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हर प्रवासी बिहारी के दिल के एक कोने में बसता है बिहार..

‘मृत्यु से खतरनाक ‘मृत्यु’ का भय होता है’

पटना/अमित कुमार (संयुक्त संपादक, केवल सच एवं केवल सच टाइम्स) हम जो कुछ भी इस समय अपने ईर्द-गिर्द घटता हुआ देख रहे हैं उसमें नया बहुत कम है, शासकों के अलावा।केवल सरकारें ही बदलती जा रही हैं, बाकी सब कुछ लगभग वैसा ही है जो पहले किसी समय था।लोगों की तकलीफें, उनके दर्द और इस सबके प्रति एक बेहद ही क्रूर उदासीनता केवल इसी जमाने की कोई नई चीज नहीं है।फर्क केवल इतना है कि हरेक ऐसे संकट के बाद व्यवस्थाओं के कपड़े और ज्यादा फटे हुए नजर आने लगते हैं।कहीं भी बदलता बहुत कुछ नहीं है।वर्ष 1978 में रिलीज हुई मुजफ्फर अली की एक क्लासिक फिल्म ‘गमन’ है।कहानी लखनऊ के पास के एक गांव में रहने वाले गुलाम हसन (फारूख शेख) की है जो रोजी-रोटी की तलाश में बम्बई जाकर टैक्सी को चलाने लगता है, पर मन उसका रात-दिन घर लौटने के लिए ही छटपटाता रहता है और यही हाल गांव में उसके लौटने का इंतजार कर रही पत्नी और उसकी मां का रहता है।नायक कभी इतने पैसे बचा ही नहीं पाता कि घर जाकर वापस बम्बई लौट सके।फिल्म के अंतिम दृश्य में नायक को बम्बई रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर लखनऊ जाने वाली ट्रेन के सामने खड़ा हुआ बताया गया है।वह दुविधा में है कि जो पैसे बचाए हैं वह अगर आने-जाने में ही खर्च हो जाएंगे तो फिर हाथ में क्या बचेगा ? वह भारी मन से घर लौटने का फैसला बदल देता है और वहीं खड़ा रह जाता है।इसी फिल्म में प्रवासी मजदूरों की हालत पर लिखा गया प्रसिद्ध गीत है-सीने में जलन, आंखो में तूफान सा क्यों है-? इस फिल्म में दिखायी पटकथा केवल पिछले चालीस वर्षों से ही नहीं बल्कि दो सौ सालों से जारी है, पर एक बड़ा फर्क जो इस महामारी ने पैदा कर दिया है, वह यह कि नायक ने इस बात की चिंता नहीं की कि कोई ट्रेन उसे उसके शहर तक ले जाएगी भी या नहीं और अगर ले भी गई तो पैसे उससे ही वसूले जाएंगे या फिर कोई और देगा।वह पैदल ही चल पड़ा है अपने घर की तरफ और उसे इस तरह से नंगे पैर चलते देखा उसकी औकात को अब तक अपने किमती जूतों की नोक पर रखनेवाली सरकारें हिल गई हैं।‘गमन’ फिल्म का नायक तो दुविधा में था कि जो कुछ भी बचाया है वह तो जाने-आने में ही खर्च हो जाएगा।बहरहाल, कोरोना की भारतीय फिल्म के इन लाखो नायकों ने अपनी इस घोषणा से राजनीति के प्रादेशिक जमींदारों को मुसीबत में डाल दिया है कि वे चाहे अपने गांवों में भूखे मर जाएं, उन्हें वापस शहरों को तो लौटना ही नहीं है।वही एक रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि ये जो अपने घरों को लौटने वाले प्रवासी नायक हैं उनमें कोई 51 की मौतें पैदल यात्रा के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में हो गई या फिर भूख और आर्थिक संकट के कारण हो गई, सभी की मौतें अलग हैं।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब कहते हैं कि कोरोना के बाद का भारत अलग होगा, तो वे बिल्कुल ठीक बोलते हैं।एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार महामारी के पूरी तरह से शांत होने में 18 से 24 महीने लगेंगे और तब तक दो-तिहाई आबादी उससे संक्रमित हो चुकी होगी।हमें कहने का अधिकार है कि रिपोर्ट गलत है।जैसे परिंदों को आने वाले तूफान के संकेत पहले से मिल जाते हैं, ये जो पैदल लौट रहे हैं और जिनके रेल भाड़े को लेकर जुबानी दंगल चल रहे हैं, उन्होंने यह भी तय कर रखा है कि अगर मरना ही है तो फिर जगह कौन सी होनी चाहिए ? इन मजदूरों को तो पहले से ज्ञात था कि उन्हें बीच रास्तों पर रुकने के लिए क्यों कहा जा रहा है ! कर्नाटक, तेलंगाना और हरियाणा के मुख्यमंत्री अगर प्रवासी मजदूरों को रुकने के लिए कह रहे हैं तो वह उनके प्रति किसी खास प्रेम के चलते नहीं बल्कि इसलिए कि इन लोगों के बिना उनके प्रदेशों की आर्थिक संपन्नता का सुहाग खतरे में पड़ने वाला है।राज्यों में फसलें खेतों में तैयार खड़ी हैं और उन्हें काटने वाला मजदूर भूखे पेट सड़कें नाप रहा है।कल्पना की जानी चाहिए कि 18 मजदूर ऐसी किस मजबूरी के चलते सीमेंट मिक्सर की मशीन में घुटने मोड़कर छुपते हुए नासिक से लखनऊ तक बारह सौ किलो मीटर तक की यात्रा करने को तैयार हो गए होंगे ? इंदौर के निकट उन्हें पकड़ने वाली पुलिस टीम को उच्चाधिकारियों द्वारा पुरस्कृत किया गया।एक चर्चित प्राइम टाइम शो में प्रवासी मजदूरों के साथ (शायद कुछ दूरी तक) पैदल चल रही रिपोर्टर का एक सवाल यह भी था कि आपको लौटने की जल्दी क्यों है ? हमारे इस कालखड का इतिहास भी अलग-अलग अध्यायों में भिन्न-भिन्न स्थानों पर तैयार हो रहा है।