पति के लंबी उम्र के लिए सुहागिनों ने की वट सावित्री पूजा…

औरंगाबाद आज वट सावित्री पूजा व्रत है।आज ही के दिन सुहागिनें पति की दीर्घायु और परिवार की सुख शांति के लिए वट सावित्री की पूजा करती है।वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का खास महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है।पुराणों की मानें तो वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है।इस व्रत में बरगद पेड़ के चारों ओर घूमकर रक्षा सूत्र बांधा और आशीर्वाद मांगा।इस अवसर पर सुहागिनों एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं।इसके अलावा पुजारी से सत्यवान और सावित्री की कथा सुनती हैं। नवविवाहिता सुहागिनों में पहली बार वट सावित्री पूजा का अलग ही उत्साह रहता है।औरंगाबाद के दाउदनगर में भी आज जगह जगह बरगद वृक्ष के निचे सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए वटसावित्री व्रत करती दिखाई दे रही है।वट सावित्री के व्रत के दिन बरगद पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।इस व्रत में महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं।वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पतिव्रत से पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। दूसरी कथा के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे, तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है।वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है।वट वृक्ष रोग नाशक भी है।वट का दूध कई बीमारियों से हमारी रक्षा करता है।वट सावित्री और वट पूर्णिमा की पूजा वट वृक्ष के नीचे होती है।एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है।एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है।वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं।फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाते हैं।सभी महिलायें वट सावित्री की कथा सुनती हैं और चने गुड् का प्रसाद बांटा जाता है।
रिपोर्ट-शिव ओझा