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तैंतीस रुपए मासिक फीस में बालमंदिर स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने वाले स्टूडेंट का दर्द…

पिछले दो दशकों से स्कूल का गिरता स्तर कारण वन मैन शो ?

किशनगंज समाज का हर तबका शिक्षित हो, इस सपने को देखते हुए बालमंदिर स्कूल की नींव रखने वाले, संस्थापक स्वर्गीय हंसराज बागरेचा, स्वर्गीय रावतमल अग्रवाल, स्वर्गीय हनुमान बख्श जालान, स्वर्गीय चांदमल सरावगी ने कभी यह नही सोचा होगा कि स्कूल का स्तर इतना ज्यादा गिर जाएगा कि समाज ही इसका विरोध करने लगेगा। 1992 तक बिहार बोर्ड और उसके बाद सीबीएसई बोर्ड के माध्यम से पढ़ाई, 300 छात्रों से 3500 छात्रों तक का सफर तय करने वाले बालमंदिर स्कूल में विगत दो दशकों में काफी बदलाव हुआ है और यह बदलाव स्कूल के संस्थापको के मूल उद्देश्य से भटका हुआ नकारात्मक बदलाव है।1973 में हुई स्कूल की स्थापना से लेकर दो दशक पूर्व तक शिक्षकों की बहाली, शिक्षा की गुणवत्ता, समाज के हर तबके को बेहतर शिक्षा के लिए मिनिमम मासिक शुल्क, स्कूल संस्था की बेहतरी, शिक्षा का व्यवसायीकरण न हो इन सभी मुद्दों पर विशेष ध्यान स्कूल प्रबंधन टीम की आपसी तालमेल से होता आ रहा था, जिस कारण स्कूल स्थापना के शुरुआती दौर में ही किशनगंज ही नही बल्कि आसपास के क्षेत्र के लोगो को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब रहा और समीपवर्ती क्षेत्रो से लोग अपने बच्चो को स्कूल में पढ़ाने के लिए बाल मंदिर स्कूल भेजने लगे।

स्कूल की स्थापना के शुरुआती ढाई दशक की बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्कूल ने आईपीएस, डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, इंजीनियर सहित कई क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल करने वाले ज़िम्मेदार नागरिक तैयार किए।

वैसे तो बीते दो दशकों से लगातार स्कूल की साख गिरती जा रही थी किन्तु 11 वी कक्षा की छात्रा हर्षिता कुमारी के आत्महत्या के बाद स्कूल कलंकित हो चुका है,स्कूल प्रबंधन में वन मैन शो के कारण पूर्व में भी और वर्तमान में भी स्कूल की साख को बट्टा लगा है।स्कूल को अपनी साख पूर्ववत करने में काफी समय लगेगा, काफी बदलाव करने होंगे, संस्थापको के उद्देश्य और सपनों को ध्यान में रखकर बदलाव किए जाने से स्कूल की प्रतिष्ठा पूर्ववत हो सकेगी। स्कूल के शिक्षक हो, छात्र हो, समाज के गणमान्य लोग हो ज्यादातर यह मानते है कि सचिव गोविंद बिहानी की गुटबाजी का परिणाम है छात्रा हर्षिता की आत्महत्या ?

