार्टम हेमरेज (पीपीएच) जैसी गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकती है। इसी विषय पर आज पोठिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में आयोजित हेल्थ सोसाइटी कमिटी (एचएससी) की बैठक में जिले में एनीमिया और पीपीएच से निपटने की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की गई।

बैठक में स्वास्थ्य कर्मियों को निर्देश दिया गया कि गर्भवती महिलाओं की प्रथम एएनसी जांच, आयरन-फोलिक एसिड वितरण और संस्थागत प्रसव सुनिश्चित किया जाए।

एनीमिया: मातृ मृत्यु का मौन कारण

सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने कहा कि एनीमिया आज भी ग्रामीण इलाकों में मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है। उन्होंने कहा, “गर्भावस्था में एनीमिया को नज़रअंदाज़ करना जीवन के लिए खतरा बन सकता है। इसकी शुरुआती पहचान और समय पर उपचार से मातृ स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाया जा सकता है।” उन्होंने बताया कि जिले के सभी सीएचसी, पीएचसी और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर गर्भवती महिलाओं की हीमोग्लोबिन जांच और आयरन वितरण को और सशक्त किया जा रहा है।

प्रथम एएनसी: सुरक्षित मातृत्व की नींव

महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शबनम यास्मीन ने कहा कि प्रत्येक गर्भवती महिला को गर्भधारण के तुरंत बाद पहली एएनसी जांच करानी चाहिए। उन्होंने बताया, “एनीमिया और पीपीएच की रोकथाम की शुरुआत प्रथम एएनसी से होती है। यदि कमी पाई जाती है तो समय पर दवा, पोषण और देखरेख से जटिलताओं को रोका जा सकता है।” उन्होंने आह्वान किया कि स्वास्थ्य कर्मी हर गर्भवती महिला तक यह संदेश पहुँचाएं कि ‘पहली जांच ही सुरक्षित मातृत्व की कुंजी है।’

संस्थागत प्रसव से घटेगा जोखिम

सिविल सर्जन ने कहा कि जिले के सभी अस्पतालों में एनीमिया और पीपीएच से निपटने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। ब्लड स्टोरेज यूनिट, आपातकालीन दवाएं, प्रशिक्षित डॉक्टर और नर्सिंग टीम 24 घंटे उपलब्ध रहती हैं। उन्होंने कहा, “संस्थागत प्रसव ही एनीमिया या पीपीएच जैसी स्थितियों में सुरक्षा की गारंटी है। अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ और रक्त की उपलब्धता से मां और नवजात दोनों की जान बचाई जा सकती है।”

संतुलित आहार और जागरूकता ही बचाव का मूल

डॉ. शबनम यास्मीन ने बताया कि एनीमिया से बचाव में संतुलित आहार महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, दालें, मांस, अंडा और मछली को आहार में शामिल करें। भोजन के तुरंत बाद चाय या कॉफी से परहेज़ करें। आयरन और फोलिक एसिड की गोलियों का नियमित सेवन आवश्यक है।”

समुदाय में जागरूकता अभियान

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. देवेंद्र कुमार ने बताया कि एनीमिया और पीपीएच नियंत्रण के लिए सामुदायिक स्तर पर निरंतर अभियान चलाया जा रहा है। फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मी घर-घर जाकर जांच, परामर्श और आयरन फोलिक एसिड वितरण सुनिश्चित कर रहे हैं।

बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि सभी स्वास्थ्य केंद्र एनीमिया मुक्त गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिए विशेष सत्र आयोजित करेंगे और संस्थागत प्रसव की दर बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

मातृ स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में निरंतर प्रयास

सिविल सर्जन ने कहा, “सुरक्षित मातृत्व तभी संभव है जब महिलाएं अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। एनीमिया की रोकथाम, संतुलित आहार, नियमित जांच और संस्थागत प्रसव — ये चार कदम मातृ मृत्यु दर को कम करने में हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं।”

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