इसके एक भाग में निश्चित ही हजारों की संख्या में बनाए जा रहे वे मार्मिक व्यंग्य चित्र भी शामिल किए जाएंगे, जिनमें चित्रण है कि हवाई जहाजों से बरसाए जाने वाले खुबसूरत फूल किस तरह से पैदल चल रहे मजदूरों के पैरों तले आ रहे हैं, जिनके तलवों में बड़े-बड़े फफोले पड़ गए हैं और जो घर तक पहुंचने के पहले ही फूट पड़ने को व्याकुल हो रहे हैं।गौरतलब हो कि हाल के दिनों में बिहारी भाषा, खासतौर पर भोजपुरी में साफ सुथरे और अच्छे स्तर के गानों एवं शॉर्ट फिल्मों की नयी खेप आने लगी है।इन सारे कंटेंट को इंटरनेट और सोशल मीडिया एक बड़ा और सर्वव्यापी प्लेटफार्म प्रदान कर रहा है।इसी खेप में एक नया नाम जुड़ गया है फ्माँ, माटी और माइग्रेशनय् का।नौकरी या पढ़ाई हम बिहारियों को बिहार से बाहर जाने पे मजबूर कर देती है।कईयों को लगता है कि बिहार से बाहर जा के महानगरों की भीड़-भाड़ और तेज रफ्तार जिन्दगी में हमारे अंदर का बिहारी को जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है।‘‘हर प्रवासी बिहारी के दिल के एक कोने में बिहार बसता है’’।वो सारी बचपन की बातें, घर का खाना, परिवार का साथ, ये सब की यादें राज्य से बाहर रह रहे बिहारियों को सताती है।उन्ही यादों को एक खूबसूरत गाने और म्यूजिक वीडियो की शक्ल में आपके सामने ले आया है फ्माँ, माटी और माइग्रेशनय्।गैंग्स ऑफ वासेपुर और मसान जैसी बेहतरीन फिल्मों के जरिये बिहार का नाम ऊँचा करने वाले सत्यकाम आनंद हमेशा से भोजपुरी को उसकी गरिमा वापस दिलाने की बात करते रहे हैं।फ्माँ, माटी और माइग्रेशनय् के जरिये ये उनका एक सराहनीय प्रयास है।भोजपुरी संगीत की पारंपरिक गरिमा और मिठास को बनाये रखते हुए ये गाना अभी के अंदाज में पेश किया गया है।सनद् रहे कि माइग्रेशन या पलायन बिहार के लिये एक अभिशाप है।दुनियां का कोई इंसान अपने घर, अपने परिवार, अपनी माटी से दूर नहीं होना चाहता है।लेकिन ये दुर्भाग्य है कि कई बिहारियों को घर का सुख त्यागना पड़ता है, अपने बेहतर भविष्य के लिए।इसमें कोई दो राय नहीं है कि अवसरों और सम्पदाओं की कमी है हमारे प्रदेश में।यही वजह रही है कि अवसर की तलाश बिहारियों को परदेस ले जाती है।सैकड़ो-हजारो किलोमीटर की दूरी भी एक बिहारी के दिल से उसके बिहार को, उसकी माँ के आँचल को और उसकी माटी की खुशबू को दूर नहीं कर सकती है।महानगरों की भाग-दौड़ वाली जिन्दगी जीते चाहे कितना ही वक्त गुजर जाए, लेकिन गाँव-देहात में बिताया बचपन भुलाया नहीं जा सकता और दिल में हमेशा से एक कसक रहेगी उस जिन्दगी से दूर होने की मजबूरी की वजह से।अपने अतीत की यादों और अपने आज के हकीकत के बीच इंसान दो टुकड़ों में बंटा हुआ जीवन जीता है।दिगर बात है कि ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर पर पैदल चलते मजदूर, मजदूरों को भोजन कराते लोग, बस से राहत केंद्र जाते प्रवासी मजदूर, साइकिल से घर लौटते बिहार के अलग-अलग जिलों के प्रवासी मजदूर, बिहार में इन दिनों यही दृश्य सभी जगह दिखाई दे रहे हैं। लॉकडाउन में गाडि़यों का परिचालन बंद होने से बिहार के प्रवासी मजदूरों का पैदल घर लौटने का सिलसिला भले ही कुछ थम गया हो, किन्तु आज भी कई मजबूर लोगों का पैदल चलना जारी है। रोजी-रोटी की तलाश में घर छोड़कर दूसरे प्रदेशों में काम करने गए प्रवासी मजदूरों के सामने जब भूख-प्यास का संकट आया तो उन्हें बिहार में अपने आशियाने की ओर लौटने पर विवश होना पड़ा।कोई पैदल जा रहा है, तो कोई साइकिल से निकल पड़ा है।यूपी के फिरोजाबाद, नोयडा, अलीगढ़, वाराणसी, कानपुर से कोई सात दिन में पैदल बिहार-यूपी की सीमा तक पहुंचा, तो किसी ने साइकिल से पांच दिनों में आठ सौ किलोमीटर की दूरी तय की।पैदल चलकर पहुंचे कई ऐसे भी मजदूर थे, जिनके पांव जवाब दे रहे थे।पैरों में सूजन होने के बाद भी लड़ड़ाते कदम ईस्ट एंड वेस्ट कॉरिडोर पर नहीं रुक रहे थे।लॉकडाउन की वजह से इन मजदूरों के अंदर कितने दर्द छिपे थे, चेहरे बयां कर रहे थे।हालांकि देर से ही सही पर सरकार ने इन प्रवाशियों को अपने घर लाने का फैसला तो किया ! वही लॉकडाउन की वजह से दूसरे राज्यों में फंसे लोगों को घर वापस लाने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं।राज्यों की मांग पर केंद्र सरकार ने ट्रेन से मजदूरों और दूसरे लोगों को वापस लाने की अनुमति दी है।हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने राज्य वापस लौट रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि दूसरे राज्यों से आने वाले इन लोगों को सरकार कहां रखेगी और उन्हें घर भेजने की प्रक्रिया क्या होगी ? जिस तादाद में मजदूर अपने राज्यों में लौटे हैं क्या वहां उन्हें क्वारंटीन करने और उनकी खाने पीने की सुविधाएं हैं ? और फिलहाल किस राज्य के कितने लोग दूसरे राज्यों में फंसे हैं ?