ज्योतिष/धर्म

कब से प्रारंभ हुआ था कलयुग ?

राजा परीक्षत के मुकुट में छुपा था कलयुग…..जैसे की पाप जिसके सर चढ़ जाए तो सर्वप्रथम उसकी बुद्धि हर लेता है पर पापों का भण्डार कलयुग जिसके सर पर सवार हो जाये तो ?… जानिये….द्वापर युग अपने अंतिम चरण में था,कलयुग धीरे धीरे आगे बढ रहा था,महाराजा परीक्षत द्वापर युग का अंतिम वीर,प्रतापी,तेजस्वी सम्राट था।पाँचों पांडव द्रोपदी के साथ अपनी अंतिम यात्रा के लिये हिमालय की ऊंची पर्वत मालाओं की चढ़ाई के लिये प्रस्थान कर चुके थे।एक दिन सम्राट परीक्षत ने देखा की एक बैल एक टांग पर खड़ा है और गाय निर्बल कमजोर सी,राजा के वेश में एक काले कलोटे भयंकर दैत्य जैसी शक्ल वाले दुराचारी के हाथों डंडे से पिट रही है।महाराजा परीक्षत को अपने राज्य में एक निर्बल निसहाय गाय के ऊपर इस प्रकार का अत्याचार सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपनी तलवार निकाल कर उस दुष्ट दानव रूपी अत्याचारी दुष्ट को ललकारा”ए कौन दुष्ट मेरे राज्य में बिना इजाजत के प्रवेश कर गया और मेरी प्रजा के उपर अकारण जुल्म ढा रहा है,बैल की तीन टांगे तोडकर अब निर्बल गाय को बेरहमी से मार रहा है।सावधान तैयार हो जा तेरे कुकर्मों की सजा तुझे मौत देकर दूंगा।

वह दुष्ट एक दम से सम्राट परीक्षत के पाँवों में गिर गया,यह कहते हुये कि”ए धर्म राज वीर,प्रतापी सम्राट राजाओं के राजा वीर पांडवों के पौत्र महाराज परीक्षत,मैं आपकी शरण में हूँ।द्वापर युग अपने आखरी चरण पर है और कलयुग का पदार्पण पहले चरण में,हे वीर शिरोमणि में वही कलयुग हूँ और द्वापर से पृथ्वी की सम्पदा,इसकी सभ्यता,संस्कृति, प्रम्पराओं को लेने के लिये आया हूँ।ए तो कुदरत का विधान है इसे कोई नहीं बदल सकता।महराजा परीक्षत ने शरण में आये हुये कलयुग को माफकर दिया और कहा की तुम मेरे राज्य में रह सकते हो लेकिन केवल वहीं जहां द्यूत,मद्यपान,स्त्रीसंग और हिंसा।सम्राट प्ररीक्षत के राज्य में इन बुराइयों के लिये कोई स्थान नहीं था।कलयुग ने हाथ जोड़कर कहा,”हे राजन,ये तो मेरे लिये बहुत ही सीमित स्थान है क्योंकि आपके राज्य में बुराइयाँ हैं तो ही नहीं।कोई और स्थान बताइये।सम्राट ने उसे वह स्थान भी दे दिया जहां सोने का वास है।सम्राट का सोने का मुकुट पहिना था और कलयुग उसी समय उनके मुकुट पर बैठ गया और तुरन्त उनका दिमागी संतुलन बिगड़ गया।उन्होंने श्रिंगी ऋषि के आश्रम में जाकर उनके गले में मरा साँप डाल दिया,इसके लिये उनके लड़के ने उन्हें शाप दे दिया की अगले सात दिनों में उन्हें तक्षत नामक नाग काटेगा और उनकी मौत हो जाएगी।कलयुग प्रारंभ हो चूका था।युधिष्ठर को था आभास कलुयुग में क्या होगा ?पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे,उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन में विचार आया कि इन सब में बुद्धिमान कौन है परिक्षा ली जाय।शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे,पूरब, पश्चिम,उतर,दक्षिण।अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी और वो आकर्षित हो गया।भीम,यधिष्ठिर से बोला-भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ।भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,भीम बोला-मुझे महल देखना है।शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है।1-शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।भीम ने कहा-मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा।और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया।वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है।फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।दरबान-क्या देखा आपने ?भीम-महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे।एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।अर्जुन आया बोला-मुझे महल देखना है,दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है।एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल।बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही।अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।दरबान ने पुछा क्या देखा,अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं।नकुल आया बोला मुझे महल देखना है ।फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया।शनिदेव ने पुछा क्या देखा ?नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?भीम ने कुंऐ के बारे में बताया तब युधिष्ठिर ने कहा-यह कलियुग में होनेवाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।भीम को छोड़ दिया।अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ?उसने फसल के बारे में बताया,युधिष्ठिर ने कहा-यह भी कलियुग में होनेवाला है वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।अर्जुन भी छूट गया।नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।तब युधिष्ठिर ने कहा-कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।तब नकुल भी छूट गया।सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा,उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,तब युधिष्ठिर बोले-कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा ।। आज के कलयुग में यह सारी बातें सच साबित हो रही है ।।

धर्मेन्द्र सिंह 

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