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 जदयू की प्राथमिकता बिहार की हिस्सेदारी है या केवल सत्ता में भागीदारी ?

सोनू कुमार /राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन दल के अन्य प्रवक्ता मृत्यंजय तिवारी, सारिका पासवान, प्रमोद कुमार सिन्हा एवं अरुण यादव के साथ आज यहाँ पार्टी के प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि भाजपा की तरह जदयू भी अब बिहार को विशेष राज्य दर्जा देने की मांग से पीछे हटने लगी है। इसीलिए उसके नेताओं की भाषा बदलने लगी है। अब वे बोल रहे हैं कि विशेष दर्जा नहीं तो विशेष पैकेज हीं दे दिया जाए।
श्री गगन ने कहा कि विशेष पैकेज का मतलब यदि ‘मोदी मॉडल’ है तो इससे बिहार को कुछ विशेष हासिल होने वाला नहीं है। यह केवल बिहार वासियों को गुमराह करने की कवायद समझी जाएगी।18 अगस्त 2015 को माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने बिहार को 1 लाख 65 हजार करोड़ का विशेष पैकेज देने की घोषणा की थी। भाजपा और जदयू नेताओं के अनुसार प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषित विशेष पैकेज बिहार को मिल भी चुका है। हालांकि जिस 1लाख 25 हजार करोड़ के विशेष पैकेज बिहार को दिए जाने का दावा भाजपा और अब जदयू भी करने लगी है। उसमें 1 लाख 10 हजार करोड़ की योजनाएं तो यूपीए सरकार की हीं देन है। इसे खुद माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी हीं स्वीकार चुके हैं। लगभग 19 वर्षों से नीतीश जी बिहार के मुख्यमंत्री हैं। लगभग 16 साल से भाजपा बिहार सरकार में शामिल है और दस वर्षों से केन्द्र में एनडीए की सरकार है। और प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषित विशेष पैकेज भी बिहार को मिल चुका है इसके बावजूद भी नीति आयोग द्वारा जारी इंडेक्स में यदि बिहार सबसे निचले पायदान पर है।तो फिर आंकड़ों में लुभावना लगने वाले ऐसे विशेष पैकेज से बिहार का  विकास कैसे संभव है।इसलिए यदि सही में जदयू की मंशा बिहार के विकास के प्रति नियत साफ है तो उसे केन्द्र पर दबाव बना कर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने के लिए पहल करना चाहिए। अभी हीं सुनहरा मौका है। यदि इसमें नीति आयोग बाधक है तो अब तो नीति आयोग में बिहार के तीन – तीन मंत्री शामिल हैं। अभी संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है। केन्द्र सरकार की नियत यदि साफ है तो इसी सत्र में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की घोषणा होनी चाहिए।अब यह जदयू को तय करना है कि वह बिहार की हिस्सेदारी चाहता है कि की राज भोगने के लिए केवल सत्ता में भागीदारी चाहता है।
नीतीश जी ने कहा था कि जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा हम उसी के साथ जायेंगे। भाजपा के साथ जाने वक्त जदयू और भाजपा ने कहा था कि डबल इंजन की सरकार बनेगी तो बिहार का विकास काफी तेजी से होगा। हकीकत यह है कि बिहार बँटवारे के बाद इन दोनों दलों ने ही एक साजिश के तहत बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज नहीं मिलने दिया था। जबकि ‘‘बिहार पुनर्गठन कानून 2000’’ में हीं स्पष्ट प्रावधान है कि बिहार की क्षति-पूर्ति के लिए विशेष प्रबंध किये जायेंगे। जबकि उसी क्रम में उतराखण्ड और छत्तीसगढ के गठन सम्बन्धी कानूनों में यैसा कोई प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद उन्हें विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले, इस माँग का सही वक्त 2000 था जब झारखंड बिहार से अलग हुआ और उतराखण्ड को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।
