जब जनता राजा से सवाल पूछने लगे तो धर्म के नाम पर ध्यान भटकाने लगे मोदी-कुमार सर्वजीत

जब देश का युवा बेरोजगार है तो आप लोग भी देखते होंगे कि जब एक मामूली एक्सीडेंट भी होता है।तब बच्चे, बूढ़े के बजाय युवा ही आगे होकर सड़क जाम, तोड़-फोड़, धरना प्रदर्शन करने लगते हैं।इसलिए कि बेरोजगार युवा के पास टाइम ही टाइम है
ताजुब होती है कि देश में जब शिक्षा की कमी थी, तब लोग किसी मूर्ति की पूजा कर आस्था के साथ मूर्तियां डूबा देते थे।लेकिन आज जब लोग शिक्षित हुए, तब मूर्तियां पुलिस के संरक्षण में डुबाई जा रही है।
चुनाव लड़ने के लिए किसी भी नेता का कम से कम स्नातक की डिग्री अवश्य होना ही चाहिए।जब पूछा कि लोकतंत्र में चार स्तंभ होते हैं।कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, पत्रकारिता ! तीनों स्तंभों को तो समस्त सुविधाएं, सुरक्षा मौजूद होती है।लेकिन पत्रकार द्वारा जब निष्पक्ष खबर लिखा जाता है, तब धमकियां मिलती है हत्या करा दी जाती है।आखिर ऐसा क्यों ? किसी पॉलीटिकल पार्टी की भी सरकार इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पत्रकार सुरक्षा कानून बनाकर लागू क्यों नहीं करती ? इसके अलावे दोषियों के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट चलवाकर सजा क्यों नहीं दिलवाती है !
मगध (गया) बिहार राज्य अंतर्गत भगवान बुद्ध की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित ज्ञान स्थली बोधगया मे जब राजद के बोधगया विधायक कुमार सर्वजीत से मुलाकात हुई।तब संवाददाता द्वारा विभिन्न मुद्दे पर पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा कि हिंदुस्तान की लोकतंत्र में भाईचारे के नाम पर ही दुनिया पूजती है।महान भारत वर्ष का ही नारा है की हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई ! आपस में हम सब हैं भाई भाई ! देश में जब से बीजेपी की सरकार बनी, तब से एक विशेष 25 करोड़ आबादी वाली समुदाय (मुस्लिम) अपने आप को असहाय महसूस करने लगी।जो स्थितियां पैदा हो रही है।महान भारतवर्ष को सोने की चिड़िया तभी कहा जाएगा, जब सभी वर्ग के लोग मिलकर एक रहेंगे।मानव जाति एक दूसरे देश के लोगों को परमाणु से मारने के लिए प्रयोग करता रहा है।लेकिन ताज्जुब की बात है कि महान भारत वर्ष के लोग एक पत्थर की मूर्ति से डरते है।घातक है, यह देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है।आप लोग देख लीजिए कि सीरिया में भी आज शिया, सुन्नी के नाम पर ही लड़ाई हुई।पाकिस्तान में भी धर्म के नाम पर ही लड़ाई होती रही।यह सब देश कहां चला गया ? देश में अगड़ी, पिछड़ी, ऊंची जाति की लड़ाई छिड़ गई।यह बहुत बड़ी चर्चा का विषय है।देश के लिए घातक है।जिस देश में युवा बेरोजगार हो जाए, वह देश विकास कदापि नहीं कर सकता।ताजुब होती है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 5 वर्षों में किसी भी मीडिया ने मामले को प्रमुखता से नहीं उठाया कि देश में कितने युवा बेरोजगार हो गए ? यदि युवा बेरोजगार रहेंगे तो क्राइम निश्चित तौर पर बढ़ेगा ही।देश अस्थिर होगा ही।जब देश का युवा बेरोजगार है तो आप लोग भी देखते होंगे कि जब एक मामूली एक्सीडेंट भी होता है।तब बच्चे, बूढ़े के बजाय युवा ही आगे होकर सड़क जाम, तोड़-फोड़, धरना प्रदर्शन करने लगते हैं।इसलिए कि बेरोजगार युवा के पास टाइम ही टाइम है।ऐसी हालत में देश काफी पीछे जा रहा है।इसलिए भारतवर्ष के लोग अन्य विकसित दूसरे देशों से क्या बराबरी करेंगे ? धर्म के नाम पर देश को बांट कर कभी भी विकास नहीं किया जा सकता।चाहे सरकार किसी की भी हो।पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि देश के अंदर युवाओं की बेरोजगारी कैसे दूर होगी ? ताजुब होती है कि देश में जब शिक्षा की कमी थी, तब लोग किसी मूर्ति की पूजा कर आस्था के साथ मूर्तियां डूबा देते थे।लेकिन आज जब लोग शिक्षित हुए, तब मूर्तियां पुलिस के संरक्षण में डुबाई जा रही है।