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इस किले के प्रमुख दरवाजे का वजन 20 टन है इस किले की दीवारों में आज भी तोप के गोले धंसे हुए हैं, अंग्रेजों ने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए…

भरतपुर के पूर्व राजा के बेटे और डीग से एमएलए विश्वेंद्र सिंह अपने जन्मदिन पर ही चर्चा का विषय बने रहे।kewalsachlive.in इस मौके पर बता रहा ये भरतपुर के एक अभेद किले के बारे में।मिट्टी से ढंकी इस किले की दीवार में तोप के गोले धंस जाते थे।राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड ने भी इस किले की दीवारों के बारे में लिखा है।इस किले के प्रमुख दरवाजे का वजन 20 टन है।अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी ने 25 अगस्त 1303 को दासियों के साथ जोहर कर लिया था।इसके बाद गुस्से में आए अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ इलाके में बेरहमी से मारकाट और लूटपाट की।इसी दौरान वह चित्तौड़गढ़ किले से बेशकीमती अष्टधातु गेट को उखाड़ कर ले गया था।जिसे 

उसने दिल्ली के लाल किले में ले जाकर लगा दिया था।इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने अपनी पुस्तक भरतपुर का इतिहास के पृष्ठ संख्या 59 में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि 1765 में भरतपुर के महाराजा जवाहर सिंह ने अपने पिता महाराजा सूरजमल की मौत का बदला लेने के लिए दिल्ली के शासक नजीबुद्दौला पर आक्रमण कर दिया था।उन्हें चित्तौड़ के अपमान गेट के बारे में जानकारी हुई तो वे अष्टधातु का दरवाजा भी उखाड़कर भरतपुर ले आए।यहां आने के बाद महाराजा जवाहर सिंह ने चित्तौड़ के शासक को संदेश भेजा कि यदि वे चाहें तो अपनी राजपूती शान के प्रतीक दरवाजे को ले जा सकते हैं।वहां से कोई इसे लेने नहीं आया तो महाराजा ने यह ऐतिहासिक दरवाजा भरतपुर के किले में लगा दिया।ये दरवाजा आज भी जाट वीरों की बहादुरी और जिंदादिली की दास्तां बयां कर रहा है।आपको बताते चले की अष्टधातु का दरवाजा करीब 20 टन वजन का है।इसमें करीब 6 टन मात्रा में अष्टधातु लगी है।चूंकि अष्टधातु में सोना भी शामिल होता है इसलिए इसकी सुरक्षा के लिए पुरातत्व विभाग ने लोहे की सुरक्षा जाली लगा रखी है।सोना मिलने से धातु का रंग काला नहीं पड़ता और यह हजारों साल तक सुरक्षित रहता है।बता दें कि इस किले में जाट राजा शासन करते थे।इन्होंने इसे इतनी कुशलता के साथ डिजाइन किया था कि दूसरे राजा इन पर हमला कर दें तो उनकी सारी कोशिशें नाकाम हो जाए।किले की दीवारें मिट्टी से ढंकी थी,जिससे दुश्मनों की तोप के गोले इस मिट्टी में धंस जाते थे।यही हाल बंदूक की गोलियों का भी होता था।इसलिए जाट राजाओं के बारे में यह फेमस हो गया था कि जाट राजा मिट्टी से भी सुरक्षा के उपाए निकाल लेते थे।

इस किले की दीवारों में आज भी तोप के गोले धंसे हुए हैं।अंग्रेजों ने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए।इन आक्रमणों में एक बार भी वो इस किले को भेद न सके।इस किले के चारों तरफ जाट राजाओं ने सुरक्षा के लिहाज से एक खाई बनवाई थी,जिसमें पानी भर दिया गया था।इतना ही नहीं कोई दुश्मन तैरकर भी किले तक न पहुंचे इसलिए इस पानी में मगरमच्छ छोड़े गए थे।एक ब्रिज बनाया गया था जिसमें एक दरवाजा था यह दरवाजा भी अष्टधातु से बना था।

रिपोर्ट-इतिहास के पन्ने से….(धर्मेन्द्र सिंह)

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