उस समय केन्द्र मे एनडीए की सरकार थी जिसका प्रमुख घटक जदयू था और राज्य में राबड़ी देवी जी के मुख्यमंत्रित्व में राजद की सरकार थी। झारखंड राज्य के औपचारिक गठन के पूर्व हीं 25 अप्रैल 2000 को हीं बिहार को बँटवारे से होने वाली क्षति-पूर्ति की भरपाई करने के लिए बिहार विधानसभा से सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया था। झारखंड राज्य के औपचारिक रूप से बिहार से अलग होने के बाद 28 नवम्बर 2000 को बिहार के सभी सांसदों ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन देकर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग की थी। प्रधानमंत्री जी द्वारा विस्तृत प्रतिवेदन तैयार करने के लिए तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री नीतीश कुमार जी के संयोजकत्व में एक कमिटी का गठन कर दिया गया। पर कमिटी की कभी बैठक हीं नही बुलाई गई। 3 फरवरी 2002 को को दीघा सोनपुर पुल के शिलान्यास के अवसर पर पटना के गांधी मैदान मे आयोजित सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व0 अटल बिहारी वाजपेयी जी के समक्ष हजारों बिहारवासियों के उपस्थिती में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी जी द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग दुहराई गई। जिस पर प्रधानमंत्री जी ने तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार जी की उपस्थिति में माँग को वाजिब करार देते हुए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था। पर दिल्ली लौटने के क्रम में हवाई अड्डा पहुँचते ही प्रधानमंत्री जी विशेष राज्य का दर्जा के बजाय विशेष पैकेज की बात करने लगे। पुनः राजद सरकार द्वारा हीं 2 अप्रैल 2002 को बिहार विधान सभा से सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग दुहराई गई। 16 मई 2002 को राजद के नोटिस पर नियम 193 के तहत लोकसभा में चर्चा हुई , सभी दलों ने बिहार का पक्ष लिया पर पुरे चर्चा के दौरान नीतीश जी अनुपस्थित रहे।
केन्द्र की तत्कालीन एनडीए सरकार द्वारा विशेष राज्य का दर्जा सम्बन्धी फाईल को तो ठंढे बस्ते मे तो डाल ही दिया गया विशेष पैकेज भी नही दिया गया। इतना ही नहीं सामान्य रूप से मिलने वाली केन्द्रीय राशि भी बिहार को नहीं दी गई।
 पर जब केन्द्र में यूपीए की सरकार बनी जिसमे राजद भी शामिल थी तो राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद जी के पहल पर बिहार को 1 लाख 44 हजार करोड़ का पैकेज मिला। ग्यारहवें वित्त आयोग (2007-2012) द्वारा 36,071 करोड़ और बारहवें वित्त आयोग ( 2012 – 2017 ) द्वारा 75,646 करोड़ रूपए बिहार को दिया गया। शिक्षा मद में 2, 683 करोड़ और स्वास्थ्य मद में 1819 करोड़ रूपए दिये गए। यूपीए सरकार में सड़क निर्माण के लिए 64,752 करोड़ रूपए बिहार को मिला। बीआरजीएफ में बिहार के 38 जिलों में 36 जिलों को शामिल किया गया। राजीव गाँधी ग्रामीण विधुतीकरण योजना के तहत बिहार के 44,872 चिरागी गाँवों को शामिल कर जिन गाँवों में बिजली नहीं गई थी वहाँ बिजली पहुँचाया गया और जहाँ पहले से थी वहाँ जीर्ण-शीर्ण तार और पोल को बदला गया। फूड फॉर वर्क, मनरेगा, पीएमजीएसवाई, सर्व शिक्षा अभियान, एनआरएचएम जैसी योजनाओं के माध्यम से प्रचुर मात्रा में बिहार को धन उपलब्ध कराया गया। बिहार में रेलवे का तीन-तीन कारखाने खोले गए। हकीकत यह है कि जब केन्द्र में यूपीए की सरकार थी तो बिहार को लगभग वो सारी सुविधाएं दी गई थी जो विशेष राज्य के दर्जा में मिलता है। केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में बगैर किसी शर्त के केन्द्रांश की राशि 90 प्रतिशत होती थी जबकि मोदी जी की सरकार में विभिन्न शर्तों के साथ केन्द्रांश की राशि को घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है। यूपीए एक में तो केन्द्र द्वारा इतनी राशि दी गई कि बिहार सरकार को कुछ मांगने की जरूरत हीं नहीं पड़ी। नीतीश जी के प्रथम कार्यकाल ( 2005 – 2010) में बिहार में जो बदलाव देखा गया दरअसल वह केन्द्र की यूपीए एक सरकार की देन थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदेश महासचिव मदन शर्मा, संजय यादव , डॉ प्रेम कुमार गुप्ता, प्रमोद राम एवं उपेन्द्र चन्द्रवंशी भी उपस्थित थे।

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