10 साल पहले स्कूल से हटाये गए थे गोविंद बिहानी

गोविंद बिहानी वन मैन शो की तानाशाही नीति पर चलते है, उनकी दरबारी करने वाले 4-6 लोगो की स्कूल में तूती बोलती है, बिना प्रबन्धन टीम से विमर्श किए अपने और अपने गुट के लोगो का स्वार्थ सिद्ध होने वाले निर्णय खुद ही लागू कर लेते है जिस कारण इस संस्था की मट्टी पलीत होती जा रही है।जानकारी के अनुसार छात्रा हर्षिता की आत्महत्या के आरोपी वाईस प्रिंसिपल संजय साहा भी गोविंद बिहानी गुट का ही हिस्सा थे, बताया जा रहा है कि छात्रों का मानसिक और आर्थिक दोहन करने वाले शिक्षक अभी भी स्कूल में सक्रिय है और इन दोहन करने वाले चंद शिक्षकों की गोविंद बिहानी से काफी नजदीकी है।बताते चले कि वर्ष 2009 में भी गोविंद बिहानी स्कूल के सचिव थे, उस समय एक स्कूली छात्रा के साथ छेड़छाड़ का मामला सामने आया था।छात्रा के परिजनों ने इसकी शिकायत गोविंद बिहानी से करने की काफी कोशिश की किन्तु अपने अहंकार में डूबे सचिव गोविंद बिहानी ने पीड़ित छात्रा के परिजनों से मिलकर उनकी शिकायत सुनना मुनासिब नही समझा।जिस कारण मामला स्थानीय जिला प्रसाशन के पास चला गया और गोविंद बिहानी को अपना पद छोड़ना पड़ा था।2009 की यह घटना अपने आप मे एक सबक थी, फिर क्या कारण थे, क्या मजबूरियां थी कि इतनी बड़ी लापरवाही के कारण पद से हटाए जाने वाले गोविंद बिहानी को पुनः सचिव के पद पर बैठाया गया ? यह विचारणीय है।

सारे सक्षम ट्रस्टी होने के बाद इस संस्था का व्यवसायीकरण क्यों

वर्तमान में शहर के जाने माने धनाढ्य, शहर की नामी गिरामी हस्तियां इस स्कूल की ट्रस्टी के रूप में विद्यमान है। राजकरण दफ्तरी, डॉo मोहनलाल जैन, जुगलकिशोर तोषनीवाल, तिलोक चंद जैन, रामावतार जालान, गौरीशंकर अग्रवाल, नवलकिशोर अग्रवाल फिलहाल स्कूल के ट्रस्टी है और इन ट्रस्टियो का लक्ष्य स्कूल का व्यवसायीकरण करना नही है।सारे ट्रस्टी प्रत्येक दृष्टिकोण से सक्षम है, फिर स्कूल की फीस आसमान पर क्यों ? फिर हर वर्ष नए शेषन में किताबो में बदलाव कर बिक्री क्यों ? नए सत्र की शुरुआत होने के काफी दिनों तक छात्रों की पहचान वाले आईडी कार्ड अब तक निर्गत क्यों नही ? छात्रों का ट्यूशन के माध्यम से शोषण क्यों ? शिक्षकों की बहाली का आधार गलत क्यों ? इन सारे प्रश्नचिन्ह का एक ही मतलब है कि स्कूल में वन मैन शो।बालमंदिर स्कूल के कुछ पुराने छात्रों ने कहा कि छात्र जीवन के 12 वर्ष स्कूल में हम लोग गुजारे है, बालमंदिर स्कूल मेरा ही नही हर उन छात्रों का अभिमान है जो दो दशक पहले स्कूल में पढ़ चुके है।मेरी ही तरह मेरे साथियो, पुराने छात्रों के दिल मे बसने वाले स्कूल की दुर्दशा न देखी जा रही है और न ही सुनी जा रही है।संस्थापको के सपने टूटते नजर आ रहे है।समाज के हर वरिष्ठ, जिम्मेदार और संस्थापक, ट्रस्टी से करबद्ध निवेदन है कि स्कूल में आगे कोई ऐसा हादसा न हो, स्कूल का व्यवसायीकरण न हो, गोविंद बिहानी जैसे लोगो को पदस्थापित न किया जाए।मेरे स्कूल को फिर से बुलंदी पर ले जाने के लिए फिर से एक बार करबद्ध निवेदन।क्या है मामला
मालूम हो कि बाल मंदिर सिनीयर सैकेंडरी स्कूल की 17 वर्षीय छात्रा 11वीं की परिक्षा में फेल हो गई थी।इसके बाद वह कंप्लीमेंट्री परिक्षा में एकांउटस व इकोनॉमिक्स विषय में फिर से असफल हो गई।इससे छात्रा का मनोबल टूट गया और मंगलवार को उसने ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी।

रिपोर्ट-धर्मेंद्र सिंह

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