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किशनगंज : सूफी-संतों की इस नगरी का मान रखें, विरोध नीति का करें, आम जन का नहीं:-कुमार आशीष

समस्याओं या कठिन स्थितियों के समाधान के लिए दुनिया की किसी भी व्यवस्था में एक निश्चित प्रक्रिया होती है।अगर किसी को अपनी या किसी अन्य की समस्याओं का समाधान चाहिए तो उसे उसी प्रक्रिया के तहत चलना होगा।निश्चित प्रक्रिया का अनुसरण किए बिना दुनिया की किसी भी व्यवस्था में कुछ भी नहीं होता है।प्रत्येक व्यक्ति अपनी सभी तरह की भावनाओं को अभिव्यक्ति दे सके, इसके लिए तंत्र विकसित किया गया है।भारतीय संविधान अपने किसी भी नागरिक से इस मामले में किसी तरह का भेदभाव नहीं करता है।लेकिन इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि कोई जैसे चाहे वैसे ही अपनी किसी भी भावना को अभिव्यक्ति दे।किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, सूफी-संतों की इस नगरी का मान रखें।विरोध करें लेकिन इसकी शक्ल उन्मादी न हो, इसका भी ख्याल रखें।विरोध नीति का करें, आम जन का नहीं।शहर की हिफाज़त जितनी अच्छी तरह से हम सभी मिलकर कर सकते है, वह किसी का दिल दुखाकर या उसका नुकसान पहुंचाकर नहीं कर सकते।उम्मीद है इस गंगा-यमुनी तहजीब का सभी एहतराम करेंगे।याद रखें कि आपके बीच में कुछ ऐसे भी लोग होंगे जो आग लगाएंगे और निकल लेंगे लेकिन ऐसे लोगों पर नजर रखनी है।ये बाते किशनगंज जिला पुलिस कप्तान कुमार आशीष ने कही।श्री कुमार ने कहा कि पुलिस प्रसाशन का सहयोग करें, उन्हें मजबूर नहीं करें।किसी के बहकावे में नहीं आएं और अफवाह पर तो बिल्कुल ध्यान न दें।किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार होता है।यही वह तत्व है जो लोकतंत्र को अन्य व्यवस्थाओं से अलग करता है तथा एक विशिष्ट दर्जा देता है।इसके चलते लोकतांत्रिक व्यवस्था को जो अलग हैसियत मिलती है, वह कोई अकारण नहीं है।इसे विशेष स्थिति इसीलिए हासिल है क्योंकि इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने मतों, विचारों, कष्टों, समस्याओं और यहां तक कि क्षोभ और आक्रोश की अभिव्यक्ति के लिए भी स्वतंत्रता हासिल है।श्री कुमार ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी सभी तरह की भावनाओं को अभिव्यक्ति दे सके, इसके लिए तंत्र विकसित किया गया है।भारतीय संविधान अपने किसी भी नागरिक से इस मामले में किसी तरह का भेदभाव नहीं करता है।लेकिन इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि कोई जैसे चाहे वैसे ही अपनी किसी भी भावना को अभिव्यक्ति दे।किसी भी तरह की स्वतंत्रता का अर्थ असीम और निर्बाध स्वतंत्रता बिलकुल नहीं लिया जाना चाहिए।यह न तो व्यक्ति के हित में है, न व्यवस्था और न ही समाज के लिए हितकर है।क्योंकि असीम और निर्बाध स्वतंत्रता किसी भी समाज को उच्छृंखलता की ओर ले जाती है और अंतत: समाज के विघटन का कारण बनती है।समस्याओं या कठिन स्थितियों के समाधान के लिए दुनिया की किसी भी व्यवस्था में एक निश्चित प्रक्रिया होती है।अगर किसी को अपनी या किसी अन्य की समस्याओं का समाधान चाहिए तो उसे उसी प्रक्रिया के तहत चलना होगा।निश्चित प्रक्रिया का अनुसरण किए बिना दुनिया की किसी भी व्यवस्था में कुछ भी नहीं होता है।अगर ऐसा होने लगे तो वह भी एक अराजक स्थिति होगी।लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशिष्टता यही है कि इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सभी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्रता प्राप्त होती है।लेकिन इसका यह अर्थ एकदम नहीं है कि वह अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दूसरों की भावनाओं की परवाह किए बगैर करे।यह भी नहीं कि भावनाओं या आक्रोश की अभिव्यक्ति के नाम पर मारपीट करे या किसी को अपमानित करे।पुलिस कप्तान कुमार आशीष ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई सार्थक उपयोग नहीं, बल्कि अक्षम्य दुरुपयोग होगा और इसका नतीजा अराजकता एवं समाज का विघटन होगा।इसीलिए इसकी अनुमति किसी को भी नहीं दी जानी चाहिए।

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