हर अमावस की रात यहाँ के राजा विक्रमादित्य अपना शीश काटकर चढ़ाते थे, हरसिद्धि देवी मंदिर में…
मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित हरसिद्धि देवी का मंदिर देश की शक्तिपीठों में से एक है।ये वो देवी हैं जो राजा विक्रमादित्य की पूजनीय थीं और राजा अमावस की रात को विशेष पूजा अनुष्ठान कर अपना सिर अलग करके चढ़ाते थे।लेकिन,हर बार देवी उनके सिर को जोड़ देती थीं।मान्यता है कि सती के अंग जिन 52 स्थानों पर गिरे थे,वो स्थान शक्तिपीठ में बदल गए।उन स्थानों पर नवरात्र के मौके पर आराधना का विशेष महत्व है।कहा जाता है कि सती की कोहनी उज्जैन में जिस स्थान पर गिरी थी,वो अब हरसिद्धि शक्ति पीठ के नाम से जानी जाती है।पंडित बद्री प्रसाद पाठक बताते हैं कि ये वो स्थान है,जहां आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है।
यहां राजा विक्रमादित्य अमावस की रात को विशेष अनुष्ठान करते थे और देवी को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर चढ़ाते थे।किवदंती है कि माता हरसिद्धि सुबह गुजरात के हरसद गांव स्थित हरसिद्धि मंदिर जाती हैं और रात्रि विश्राम के लिए शाम को उज्जैन स्थित मंदिर आती हैं।इसी कारण यहां की संध्या आरती का विशेष महत्व है।माता हरसिद्धि की साधना से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं,इसलिए नवरात्रि में यहां साधक साधना करने आते हैं।महाकाल केमंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव जी की मूर्तियां हैं।गर्भगृह में तीन मूर्तियां हैं।सबसे ऊपर अन्नपूर्णा, बीच में हरसिद्धि और नीचे माता कालका विराजमान हैं।इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठों के शासनकाल में हुआ था।यहां दो खंभे हैं जिस पर दीप जलाए जाते हैं।देवी के भक्त यहाँ बताते हैं कि उज्जैन में हरसिद्धि देवी की आराधना करने से शिव और शक्ति दोनों की पूजा हो जाती है।ऐसा इसलिए कि ये ऐसा स्थान है,जहां महाकाल और मां हरसिद्धि के दरबार हैं।