बिहार में गर्मी की वजह से कई की गई जान : प्रकृति की वजह से गई है जान, इलाज में कोई कमी नहीं-सिविल सर्जन


पटनाः बिहार इन दिनों भीषण गर्मी की वजह से मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल के लोगों की जानें चली गई है।कई मीडिया कर्मियों द्वारा अलग-अलग आकड़े भी न्यूज़ के माध्यम से प्रस्तुत किए गए।लेकिन इस संबंध में जब औरंगाबाद सिविल सर्जन से समाचार प्रेषण पूर्व रविवार को लगभग दोपहर एक बजे संवाददाता से वार्ता हुई।तब जानकारी देते हुए बताया कि वर्तमान तक 26 रजिस्टर मरीज की मौत हो चुकी है।लगभग 7-8 की संख्या अन रजिस्टर्ड मौत हुई है।प्रकृति की वजह से मौत अवश्य हुई है।इसमें हम लोग क्या कर सकते हैं ? लेकिन जहां तक इलाज का सवाल है तो हम लोगों की तरफ से इलाज में कोई कमी नहीं किया जा रहा है।जब पूछा कि औरंगाबाद सदर अस्पताल में डॉक्टरों की तो कमी है।तब कहा कि डॉक्टर की कमी तो है।लेकिन हम डॉक्टर का डिमांड किए हुए है।आज शाम तक आठ डॉक्टर मिल जाएंगे।जब पूछा कि फिलहाल आपके अस्पताल में कितने डॉक्टर कार्य कर रहे हैं।तब कहा कि 7-8 की संख्या में कार्य कर रहे हैं।वहीं दूसरी ओर बिहार सरकार के राजद शासन काल में पूर्व पर्यटन मंत्री रह चुके डॉ सुरेश पासवान ने बिहार सरकार, जिला प्रशासन, औरंगाबाद सदर अस्पताल प्रशासन पर प्रहार करते हुए कहा है कि 2 करोड़ रुपए की लागत से बनी, ICU अभी तक चालू क्यों नहीं किया गया ? मौत का तांडव लगातार जारी है।इसके बावजूद एक डॉक्टर के द्वारा भगवान भरोसे आम दिनों की तरह मरीज को छोड़ दिया जा रहा है।बिहार सरकार, जिला प्रशासन, अस्पताल प्रशासन बिल्कुल निकम्मा साबित हुई है।सबसे आश्चर्य की बात तो है कि वर्तमान चिकित्सकों का एक विशेष दल मौजूद चाहिए था।लेकिन ऐसी विकट परिस्थिति में भी इतने मरीजो को एकाध डॉक्टर के भरोसे छोड़ दिया जा रहा है।जो काफी चिंता का विषय है।श्री पासवान ने कहा कि अस्पताल वार्ड में पंखा, कूलर, AC का न के बराबर होना अस्पताल प्रबंधन का तो पोल खोलकर ही रख दिया है।हीटवैभ निपटने के लिए अविलंब राज्य मुख्यालय से चिकित्सकों का विशेष कार्य बल मंगाना चाहिए ताकि यूथ स्तर पर उपचार, बचाव कर लोगों को जान बचाया जा सके।श्री पासवान ने कहा कि जिला प्रशासन और मौसम विभाग द्वारा भीषण गर्मी बढ़ने का सार्वजनिक सूचना जारी किया जाता है तो अस्पताल प्रबंधक क्यों नहीं हिटवैभ से निपटने के लिए अपने अधीनस्थ अस्पतालो को एडवाइजरी जारी करता है।बिहार सरकार के मुख्यमंत्री जी के द्वारा क्यों नहीं मुजफ्फरपूर या औरंगाबाद जैसी घटनाओं को स्थाई रोकथाम के लिए परमानेंट रोड मैप तैयार करते हैं ? चुकी यह तो हर साल होने वाली घटना है।इसलिए परिवार के आश्रित को 4 लाख रुपया देने से सिर्फ जवाबदेही खत्म नहीं हो जाती है बल्कि स्वास्थ विभाग के धवस्त सिस्टम को ठीक करने की जरूरत है।एक ही जगह पर कई वर्षों से पदस्थापित डॉ0 जो है, उन्हें अभियान चलाकर दूसरे प्रमंडल में पोस्टिंग किया जाए क्योंकि वे अस्पताल कम और अपने निजी क्लीनिक पर भी ज्यादा ध्यान देते हैं।अस्पताल के अंदर इमरजेंसी दवा भी उपलब्ध नहीं रहने की वजह से मरीजो को बाहर से दवा लाते लाते हालत गंभीर हो जाते हैं।इसलिए सरकार कम से कम इमरजेंसी दवा का भी इंतजाम करें।मैं डबल इंजन की बिहार सरकार से यह मांग करता हु की राज्यस्तरीय एक उच्च स्तरीय समिति पलाश लू की चपेट में आने वाले मरीजों की मौत किसकी लापरवाही से हुई है, इसका जवाबदेही निर्धारित करते हुए सखत कार्रवाई की जाए।साथ ही बीमारी से मरने वाले परिवारों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा एवं 1-1 परिवारों को मानवीय आधार पर सरकारी नौकरी दिया जाए तथा अस्पताल प्रबंधन आपातकाल की तरह चौबीसों घंटे ऐसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहे।वही बिहार में 81 बच्चे की हुई मौत के बाद जब रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन पटना एयरपोर्ट पहुंचे तो एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही जन अधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओं ने काला झंडा दिखाते हुए काफिला को रोकते हुए गाड़ी के नीचे लेट गए।पुलिस ने जबरन कार्यकर्ताओं को हटाकर काफिला को रवाना किया।कार्यकर्ता बच्चों की हुई मौत से नाराज थे।
रिपोर्ट-अजय कुमार पांडे