बिहार और झारखण्ड दोनो राज्यों के लाखो लोग देश के कई राज्यों में फंसे हैं।इनमें अधिकांश प्रवासी मजदूर और छात्र-छात्रएं शामिल हैं।केंद्र सरकार की ओर से अनुमति मिलने के बाद अब फंसे लोगों को उनके राज्य तक पहुंचाने का काम शुरू हो गया है।हालांकि, अधिकांश लोगों की दिक्कत हैं कि उन्हें पता नहीं कि वापसी के लिए घर जाने वाली ट्रेन में वो कैसे बैठ पाएंगे।इसे देखते हुए झारखड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर लोगों के लिए एक फॉर्म जारी किया है।वहीं, बिहार के आपदा राहत विभाग ने अपने सारे नम्बर जारी किये, जिस पर संपर्क कर लोग अपने वापस लौटने का इंतजाम कर सकते हैं।कोरोना वायरस की चेन को तोड़ने के मद्देनजर सरकार ने लॉकडाउन को बढ़ाकर 17 मई कर दिया है।साथ ही सरकार ने विभिन्न राज्यों में फंसे श्रमिकों और अन्य को उनके गृह राज्य में पहुंचाने की व्यवस्था करने की अनुमति दे दी है।सरकार ने पहले फंसे लोगों को उनके राज्यों तक भेजने के लिए सिर्फ बसों की अनुमति दी थी, लेकिन राज्य सरकारों के अनुरोध के बाद विशेष ट्रेनों की अनुमति दी गई।अनुमति के बाद कई राज्यों की सरकारें दूसरे राज्यों में फंसे लोगों को निकालने में लग गई है।वही केरल के अर्नाकुलम और कालीकट से चली दो ट्रेनें झारखड पहुंची।कर्नाटक के बेंगलुरु से करीब एक हजार प्रवासी झारखडी मजदूरों और छात्रों को लेकर हटिया स्टेशन पर पहुंची।यह सिलसिला मई दिवस के मौके पर प्रारंभ हुआ था।जब करीब 1200 मजदूरों को लेकर स्पेशल ट्रेन तेलंगाना के लिंगमपल्ली स्टेशन से खुलकर उसी दिन झारखड के हटिया पहुँची थी।उसके अगले दिन राजस्थान के कोटा से करीब 1000 बच्चों को लेकर चली ट्रेन 3 मई को हटिया पहुँची। फिर कोटा से ही 3 मई को चली ट्रेन 4 तारीख को धनबाद पहुँची। राँची रेल मंडल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी नीरज कुमार द्वारा बताया गया कि अब तक चलाई गई ट्रेनों से झारखड के करीब छह हजार लोग अपने घर वापस आए हैं।इन ट्रेनों से झारखड लौटे सभी लोगों की स्वास्थ्य की जाँच कराई गई और उन्हें होम क्वारंटीन कर दिया गया।कोटा से धनबाद आई एक छात्र को अस्पताल में रखा गया है।थर्मल स्कैनर में उनका तापमान अधिक पाए जाने पर उन्हें और उनकी सहेलियों को रोका गया।उनकी दोबारा जांच कराई जानी है।झारखड सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा बताया गया कि कोटा से आयी दोनों ट्रेनों का खर्च झारखड सरकार ने वहन किया है, जबकि लिंगमपल्ली से हटिया आई ट्रेन का खर्च तेलंगाना और झारखड सरकार ने मिलकर वहन किया।इस बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर मजदूरों को एयर लिफ्रट भी कराया जा सकता है।इसी बीच बिहार ने भी अन्य राज्यों में फंस अपने लोगों को निकालने के लिए हेल्पलाइन नंबर के साथ पंजीकरण लिंक भी जारी कर दिए हैं।वही बिहार सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार बाहर रहने वाले 27 लाख से ज्यादा प्रवासियों ने आपदा अनुदान राशि और राहत के लिए आवेदन किया है।केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन के बाद फंसे हुए प्रवासियों को विशेष ट्रेनों से लाया जा रहा है।स्क्रीनिंग के बाद उन्हें बसों के जरिए उनके घर तक पहुंचाने की तैयारी है।बताते चले कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बैठक में अपने अधिकारियों को कहा गया कि लाखो की संख्या में प्रवासी मजदूर के वापस राज्य लौटने की उम्मीद है और इन सभी को 14 दिन के बजाए 21 दिन तक क्वरंटाइन में रखा जाएगा।मुख्यमंत्री ने यह आदेश आला अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई बैठक में दिया। बैठक में उनके कैबिनेट के मंत्री भी मौजूद थे।6 घंटे तक चली इस बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा था कि क्वरंटाइन सेंटर में सभी प्रवासी मजदूरों को स्किल ट्रेनिंग भी दी जाएगी।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि बिहार में निकट भविष्य में प्रवासी मजदूरों का विशाल हुजूम उमड़ सकता है और उन्हें 21 दिन तक अनिवार्य रूप से पृथक-वास में रखने, उनके चिकित्सीय परीक्षण, इलाज और आर्थिक पुनर्वास के लिए प्रबंध सुनिश्चित किए जाने चाहिए।बैठक में सीएम नीतीश ने अधिकारियों से उस वत्त के लिए कमर कसने को कहा, जब लाखो की संख्या में प्रवासी मजदूरों, छात्र और तीर्थ यात्रियों को केंद्र द्वारा चलाई जाने वाली विशेष ट्रेनों से घर लाया जाएगा।उन्होंने कहा कि इसके अलावा उनकी वापसी को सुगम बनाने के लिए राज्यों के बीच परस्पर समझौता होने पर परिवहन के अन्य माध्यमों की भी व्यवस्था की जा सकती है।