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*राजकीय संस्कृत महाविद्यालय पटना में युवा दिवस एवं स्वामी विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य में हुआ विशेष व्याख्यान*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना ::राजकीय संस्कृत महाविद्यालय पटना में युवा दिवस एवं स्वामी विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य में ऑनलाइन/ऑफलाइन के माध्यम से विशेष व्याख्यान का आयोजन रविवार को किया गया। कार्यक्रम के संरक्षक कुलपति प्रो लक्ष्मी निवास पाण्डेय ऑनलाइन उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डॉ मनोज कुमार ने किया। संयोजकत्व डॉ ज्योत्सना ने किया। सह संयोजक एवं संचालक डॉ शशिकांत तिवारी ने कार्यक्रम का संयोजन किया।

कार्यक्रम में सारस्वत वक्ता के रूप में डॉ श्रेयांश द्विवेदी, संस्थापक कुलपति महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय ,कैथल ने कहा कि प्रत्येक युवा को स्वामी विवेकानंद के आचार विचार से प्रेरणा लेनी चाहिए। प्राचीन अर्वाचीन का मेल ही विवेकानंद है।उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने कहा था कि धर्म की रक्षा से व्यक्ति तथा समाज की रक्षा होती है। अतः हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए परन्तु अपने सनातन धर्म में समर्पण एवं निष्ठा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वामी जी के सिद्धांत में प्राचीन अर्वाचीन, पूर्व पश्चिम, आदर्श विश्वास, ज्ञान संस्कार एवं विज्ञान अध्यात्म का अदभुत समन्वय दिखता है।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ रंजन कुमार त्रिपाठी, छात्रकल्याण अधिष्ठाता, दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि कर्म की अखंडता की प्रेरणा का नाम ही विवेकानंद है। भविष्योन्मुखी होना ही युवा का प्रथम लक्षण है। स्वामी जी के विषय में विस्तार से चर्चा करते हुए त्रिपाठी जी ने कहा कि आज समाज में जो स्वामी विवेकानंद का चित्र दिख रहा है, वह काल्पनिक मात्र है, असली चित्र कन्याकुमारी के संग्रहालय में सुरक्षित है जिसको पुडुचेरी के चित्रकार ने बनाया है, जिसकी आंखों में लगातार देखना संभव नहीं है। ऐसी कल्पना की जा सकती है कि जिसकी मूर्ति में ऐसी आभा हो उसका वास्तविक स्वरूप क्या होगा।

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि युवा के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद में विज्ञान तथा अध्यात्म का अदभुत समन्वय था। स्वामी जी का व्यक्तित्व शुद्ध रूप से संस्कृतमय था, जिसमें प्राचीन अर्वाचीन का समन्वय था। संस्कृत के छात्रों को उनसे प्रेरणा लेकर अपने लक्ष्य के प्रति के लिए अडिग रहना चाहिए। युवा वही है, जो उत्साही हो, चरित्रवान हो, नवाचारी हो तथा अपने लक्ष्य पर अडिग हो।

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रधानाचार्य डॉ मनोज कुमार ने कहा कि युवाओं के विकास हेतु एवं संस्कृति की रक्षा के लिए यह महाविद्यालय सदैव कटिबद्ध है। संयोजिका डॉ ज्योत्सना ने कहा कि युवाओं को गुरु शिष्य परंपरा का पालन करते हुए राष्ट्र हित में अपना योगदान देना चाहिए।

उक्त अवसर पर प्रो उमेश शर्मा, डॉ शिवानंद शुक्ल, डॉ अलका कुमारी , डॉ विनीता सुप्रिया, विवेक कुमार तिवारी आदि विद्वान उपस्थित थे।

कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने बढ़चढ कर हिस्सा लिया। ऑनलाइन माध्यम से भी अनेक शिक्षक एवं छात्र जुड़े रहे।

प्रधानाचार्य ने आश्वासन दिया है कि इस प्रकार का आयोजन प्रति माह किया जाएगा, जिसमें शास्त्र चर्चा की जाएगी।
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