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पार्ट ५: कहाँ गए वो दिन?

लेखक:- बिहार प्रदेश के पूर्व महानिदेशक की कलम से

वर्ष 1981। बिहार का अत्यंत पिछड़ा क्षेत्र जहाँ मानवीय चेतनाओं का भी अभाव हुआ करता था। क्षेत्र का नाम कोसी। उस अविकसित छेत्र के एक अधिक अविकसित भाग में विधान सभा के उपचुनाव होने थे। अपरिपक्व 4 साल की नौकरी वाले पुलिस अधीक्षक के रूप में ज़िम्मेदारी दी गई थी।पहला अनुभव हो रहा था। जिस अनुभूति को सबसे अधिक महत्व मैं दे रहा था, वह था “निष्पक्ष” चुनाव। मेरे हर प्रयास का उद्देश्य निष्पक्ष चुनाव ही था। आप पूछेंगे क्यों?
प्रजातंत्र की आधारशिला ही चुनाव है। अगर चुनाव पर ही प्रश्न चिह्न लग गया, तब आम आदमी का प्रजातंत्र से विश्वास ही उठ जाएगा। इस विश्वास को हम आस्था कहते हैं। सामाजिक संरचनाएँ आस्था पर आधारित होती हैं। आस्था टूटी, सामाजिक संरचनाएँ बिखर जाएंगी, फ़िर किसी भी पुलिस के लिए उसे संभालना असंभव हो जाएगा। उस दौरान, राज्य के मुख्यमंत्री प्रचार में अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ, गाड़ियों का काफ़िला लिए निकल पड़े। नियमानुसार, DM और SP को भी उस काफ़िले में शामिल होना था। दोनों ने सरकारी आदेशों का पालन किया।काफ़िला 9 बजे, सुदूर एक गाँव में रुका। एक मकान में, दल के नाम से बोर्ड टंगा था जिसमें सत्ताधारी पार्टी का कार्यालय होना अंकित था। मुख्यमंत्री सहित उनके मंत्रिमंडल के सदस्य, सभी उतर कर पार्टी कार्यालय में एक लाइन से नाश्ते के लिए बैठ गए। हम दोनों अपनी सरकारी जीप में ही बैठे रहे। उस समय, SP खुली जीप में ही चला करते थे ताकि वह जनता को देख सके, और जनता उन्हें। दोनों के बीच पर्दा न रहे।तुरन्त मुख्यमंत्री जी का चपरासी दौड़ता हुआ आया और आदेश सुनाया कि मुख्यमंत्री जी नाश्ते के लिए आप दोनों को बुला रहे हैं।हमने टिफिन में अपना भोजन रख लिया था और भोजन पान शुरू भी कर दिया था। चपरासी को हमने कहा कि आप बता दीजिए कि हमलोग अपना भोजन साथ लाए हैं और गाड़ी में ही खा रहे हैं।मुख्यमंत्री जी ने दूसरी बार नहीं कहा।
मुख्यमंत्री का काफ़िला था तो स्थानीय तौर पर, पर हज़ार लोगों की भीड़ थी वहाँ।पदाधिकारियों की निष्पक्षता न केवल होनी चाहिए, बल्कि दिखनी भी चाहिए। प्रजातंत्र की नींव आम आदमी की आस्था पर टिकी है। यह नींव हिले नहीं इसकी पूरी ज़िम्मेदारी चुनाव कराने वाले व्यक्तियों की है, न कि चुनाव लड़ने वालों की। अगर आस्था की नींव हिल गई तो जल्द ही पूरा भवन टूट कर बिखर जाएगा, जिसके मलबे तले चुनाव कराने और लड़ने वाले, दोनों दफ़न हो जाएंगे।समय रहते सजग होना होगा।

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