मुख्यमंत्री ने बैठक में कहा कि हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि पृथक केंद्रों में भोजन, शिविर, स्वच्छता और चिकित्सा की उत्तम व्यवस्था हो।प्रखड एवं पंचायत स्तरों पर पृथक केंद्रों की व्यवस्था हो।अगर जरूरत पड़ी तो हमें और केंद्र स्थापित करने पड़ सकते हैं, क्योंकि लौटने वाले लोगों की संख्या ज्यादा हो सकती है।वही इस बैठक में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, मुख्य सचिव दीपक कुमार और पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे समेत अन्य शामिल थे।राज्य भर के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बैठक में हिस्सा लिया।मुख्यमंत्री ने कहा कि रेलवे स्टेशन से प्रवासी मजदूरों को उनके घर के पास स्थित पृथक केंद्रों तक ले जाने के लिए पर्याप्त वाहनों की व्यवस्था होनी चाहिए।गांवों में जागरूकता अभियान चलाया जाए, जहां लाउड स्पीकरों पर वर्तमान स्थिति में जरूरी एहतियात के संबंध में संदेश सुनाए जाएं।उन्होंने कहा कि राज्य में कोरोना वायरस के प्रकोप के मामले शुरुआत में कम थे, लेकिन बाद में इनकी संख्या बढ़ने लगी, कुछ हद तक बाहर से संक्रमण लेकर आने वाले लोगों के चलते।अब, हमें खुद को उस स्थिति के लिए तैयार रखना होगा जो लॉकडाउन के संबंध में केंद्र के संशोधित दिशा-निर्देशों के मद्देनजर विशाल हुजूम उमड़ने के कारण उत्पन्न हो सकती है।अब हमारे पास और परीक्षण केंद्र होने चाहिए। अगर जरूरत पड़ी, तो इन्हें जिला स्तर पर भी उपलब्ध कराया जाए। इसी के अनुसार, जांच किट भी उपलब्ध होनी चाहिए और दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए।वर्तमान में, नमूनों की जांच केवल छह स्थानों-यहां के आईसीएमआर केंद्र, आरएमआरआई, एम्स, पटना के अलावा राज्य सरकार के अस्पतालों-पीएमसीएच और आईजीआईएमएस के साथ ही मुजफ्फरपुर में एसकेएमसीएच और दरभंगा के डीएमसीएच में होती है।गौरतलब हो कि पूरे देश में केन्द्र से अनुमति के बाद एक साथ कई राज्यों के लिए श्रमिक विशेष ट्रेनें चलीं, लेकिन एक विषय बात पर बहस शुरू हो गई कि टिकट का पैसा कौन देगा ? जहाँ कोटा से चलने वाली ट्रेनों में किसी भी छात्र को पैसा देने की जरूरत नहीं पड़ी, वहीं दक्षिण के राज्यों खासकर त्रिवेंद्रम में यात्रियों ने शिकायत की कि उनसे पैसा लेकर ही ट्रेन में चढ़ने की अनुमति दी गई।इस बीच बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने इस संबंध में साफ किया कि ऐसा केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों में है कि यात्रियों को अपने किराये का पैसा देना होगा, लेकिन सवाल है कि छात्र के लिए चलने वाली विशेष ट्रेन का खर्च राज्य सरकारें क्यों वहन कर रही हैं और मजदूरों से पैसा क्यों लिया जा रहा है ? पहले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना वायरस संक्रमण को काबू करने के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों में फंसे हुए प्रवासी मजदूरों, छात्र-छात्रओं, श्रद्धालुओं, पर्यटकों एवं अन्य लोगों के आवागमन को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में छूट दिए जाने का स्वागत किया था।नीतीश ने इस छूट के लिए केन्द्र सरकार का धन्यवाद करते हुए कहा था कि ये निर्णय उपयुत्त एवं स्वागत योग्य है।यह हमारा आग्रह था और उस पर केन्द्र सरकार ने सकारात्मक निर्णय लिया है।इससे बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में फंसे हुए बिहार आने के इच्छुक प्रवासी मजदूरों, छात्र-छात्रओें, श्रद्धालुओं, पर्यटकों तथा अन्य लोगों को यहां आने में सुविधा होगी और उन्हें बड़ी राहत मिलेगी।मुख्यमंत्री ने कहा था कि केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का अनुपालन जनहित में है और सबको इसका पालन करना चाहिए।उन्होंने कहा था कि बिहार सरकार ने इस मामले में केन्द्र सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के अन्तर्गत जारी दिशा-निर्देशों का हमेशा अनुपालन किया है।कोरोना वायरस पर चर्चा के लिए गत 27 अप्रैल को प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में नीतीश ने कहा था कि राजस्थान के कोटा में कोचिंग संस्थानों में बिहार के छात्र भी बड़ी संख्या में पढ़ते हैं।हालांकि चलाई गयी श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के किराए को लेकर सियासी जंग छिड़ गई है।दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासियों से ट्रेन किराया वसूलने के विवाद के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाद में स्पष्ट किया कि आने वाले छात्रों और मजदूरों से किराया नहीं वसूला जा रहा है।