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कला, संस्कृति, नाटक तथा वास्तुकला के अध्ययन के लिये जानी जाती है ब्रिटेन की लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी।…

सुमित राज यादव:-अंग्रेज़ी के विश्वविख्यात नाटककार शेक्सपीयर ने किस प्रकार मैकवेथ, ओथेलो और मच एडू अबाउट नथिंग जैसे नाटकों को शब्द दिये। कैसे विलियम वर्ड्सवर्थ ने इंग्लैंड की प्राकृतिक छटा को अपनी कविता का हिस्सा बनाया, इन्हें यदि ठीक से समझना हो तो उसी धरती पर उतरना होगा जहाँ ये भाषा जन्मी और जहाँ ये कवि जन्मे। पिता की इस इच्छा को अमली जामा पहनाया ठाकुरगंज के एक लाल ने। शालीन भारतीय जिन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में बी.ए. आनर्स तथा पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ से अंग्रेज़ी साहित्य में ही एम.ए. एवम् एम.फिल. की है, आज उच्च शिक्षा के लिये ब्रिटेन की लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी पहुँच गये हैं।

शालीन के चाचा सुभाष कुमार यादव ने बताया कि वहाँ इनका प्रवेश ‘मास्टर इन जेन्डर स्टडीज एण्ड इन्ग्लिश’ में हो गया है। कल रात इनके पिता एवं माता ने नयी दिल्ली के इन्दिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन पर ब्रिटेन के मैनचेस्टर विमानपत्तन के लिये शालीन को विदा किया। ध्यातव्य है कि शालीन के पिता डॉ. प्रमोद भारतीय स्वयं एक संवेदनशील साहित्यकार हैं और कई भाषाओं में वर्षों से लिखते रहे हैं। डॉ. भारतीय ने बताया कि साहित्य शालीन को न केवल माता-पिता से विरासत में मिला है बल्कि यह उसके रक्त में भी रचा-बसा है। शालीन के पितामह स्व. माणिक चन्द्र यादव अपने समय में गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस की चर्चाओं में न केवल रस लिया करते थे बल्कि नित्य इनकी चौपाइयों का सस्वर पाठ भी किया करते थे। डॉ. भारतीय के अग्रज और नगर के वरिष्ठ समाजसेवी विनोद यादव ने बताया कि ब्रिटेन के जिस लंकाशायर में अवस्थित लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी में शालीन अंग्रेज़ी साहित्य के अध्ययन के लिये पहुँचे हैं, आज से 75 साल पहले अपने परिवार के ही एक सदस्य जोगेश्वर प्रसाद यादव भी मायनिंग इन्जीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिये गये थे। आज परिवार में इतिहास ने अपने को दुहराया है।

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