प्रधानमंत्री मोदी पर भी चुटकी लेते हुए कहा कि यदि किसी थानेदार की एरिया में डकैती, अपहरण, मर्डर हो जाती है।तब जनता थाने का घेराव करती हैं।तब बढ़िया पदाधिकारी भी थानेदार पर कार्रवाई करते है।यदि प्रधानमंत्री चौकीदार हैं तो देश के अंदर फोर्स मारे जाते हैं।तब ऐसी स्थिति में देश का चौकीदार कहां चला गया ? इसलिए प्रधानमंत्री को चाहिए था कि इस्तीफा देकर जनता के बीच पुन: आकर कहना चाहिए था कि हमसे चौकीदारी में कमी हो गई है।आप लोगों को भी मैं कहना चाहूंगा कि देश में सबसे अधिक फौज नक्सलवाद से मारा गया उसका आधा हिस्सा भी आतंकवाद में नहीं मारा गया है।नक्सलवाद, आतंकवाद तभी खत्म होगा।जब सरकार युवाओं की बेरोजगारी दूर करने की सोचे, तभी समस्या का असली समाधान होगा।आज 25 करोड़ मुस्लिम आबादी दहशत में है।एक मुसलमान के कारण पूरे कॉम को भाजपा वालों द्वारा क्यों बदनाम किया जा रहा है ? जब पूछा गया कि चुनाव प्रारंभ होने से पूर्व ही किसी भी पॉलीटिकल पार्टी के बड़बोलेपन नेताओं द्वारा मंदिर, मस्जिद, जाति, धर्म, आरक्षण के नाम पर अनाप-शनाप बयान दिए जाने लगते हैं।लेकिन अधिकांश देखा जाता रहा है कि महान भारतवर्ष में चुनाव आयोग, माननीय उच्च न्यायालय, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भी चेतावनी, मामूली सजा देकर ही आसानी से जमानत दे दी जाती है।आखिर ऐसा क्यों ? ऐसे किसी भी पॉलीटिकल पार्टी के बड़बोलेपन नेताओं को चुनाव आयोग, माननीय उच्च न्यायालय, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले को गंभीरता से लेते हुए ठोस कदम उठाकर नियमानुकूल दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करते हुए सजा क्यों नहीं दी जाती ? इसके अलावे ऐसे बड़बोलेपन नेताओं पर चुनाव आयोग, माननीय उच्च न्यायालय, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाई जाती है ? तब कहा कि मेरा अपना विचार है।भारतवर्ष में स्वच्छ चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग की जिम्मेवारी बनती है।जब कोई स्वतंत्र संस्था अपने कर्तव्य का निष्पक्ष निर्वाह नहीं करता है।तब इस प्रकार के हालात पैदा होंगे ही।यह नेताओं का दोष नहीं है।चुनाव आयोग देश का स्वतंत्र निष्पक्ष संस्था है। चुनाव आयोग को जिम्मेवारी तय कर देनी चाहिए।नहीं तो इस संस्था का गठन ही क्यों किया गया ? चुनाव आयोग को चाहिए कि महान भारतवर्ष में दूसरे विकसित देशों की तरह सिर्फ बेरोजगारी, विकास कि अपनी उपलब्धि बता कर चुनाव में जनता से वोट मांगे।हर एक छोटी-छोटी बातों में माननीय उच्च न्यायालय, माननीय उच्चतम न्यायालय कितना काम देखेगी।किसी की सरकार में भी विपक्ष खामियों को बताता है।अपनी बात रखता है।यही संविधान है।आप चले जाइए अमेरिका, जापान जैसे विकसित देशों मे वहां सिर्फ बेरोजगारी, विकास की बातें करते हुए किसी भी पॉलीटिकल पार्टी के लोग जनता के बीच अपनी उपलब्धि बता कर ही चुनाव लड़ते हैं।यही चीज भारतवर्ष में प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को भी जनता के बीच बेरोजगारी, विकास की अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों को बता कर चुनाव लड़ना चाहिए था।लेकिन भाजपा वालों द्वारा सिर्फ यही गुणगान किया जा रहा है कि हमने दूसरे देशों की इतनी फौजो को मार दिया।यही कहने से देश की युवाओं की बेरोजगारी मिटेगी क्या ? इससे देश का उत्थान होगा क्या ? ताजूब होती है कि देश के माननीय प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने अपने देश के लिए कुर्बानी दी है।आज देश महान भारत वर्ष में नहीं है।इसके बावजूद यहां के प्रथम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मृत व्यक्ति के नाम पर निंदा करते हैं।जो देश का दुर्भाग्य ही है।मैं तो पूछना चाहता हूं कि भाजपा के प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता के लिए क्या किया ? चाणक्य की ही नीति है कि जनता जब राजा से सवाल पूछने लगे तो धर्म के नाम पर भटका दो ताकि कोई हिसाब न मांगे।