उन्होंने कहा कि रेलवे का किराया राज्य सरकार वहन करेगी।नीतीश कुमार ने स्पष्ट कहा कि विशेष ट्रेनों से लौट रहे विद्यार्थियों से किराया नहीं लिया जाएगा, जबकि प्रवासी मजदूरों को लौटने के दौरान लगे किराये का पैसा 21 दिनों का पृथक-वास पूरा करने के बाद लौटाया जाएगा एवं अन्य सहायता भी दी जाएगी।मुख्यमंत्री ने एक वीडियो संदेश जारी कर कहा था कि बाहर से आने वाले छात्रों को किसी प्रकार का किराया नहीं देना है। किराया बिहार सरकार वहन कर रही है।नीतीश ने अपने संदेश में केंद्र सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि हमलोगों की मांग प्रारंभ से ही थी कि बाहर फंसे लोगों को ट्रेनों से ही लाया जा सकता है। केंद्र सरकार ने हमारा सुझाव माना।मुख्यमंत्री ने मजदूरों का जिक्र करते हुए कहा कि बिहार के जो भी लोग बाहर से आ रहे हैं, और वे जिस स्टेशन पर आएंगे, वहां से उन्हें प्रखड मुख्यालय तक ले जाया जाएगा।स्टेशनों पर उनके लिए व्यवस्था की गई है।उन्होंने कहा कि बाहर से आए छात्र-मजदूर 21 दिन बाद क्वारंटीन सेंटर से जब जाने लगेंगे तो उन्हें आने में होने वाले खर्च वहन के तौर पर तय न्यूनतम राशि 1000 रुपये और उसके अलावा 500 रुपये अलग से देकर विदा किया जाएगा।वही लौटकर आए प्रवासियों को 21 दिनों तक क्वारंटीन सेंटर पर रहना होगा।इसके लिए सीएम ने पंचायत स्तर पर क्वारंटीन सेंटर बनाने के निर्देश दिए हैं।स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में अभी केवल 354 क्वारंटीन सेंटर ही चल रहे हैं, जबकि पंचायतों की संख्या आठ हजार से अधिक है। इतने कम क्वारंटीन सेंटर से बाहर से आए प्रवासियों की निगरानी के सवाल पर विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार द्वारा बताया गया कि जिन 354 क्वारंटीन सेंटरों के आंकड़े विभाग द्वारा जारी किए गए हैं, वे केवल स्वास्थ्य विभाग की तरफ से चलाए जा रहे क्वारंटीन सेंटर हैं।इसके अलावा आपदा विभाग की जिम्मेदारी है कि ब्लॉक स्तर पर क्वरंटीन सेंटर का निर्माण हो।3 मई तक के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ऐसे 1387 क्वरंटीन सेंटर हैं, जहां 13800 लोगों को रखा गया है।हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना से भयभीत नहीं होने, बल्कि सजग रहने की अपील करते हुए कहा कि हमारी सरकार का विश्वास काम करने में है और हमलोग काम कर रहे हैं।उन्होंने दावा करते हुए कहा कि बिहार में ज्यादा परेशानी नहीं है, यहां के लोगों में जागरूकता है जिस कारण कोराना वायरस का कम प्रभाव पड़ा है।विडम्बना है कि लॉकडाउन में बाहर फंसे प्रवासी बिहारियों जिनमें मजदूरों, कामगारों और छात्रो की संख्या सबसे अधिक है, राज्य में उनके वापस आने का सिलसिला शुरू हो गया है।लेकिन, फंसे हुए ये लोग अपने खर्चे पर आ रहे हैं।रेल का किराया भी खुद ही वहन कर रहे हैं।स्थानीय मीडिया में आ रही रिपोर्ट्स के अनुसार केरल से मजदूरों को लेकर लौटी श्रमिक स्पेशल ट्रेन के सवारों ने अपना 910 रुपये का टिकट खुद कटाया, रास्ते का अपना खर्च भी खुद किया।केरल से दो ट्रेनें दानापुर स्टेशन पहुंची, जिनमें 2,310 प्रवासी मजदूर थे।राजस्थान के कोटा से भी 3,275 फंसे हुए छात्रो को लेकर तीन ट्रेनें बिहार पहुंची, इनमें दो ट्रेनें बरौनी जंक्शन पहुंची जबकि एक गया जंक्शन।हालांकि, बिहार सरकार ने ये घोषणा की हुई है कि बाहर से लौटने वाले सभी प्रवासियों को किराया समेत कम से कम एक हजार रुपये दिए जाएंगे।मगर, यह राशि 21 दिनों के क्वारंटीन पीरियड के बीत जाने के बाद दी जाएगी।सरकार की तरफ से एक नया आदेश भी जारी हुआ है जिसके मुताबिक बाहर से लौटने वालों को होम क्वारंटीन में भी रखा जाएगा।सभी को पहले एक शपथ पत्र भरना होगा और सरकार के लगाए लॉकडाउन के नियमों का पालन करना होगा।इस नए आदेश को लेकर प्रवासियों की निगरानी और उनके रख-रखाव के मुद्दे पर बिहार का विपक्ष नीतीश सरकार पर पलटी मारने के आरोप लगा रहा है।बताते चले कि प्रवासी भारतीयों को उनके घर पहुंचाए जाने का मुद्दा का अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है।दरअसल इसकी शुरुआत प्रवासियों से किराए लिए जाने के मामले में हुई और विपक्ष के नेताओं ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया।उनका कहना था कि संकट कि इस घड़ी में जो प्रवासी मजदूर हैं खुद ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं ऐसे में उनसे किराया लेना ठीक नहीं है-इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ऐलान कर दिया था कि पार्टी प्रवासियों का किराया खुद ही वहन करेगी, लेकिन अब इस मामले में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं।उन्होंने ऐलान किया है कि राष्ट्रीय जनता दल बिहार सरकार को अपनी तरफ से 50 ट्रेनों का किराया देने को तैयार है।तेजस्वी ने कहा कि हम गरीब बिहारी मजदूर भाइयों की तरफ से इन 50 रेलगाडि़यों का किराया असमर्थ बिहार सरकार को देंगे।सरकार आगामी 5 दिनों में ट्रेनों का बंदोबस्त करें, पार्टी इसका किराया तुरंत सरकार के खाते में ट्रांसफर करेगी।गौरतलब है कि गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देश अनुसार राज्य सरकार को ही ट्रेनों का प्रबंध करना है इसलिए हम राज्य सरकार से आग्रह करते है कि वह मजदूर भाइयों से किराया नहीं ले, क्योंकि मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी शुरुआती 50 ट्रेनों का किराया वहन करने के लिए एकदम तैयार है।आरजेडी उनके किराए की राशि राज्य सरकार को चेक के माध्यम से जब सरकार कहें, सौंप देगी। वहीं सरकारी सूत्रों का कहना है कि केंद्र पहले से ही सब्सिडी दे रही है।मजदूरों के लिए ट्रेन सोशल डिस्टेंसिग का ध्यान रखते हुए चलाई जा रही है, इसलिए ट्रेन आधा ही भर कर ही चल रही हैं।इसका भार भी केंद्र पर ही है।इसके साथ ही मजदूरों की स्क्रीनिंग के लिए डॉक्टर, सुरक्षा, रेलवे स्टाफ आदि का भी इंतजाम किया गया है। कुछ राज्य जहां से ट्रेन चलना शुरू करेंगी वे यात्री किराया दे रही हैं जो कुल खर्च का 15% है।हालांकि विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि नीतीश सरकार लगातार अपना स्टैंड बदल रही है।पहले कहा प्रवासियों को लाना ठीक नहीं।जब प्रवासी आने लगे तो यही सरकार कहती है उन्हीं सुझाव पर आ रहे हैं और वे केंद्र के फैसले का स्वागत करने लगे।पहले कहा किराया नहीं लिया जाएगा और अब कहते हैं कि पहले 21 दिन का क्वारंटीन पूरा करिए, शपथपत्र भरिए।तेजस्वी कहते हैं, सरकार बाहर से आए सभी लोगों के लिए अलग क्वरंटीन सेंटर बना पाने में असमर्थ है।इसलिए अब होम क्वारंटीन का ऑप्शन भी लगा दिया है।मेरा सवाल ये है कि क्या केवल शपथपत्र भर देने से किसी के क्वारंटीन होने की गारंटी हो जाती है ! और जब 21 दिन पूरा ही नहीं होगा तो पैसे देंगे किसे, शंका सरकार की नियत पर है।बताते चले कि कोरोना सहायता के नाम पर बाहर राज्यों से अपने गृह में ट्रेनों के माध्यम से लाये जा रहे प्रवासियों पर हो रही राजनीति के मद्देनजर ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के किराए को लेकर ‘तुच्छ राजनीति’ में संलिप्त होने से बचने की अपील करते हुए कहा कि स्टेशनों पर अत्यधिक भीड़ लगने को रोकने के लिए रेलवे टिकट के पैसे ले रही है। एआईआरएफ ने सोनिया को लिखे पत्र में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान यात्रा करना खतरनाक है, लेकिन रेल कर्मचारी अपनी कड़ी मेहनत से इसे संभव बना रहे हैं।फेडरेशन के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा कि मैं 115 स्पेशल ट्रेनों से घर लौटने में प्रवासियों की मदद करने वाली एक अच्छी प्रणाली को तुच्छ राजनीतिक फायदों के लिए खराब नहीं करने का अनुरोध करता हूं।उनका कहना था कि रेलवे स्टेशनों पर अत्यधिक भीड़ जमा होने से कोरोना वायरस का संक्रमण फैल सकता है।रेलवे देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चला रही हैं।विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर प्रवासी कामगारों की इन यात्राओं के लिए टिकट के पैसे वसूलने का आरोप लगाया है। हालांकि सरकार ने कहा है कि किराए का 85 प्रतिशत हिस्सा रेलवे वहन कर रहा है जबकि शेष 15 प्रतिशत रकम राज्य सरकारें दे रही हैं, जिनके अनुरोध पर उनके राज्य के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है।एआईआरएफ ने कहा कि स्टेशनों पर अत्यधिक भीड़ लगने को रोकने के लिए रेलवे टिकट के पैसे ले रही है।सनद् रहे कि बिहार सरकार के आईपीआरडी की तरफ से 4 मई को जारी अपडेट के मुताबिक अब तक बाहर फंसे 17 लाख लोगों ने राहत और मदद मांगी है।जाहिर है, ट्रेनें चलनी शुरू हो गई हैं तो अब फंसे हुए ये लोग लौटकर वापस आएंगे।लौटने वाले सभी प्रवासियों की रेलवे स्टेशन पर ही शुरुआती स्क्रीनिंग के बाद बसों से उन्हें उनके गृह जिले में भेजा जा रहा है।आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य के अलग-अलग स्टेशनों पर प्रवासियों को लेकर 9 ट्रेनें आयी।विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने बताया कि उम्मीद है कि हरियाणा और पंजाब से भी ट्रेनें बिहार के लिए खुलनी शुरू हो जाएंगी।बिहार सरकार दोनों राज्यों से लगातार संपर्क में है।बाहर से आए लोगों को क्वारंटीन में रखने के बारे में प्रधान सचिव कहते हैं, फिलहाल प्रखड स्तर पर 2450 क्वारंटीन सेंटर का संचालन हो रहा है, जहां 8968 लोग रह रहे हैं।