पार्ट ११: कहाँ गए वो दिन?

बिहार प्रदेश के पूर्व महानिर्देशक की कलम से
फ़िजिक्स का विद्यार्थी था, विज्ञान की बातें अच्छी लगती थीं। समाज में साम्प्रदायिकता का माहौल समय-समय पर गरम अवश्य हो जाता था, परन्तु घर के अंदर इन विषयों पर चर्चा नहीं हुआ करती थीं। इसलिए बाहर जो हो रहा था, उसका असर दिमाग पर कम ही पड़ता था।
ऐसे ही माहौल से सीधे निकला और फ़िजिक्स पढ़ कर IPS हो गया। कम उम्र में पुलिस की ट्रेनिंग, जिसमें सैद्धांतिक और कानूनी बातें बताई जाती हैं, सीख कर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी बन, सासाराम में पदस्थापित कर दिया गया।
समाज की जितनी भी विकृतियाँ हो सकती हैं, वह प्रत्यक्ष रूप से साफ़-साफ़ दिखने लगीं। जिन विकृतियों से परिवार ने मुझे बचा कर रखा था, कि केवल पढ़ने पर ध्यान रहे, वे वीभत्स रूप में सामने खड़ी थीं, न केवल समझने के लिए बल्कि उत्तरदायित्व के साथ सुलझाने के लिए भी। हर पर्व में, चाहे वह किसी भी समुदाय का हो, समाज के अंदर तनाव होना अवश्यम्भावी था। पुलिस की प्रतिक्रिया भी “पीछे देख आगे चल” वाली ही थी। 107 Cr.P.C की कार्रवाई, संवेदनशील स्थानों पर पुलिस की टुकड़ी की तैनाती, असामाजिक तत्वों की गिरफ़्तारी, आदि हो गई, तो पुलिस का काम हो गया। अब ज़िला प्रशासन इश्वर से प्रार्थना कर सकता है कि पर्व और जुलूस शान्ति पूर्वक बीत जाएँगे। बीत गए तो ज़िन्दगी की गाड़ी आगे बढ़ जाएगी और ऐसा नहीं हो पाया तब ज़िन्दगी अनेक प्रकार के जाँच-रुपी स्पीड ब्रेकर में फँस जाएगी, जिसका दूरगामी प्रभाव हो सकता है। ऐसे ही एक व्यक्ति से मुलाक़ात हुई जो पुलिस की निरोधात्मक कार्रवाइयों का विषय हर वर्ष बार-बार बनता था। उसकी वही नियति थी। चूँकि विद्यार्थी रूप में प्रश्न करने की ट्रेनिंग मिली थी और पुलिस की ट्रेनिंग में प्रश्न नहीं करके केवल वरीय लोगों के आदेश पालन को ही कर्त्तव्य मान कर पूरा करना है का रंग अभी पूरी तरह चढ़ नहीं पाया था, मैंने अपनी पुरानी प्रकृति का सहारा लिया।
कोई 107 नहीं, कोई पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति नहीं, कोई निरोधात्मक कार्रवाई नहीं। जो दो व्यक्ति शान्ति के सबसे बड़े बाधक माने जाते थे, दोनों समुदाय से उनसे मैंने अलग-अलग वार्ता की और समझाया कि आप लोगों पर कोई निरोधात्मक कार्रवाई नहीं होगी। आप दोनों जुलूस के दौरान एक ही स्थान पर रहेंगे, आम लोगों के सामने। जिस समुदाय का जुलूस होगा, उसको दुसरे समुदाय का व्यक्ति लीड करेगा। दोनों ही अपने-अपने स्थान पर बहुत समझदार थे, परन्तु भावनाएँ कट्टर थीं। मेरे अनुरोध पर वे मान गए।मुझे एहसास हुआ कि मैं पुलिस की परम्पराओं को तोड़ रहा हूँ। मैंने पुलिस मुख्यालय में बहुत ही वरीय पदाधिकारी से सलाह ली। उन्होंने मुझे बताया कि तुम्हारी नियत अगर ठीक है और तुम इसको मनोयोग से करोगे तो सफल भी हो सकते हो। मुझे हमेशा ऐसा लगता था यह सब कार्रवाई मेरे लिए निरोधात्मक हैं, उनके लिए नहीं। वह रात आई। जुलूस निकला। साँस रोक कर मैं उन दोनों महानुभावों के साथ उस संवेदनशील चौराहे पर खड़ा था जहाँ आम आदमी डर से आते नहीं थे। इस वर्ष अपार भीड़ थी। रंग-बिरंगे लिबास में दोनों समुदाय के लोग – बच्चे, जवान, बूढ़े, औरत, मर्द, सभी ख़ुशी के माहौल में जुलूस का आनंद ले रहे थे।अगर कोई सबसे अधिक तनावग्रस्त था, तो वो था मैं। मैंने सभी पुलिस की परम्पराएँ तोड़ दी थीं। मुझे विश्वास था मनुष्य के अंदर की खूबसूरती पर। सुबह तक जुलूस अपने करतब दिखाता रहा। मैं लगातार वर्दी में जुलूस के साथ रहा। सबसे अधिक ख़ुशी तब हुई जब दुसरे समुदाय के नेता ने लाठी से करतब दिखानी शुरू की और माहौल खुशनुमा हो गया।मैं तनावमुक्त हुआ। ज़िन्दगी की गाड़ी बढ़ी।