यही काम आज भाजपा वालों के द्वारा किया जा रहा है।जब पूछा कि एक सिपाही की बहाली के लिए कम से कम मैट्रिक की डिग्री होना जरूरी होता है।तब किसी भी पॉलीटिकल पार्टी के नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए कोई डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है।आखिर ऐसा क्यों ? चुनाव जीतने के बाद ऐसे नेता सदन में जाकर ही क्या करेंगे ? सदन की चर्चा देश के अलावे विदेशों में बैठे लोग भी देखते हैं।तब कहा कि जहां तक मेरा निजी राय है, नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए कम से कम स्नातक की डिग्री अवश्य होना चाहिए।शिक्षा आवश्यक है।गौरतलब हो कि इसी मुद्दे पर जब वर्तमान काराकाट लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे डॉक्टर नीलम से भी सवाल पूछा गया था, तब उन्होंने भी कहा था कि चुनाव लड़ने के लिए किसी भी नेता का कम से कम स्नातक की डिग्री अवश्य होना ही चाहिए।जब पूछा कि लोकतंत्र में चार स्तंभ होते हैं।कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, पत्रकारिता ! तीनों स्तंभों को तो समस्त सुविधाएं, सुरक्षा मौजूद होती है।लेकिन पत्रकार द्वारा जब निष्पक्ष खबर लिखा जाता है, तब धमकियां मिलती है हत्या करा दी जाती है।आखिर ऐसा क्यों ? किसी पॉलीटिकल पार्टी की भी सरकार इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पत्रकार सुरक्षा कानून बनाकर लागू क्यों नहीं करती ? इसके अलावे दोषियों के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट चलवाकर सजा क्यों नहीं दिलवाती है।तब कहा कि न्यायपालिका एक बंद कमरे में न्याय देती है।पत्रकारिता कलम से बताती है।विधायिका जमीन से लेकर जंगल तक जनता के बीच पहुंचकर कार्य बताती है।इसलिए सरकार आवश्यकता अनुसार सुरक्षा व्यवस्था करती है।लेकिन पत्रकार पर भी यदि हमला होता है, यह काफी निंदनीय है।गौरतलब हो कि इसी मुद्दे पर जब विगत जनवरी माह में दिल्ली स्थित जदयू के प्रधान कार्यालय में संवाददाता की टीम के साथ जदयू के राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष संजय कुमार से वार्ता हुई थी।तब कहा था कि आप लोग निष्पक्ष रूप से खुलकर लिखिए।हमारे माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने स्पष्ट कहा है कि देश में सबका साथ, सबका विकास इमानदारी के साथ होना चाहिए।सरकार आप लोगों के साथ है।पार्टी के सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं होगी।मैं तो चाहता हूं कि आप लोग मुद्दा को उठाएं।सरकार ऐसे गंभीर मामले को प्रमुखता से लेते हुए आप लोगों के लिए भी पत्रकार सुरक्षा कानून बनाकर लागू करें।आप लोगों को भी सुविधाएं, सुरक्षा मिले।उस वक्त कार्यालय में बैठे जदयू राष्ट्रीय कार्यालय सचिव मिथिलेश प्रसाद ने भी समर्थन किया।वहीं बड़बोलेपन नेताओं द्वारा चुनाव से पूर्व अनाप-शनाप बयान दिए जाने के मुद्दे पर हीं संवाददाता द्वारा जहानाबाद सांसद डॉ अरुण कुमार से पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए जनवरी माह में ही अपने दिल्ली स्थित आवास पर कहा था कि भारत वर्ष के अंदर आज सकारात्मक राजनीति का दौर खत्म हो गया है।पिछले 25-30 वर्षों में शुरू हुआ है।पहले नेता या राजनीति के कार्यकर्ता उतना ही बोलते थे जो करते थे।नतीजतन न नेता पर जनता का, न जनता पर नेता का विश्वास है।ऐसी स्थिति में भावनात्मक मुद्दे ही चुनाव में भंजाए जाते हैं।जनता उसी फांस में फंस जाती है।सकारात्मक सवालों पर चुनाव ही नहीं होता है।किसी भी पॉलीटिकल पार्टी के बड़बोलेपन नेताओं द्वारा चुनाव से पूर्व अनाप-शनाप बयान दिए जाने के मुद्दे पर भी जवाब देते हुए कहा था कि पहले लव ऑर्डर के लिए बनता था।लेकिन अब भीड़ तंत्र के हिसाब से कानून बनती है।
रिपोर्ट-अजय कुमार पांडे/दिनेश कुमार पंडित/अनिल कुमार पांडे