रहने वाले लोगों को थाली, बाल्टी, गिलास, कपड़ा, तीन वक्त का खाना और दो वक्त पर दूध के पैकेट दिए जा रहे हैं।पंचायत और गांव के स्तर पर क्वारंटीन सेंटर बनाने का काम तेजी से चल रहा है, जल्द ही गांव के निकटवर्ती विद्यालयों में क्वरंटीन सेंटर बना दिए जाएंगे।गौरतलब हो कि बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक करीबन 28 से 30 लाख प्रवासी बिहारी मजदूर, छात्र, कामगार बाहर फँसे हैं।इनमें से कइयों के अब वापस लौटने का सिलसिला शुरू हो चुका है।कोरोना वायरस के कारण भारत में हुए लॉकडाउन की शुरुआत से ही अन्य राज्यों में फँसे अपने लोगों को वापस बुलाने पर बिहार सरकार का रुख नकारात्मक रहा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।विपक्ष के लगातार दबाव के बावजूद भी सरकार बाहरी लोगों को बुलाने से इनकार करती रही।लेकिन अब गृह मंत्रालय की नई गाइडलाइन के बाद बिहार सरकार भी बाहर फँसे अपने लोगों को वापस बुलाने के इंतजाम में लगी है।हालांकि, गृह मंत्रालय की गाइडलाइन के बाद भी बिहार सरकार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने मीडिया में यह बयान दिया था कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों को वापस बुलाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है।इस पर विपक्ष ने राज्य सरकार की अक्षमता पर सवाल उठाए थे।बाहर रहने वाले प्रवासियों को वापस बुलाने के मुद्दे पर राजनीति के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार फँसे दिख रहे हैं।लाखो लोगों का सवाल है।जाहिर है, मामला इसलिए गंभीर भी है।इस मसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी विभागों के आला अधिकारियों और मंत्रियों के साथ बैठक की थी। इसमें बाहर से आने वाले प्रवासियों को अनिवार्य रूप से 21 दिनों तक क्वारंटीन सेंटर में रखने के लिए पंचायत स्तर पर क्वारंटीन सेंटर के विस्तार की बात फिर से मुख्यमंत्री ने कही तथा यह भी कहा कि जीविका और राष्ट्रीय आजीविका मिशन द्वारा चिन्हित लोगों को भी प्रति परिवार एक हजार रुपये की सहायता राशि जल्द से जल्द दी जाए।अब सवाल है कि क्या बिहार सरकार के पास इतनी व्यवस्था और इंतजाम है कि बाहर से आने वाले लाखो लोगों को 21 दिनों तक क्वारंटीन सेंटर में रख सके और साथ ही इस दरम्यान उन्हें समुचित तौर पर खिला-पीला सके ! साथ ही क्या बाहर से आने वाले परिवारों की आजीविका को लेकर भी सरकार ने कुछ प्रबंध किया है ? खबर लिखे जाने तक सूत्रों के अनुसार एक बड़े न्यूज एजेंसी के पत्रकार के आंखों देखी बातों पर गौर फरमाते हुए कहा गया है कि भोजपुर के एक गांव चातर के पंचायत में कहीं कोई क्वारंटीन सेंटर नहीं बना है।जब बाजार-हाट के काम से बाहर निकलना होता है और पड़ोस के दूसरे गांवों के लोगों से बातचीत होती है तो पता चलता है कि इलाके में कहीं ऐसा कोई क्वारंटीन सेंटर नहीं है जहां लोगों को रखने के इंतजाम हैं।इस सवाल पर कि इलाके में कहीं कोई क्वारंटीन सेंटर क्यों नहीं है, जिला और प्रखड के अधिकारी कहते हैं, जितने स्कूल हैं, समझिए तो सारे अस्थाई रूप से क्वारंटीन सेंटर ही है।जल्द ही उन स्कूलों में रहने और खाने का इंतजाम भी कर दिया जाएगा।हमलोग ऐसे स्कूलों की पहचान कर रहे हैं जहां व्यवस्था करने में आसानी होेे।लेकिन हमारी जानकारी में ऐसे कई लोग हैं जो बीते हफ्ते-दो हफ्ते के दौरान बाहर के राज्यों से किसी तरह जुगाड़ लगाकर आए हैं, मगर न तो उनकी समुचित स्क्रीनिंग हो सकी और न ही उन्हें क्वारंटीन में रखा गया।हमारी जानकारी में ऐसे दर्जनों प्रवासी हैं।ऐसा मामला केवल भोजपुर का ही नहीं बल्कि राज्य के लगभग जिलों का यही है।वही दूसरी ओर पूरे राज्य में क्वारंटीन सेंटर के आंकड़ों की बात करें तो केवल 354 क्वारंटीन सेंटर हैं। जबकि पंचायतों की संख्या आठ हजार से अधिक है।एक तरफ यह भी सवाल खड़ा हो रहा है कि जो लोग बाहर से आ रहे हैं उनके सामने भोजन की समस्या तो नहीं खड़ी हो जाएगी ? यहां यह बताना जरूरी है कि बिहार सरकार ने यह घोषणा कर रखी है कि बिना राशन कार्ड वालों को भी मुफ्त में अनाज और पैसे (एक हजार रुपये) मिलेंगे।मगर अभी तक अधिकतर लोगों के खाते में न तो पैसे आए हैं और न अनाज ही मिला है।वहीं लिस्ट बनाने का काम अब भी जारी है।अब आते हैं मूल मुद्दे पर कि प्रवासियों को खिलाने के लिए क्या राज्य सरकार के पास पर्याप्त अन्न भंडार मौजूद है ? दरअसल बिहार सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग ने केंद्र को चिट्टी लिखकर प्रवासियों के लिए अतिरत्त अनाज की माँग की है।जिसे केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान द्वारा जवाब में यह कहकर खारिज कर दिया गया कि बिहार सरकार का डेटा सही नहीं है।