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लाभार्थियों को सीधे पहुंचेगा लाभः-बिचौलियों की अब खैर नहीं:-अशोक कुमार

बक्सर ज्ञान,कर्म,तपस्या एवं बलिदान की धरती बक्सर हमेशा से संघर्ष करती आ रही है एवं इसी संघर्ष करने वाली धरती ने अनेकों महापुरुष पैदा किये तो बहुतों ने इसे अपनी कर्मभूमि बनाकर ऐतिहासिक, पौराणिक एवं धार्मिक महत्व को बरकरार रखा है।हम बात करेंगे यहां के चौसा प्रखंड की एवं वहां पर पदस्थापित वर्तमान प्रखंड विकास पदाधिकारी की।चौसा का ऐतिहासिक महत्व हमेशा से रहा है,यहाँ सभ्यताएं विकसित रही है।गंगा नदी के तीर पर बसा यह क्षेत्र का एक छोर कर्मनाशा तो दूसरा गंगा नदी यूपी से अलग करती है।कृषि के दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण रहा है।वर्तमान में चौसा के प्रखंड विकास पदाधिकारी के रूप में बहुमुखी प्रतिभा के धनी,शांतिप्रिय,मृदुभाषी एवं तीखे तेवर वाले श्री अशोक कुमार पदस्थापित है।मूल रूप से रोहतस के रहने वाले अशोक कुमार जहाँ भी रहे है,अपनी योग्यता कर्मठता,दक्षता एवं अनुभव का परिचय कराकर सुर्खियों में रहे है।केंद्र एवं राज्य सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाओं को प्रखंड में मजबूती से लागू करने के साथ-साथ बिचौलियों से प्रखंड को मुक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।लाभार्थी तक सारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है या नहीं यह जानने के लिए किसी भी वेश में लाभार्थी तक पहुंच उसकी जायजा करते रहते है।क्षेत्र विकास के लिए दिन-रात प्रयत्नशील अशोक हमेशा पारदर्शिता के साथ लोगो के बीच रहकर ही कार्यो को निष्पादन करते एवं लाभार्थी किसी भी हाल में न छूटे उनपर पैनी नजर रखते है।हाड़ कंपा देने वाली ठंढ की रात में घूम-घूमकर बेसहारे एवं जरूरतमंद के बीच कम्बल बांटते नजर आ जाते है।फिलवक्त जब उनकी पोस्टिंग ऐतिहासिक,पौराणिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रखंड चौसा में है,तो इस प्रखंड की महत्ता को बरकरार रखने के साथ साथ कुछ ऐसा नया करना चाहते है जिन्हें सदियों तक याद रखा जाए एवं वह परम्परा जीवंत रहे।आपको बताते चले कि ऐतिहासिक युद्ध 25 जून 1539 को शेरशाह एवं हुमायूं के बीच चौसा के मैदान में ही लड़ा गया था,जहाँ हार एवं जान बचाने के लिए हुमायूं को गंगा नदी में कूदकर भागना पड़ा था,उस मैदान में आज भी शिलालेख मौजूद है,वही खुदाई करने से पुरानी सभ्यता भी स्पष्ट दिखाई पड़ गयी है।मैदान के चारदीवारी का काम शुरू हो गया है,जल्द ही इस एरिया को विकसित करने की विचार है जिससे इतिहास प्रेमी इस जगह पर आकर सदियों पुरानी परंपरा से जुड़े।महादेव घाट जहां च्यवन ऋषि रहते थे,जिन्होंने च्यवनप्राश का अविष्कार किया था,ऐसी मान्यता है कि उनकी कुटिया इसी गंगा नदी के किनारे तट पर थी,जो आज भी मौजूद है।वहां नियमित गंगा आरती शुरुआत कराकर धार्मिक महत्व पर बल देते नजर आए।खुद पहली बार गंगा आरती में शामिल होकर लोगो का मनोबल बढ़ाया एवं आज भी समय-समय पर भाग लेकर एक दूसरे से जोड़ते नजर आ जाते है,यही कारण है कि आज गंगा आरती में सैकड़ो भीड़ रहती है।

रिपोर्ट-श्रीधर पांडे

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