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किशनगंज : पोषणयुक्त खान-पान से आसान होती है स्वस्थ व सेहतमंद ज़िंदगी की राहें।

उचित मात्रा में संतुलित आहार का सेवन, स्वस्थ जीवन का आधार, कुपोषण को जागरूकता से ही कम किया जा सकता है।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, स्वस्थ व सेहतमंद ज़िंदगी के लिये लोगों को उचित व पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है। शरीर की आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिये पोषण युक्त उचित खान-पान को जीवन में शामिल करना जरूरी है। नियमित शारीरिक गतिविधियों के साथ उचित व संतुलित आहार अच्छे स्वास्थ्य का आधार है। खराब पोषण से शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता कम होने लगती है। वैश्विक महामारी के इस दौर में शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता के विकास पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। बढ़ते शहरीकरण प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का उपभोग व बदलते जीवनशैली के कारण हमारे आहार संबंधी व्यवहार में काफी बदलाव हुआ है। इससे लोगों में पोषण से जुड़े कई गलत धारणाएं व अंधविश्वास बढता जा रहा है। जो हमारे संपूर्ण शारीरिक विकास में बाधक बन रहा है। इससे जिले में कुपोषण के मामले भी बढ़ रहे हैं। एनएफएचएस 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में पांच साल से कम उम्र के 38 फीसदी से अधिक बच्चों का नाटेपन का शिकार है। यानि उम्र के हिसाब से उनका कद नहीं बढ़ रहा। वहीं पांच साल तक के 5 फीसदी बच्चे अतिकुपोषित श्रेणी में हैं। इस आयु वर्ग के 41 प्रतिशत बच्चे उम्र के हिसाब से वजन कम है। तो 1.5 प्रतिशत बच्चे ओवर वेट के शिकार हैं। सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने मंगलवार को सदर अस्पताल परिसर में जानकारी देते हुए बताया की शारीरिक विकास में उचित पोषण के महत्व के बारे में लोगो को काफी जागरूक होने की आवश्यकता है उन्होंने कहा की लोगों में अधिक ऊर्जा, वसा, शर्करा व नमक व सोडियम युक्मत खाद्य पदार्थ के सेवन का चलन बढ़ रहा है। पर्याप्त फल, सब्जी व रेशा युक्त साबुत अनाज के सेवन का चलन घटता जा रहा है। जो असंतुलित आहार शैली को बढ़ावा दे रहा है। आहार में विभिन्न खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। जो संपूर्ण स्वास्थ्य, जीवन शक्ति, तंदुरूस्ती व आरोग्यता के लिये जरूरी है। उचित पोषण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अपर्याप्त व असंतुलित आहार का सेवन है। जो कम वजन वाले बच्चों का जन्म व कुपोषण की वजह है। स्वस्थ आहार पद्धति जीवन में जल्दी शुरू होना चाहिये। गर्भावस्था के दौरान पोषण की कमी बाद के जीवन में आहार संबंधी चिरकालिक रोगों की वजह बन सकता है। वहीं स्तनपान बच्चों के समुचित विकास को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा कि उम्र, लिंग, जीवन शैली और शारीरिक गतिविधियां, संस्कृति व स्थानियता के कारण आहार संबंधी मामलों को लेकर जगह-जगह अंतर पाया जाता है। लेकिन स्वस्थ आहार का गठन करने वाले मूल सिद्धांत नहीं बदलते वो हमेशा एक ही होते हैं। असंतुलित आहार सेवन से आज लोग कई तरह के रोग के शिकार हो रहे हैं। जिला कार्यक्रम पदाधिकारी आईसीडीएस सुमन सिन्हा ने बताया कि लोगों को लगता है कि दैनिक आहार से उनके शरीर को पोषण संबंधी सभी जरूरतें पूरी हो रही है। लेकिन कुछ मामलों में ऐसा होता नहीं। आहर विविधता एक महत्वपूर्ण पहलू है। उचित पोषाहार वाले अनाज, फल व सब्जियों की उपलब्धता भी स्थानीय स्तर पर प्रर्याप्त है। लेकिन जागरूकता की कमी से लोग इसका व्यवहार से परहेज करते हैं। जैसे सहजन, शलजम, चुकंदर, गाजर, पपीता, जैसे सहित कई साग जो घर के आस-पास जंगल के रूप में उभर आते हैं। पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। जिला पोषण समन्वयक मंजूर आलम बताते हैं कि उचित पोषण को बढ़ावा देने के लिये पूरा सितंबर माह पोषण माह के रूप में मनाया जा रहा है। विभिन्न स्तरों पर अलग अलग गतिविधियों के माध्यम से लोगों को उचित पोषण से संबंधित जानकारी दी जा रही है। ताकि संतुलित आहार सेवन को बढ़ावा देकर कुपोषण के मामलों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित किया जा सके।

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