पहले वह अपना डेटा दुरुस्त करे।खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री मदन सहनी ने केंद्र को लिखी अपनी चिट्टी में 30 लाख परिवारों (यानी अनुमानित 1-5 करोड़ लोगों) के लिए अनाज भेजने का आग्रह किया था, लेकिन केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने इस आंकड़े पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि, राशन किसे देना है इसकी पूरी लिस्ट देनी होगी।बिना लिस्ट के अनाज देना संभव नहीं है।बिहार सरकार की चिट्टी के जवाब में पासवान ने यह भी कहा, कि गरीबी रेखा के आंकड़ों के अनुसार राशन के लिए आठ करोड़ 71 लाख लोगों की लिस्ट होनी चाहिए पर आठ करोड़ 57 लाख का ही नाम है।ऐसे में अगर ज्यादा दे दिया गया और इसी बात पर कोई अदालत चला गया तो क्या किया जाएगा।रामविलास पासवान की आपत्ति के बाद बिहार सरकार के खाद्य आपूर्ति मंत्री मदन सहनी दोबारा मीडिया के सामने आये और कहा कि राज्य का आंकड़ा सही है। उन्होंने कहा, बिहार ने दो स्तर पर डेटा मंगवाया है।एक आटीजीएस काउंटर के डेटा के आधार पर और दूसरा जीविका द्वारा चिन्ह्ति परिवारों की तैयार की गई लिस्ट के आधार पर।राशन के लिए केंद्र और राज्य के आंकड़ों में 14 लाख का फर्क है।इसपर भी बिहार सरकार के मंत्री मदन सहनी ने सवाल उठाया है।उनका कहना है, अब साढ़े 14 लाख नहीं बल्कि जनसंख्या बढ़ने के कारण पूरा डाटा 30 लाख हो गया है।अब जनगणना 2021 में होनी है, लिहाजा तब तक गरीबों के लिए राशन भेजना चाहिए।सनद् रहे कि बिहार सरकार ने यह भी घोषणा की है कि ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों के लिए अधिक से अधिक रोजगार के अवसर पैदा किए जाएंगे।मनरेगा के तहत काम बढ़ाने पर जोर होगा, साथ ही सर्वे के अधार पर बाहर से आए प्रवासी मजदूरों में से स्किल्ड लेबर को छांटकर उनके लिए स्कील के आधार पर काम उपलब्ध कराया जाएगा।पर, सरकार की ये सारी घोषणाएं कागजी लगती हैं, क्योंकि जमीनी हकीकत और आंकड़े भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं।जहां तक बात मनरेगा के तहत काम की है तो आंकडे बताते हैं कि इस वित्तीय वर्ष में लॉकडाउन के एक महीने गुजर जाने के बाद भी कुल लेबर फोर्स में प्रत्येक लेबर के लिए दिन के एक चौथाई हिस्से का भी काम नहीं हुआ है।मनरेगा के दो मई तक के आंकड़ों के मुताबिक बीते 30 दिनों के दरम्यान कुल 41-8 लाऽ मानव दिवस का सृजन हुआ है।जबकि मजदूरों की कुल संख्या 248-5 लाऽ है।एक मानव दिवस के पूरा करने पर औसत मजदूरी दर 192 रुपये है।विडम्बना है कि अपने आस-पास देखने पर बाहर से आए प्रवासियों और संक्रमण की रोकथाम के लिए बिहार सरकार के दावे जिस तरह जमीन पर खोखले लगते हैं, उसी तरह आंकड़ों में भी अटपटे प्रतीत होते हैं। कहने के लिए कोरोना संक्रमण की रोकथाम और जाँच के लिए बिहार सरकार डोर टू डोर स्क्रीनिंग का कैंपेन चला रही है।सरकार के स्वास्थ्य विभाग से दो अप्रैल की शाम को जारी आंकड़ों के अनुसार इस कैंपेन के तहत राज्य में अब तक चार करोड़ 68 लाख से अधिक लोगों की जाँच हो चुकी है।इनमें से खांसी और कफ के लक्षण वाले 3275 लोग मिले हैं।आंकड़ों पर इसलिए संदेह पैदा होता है, क्योंकि डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग के तहत जो कि पिछले करीब डेढ़ हफ्ते से चल रही है उसमें संक्रमण के लक्षण वाले 3275 लोग मिले हैं, लेकिन फिर भी राज्यभर के क्वारंटीन सेंटरों में फिलहाल केवल 2112 लोग ही रह रहे हैं।हालांकि जरूरी नहीं कि खांसी और कफ के लक्षण वाले कोरोना संक्रमित ही हों, मगर सवाल यहां भी खड़ा होता है कि क्या इनमें से कोई संक्रमित नहीं और अगर है तो क्या बिहार सरकार संक्रमण के लक्षण वाले लोगों को भी निगरानी में नहीं रख पा रही है और उनका इंतजाम नहीं कर पा रही है ? इन सवालों पर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार कहते हैं कि जिन 354 क्वारंटीन सेंटर्स के आंकड़े विभाग ने जारी किए हैं, वे केवल स्वास्थ्य विभाग की तरफ से चलाए जा रहे क्वारंटीन सेंटर हैं।इसके अलावा आपदा विभाग की जिम्मेदारी है कि प्रखड स्तर पर क्वारंटीन सेंटर का निर्माण हो।प्रवासियों को बाहर से बुलाने के सवाल पर संजय कुमार का कहना था कि दूसरे राज्यों से सारे प्रवासियों को ट्रेन से ही लाया जाएगा।एक जगह उनकी स्क्रीनिंग की जाएगी, उसके बाद बसों के जरिए उन्हें उनके घर तक भेजा जाएगा।दूसरे राज्यों में बसें नहीं भेजी जाएंगी, क्योंकि इतने सारे लोगों को बसों से बुलाना मुमकिन नहीं है।बिहार सरकार के आपदा विभाग की वेबसाइट से पता चलता है कि लॉकडाउन के कारण राज्य के बाहर से लौटे व्यत्तियों के लिए उनके गांव के विद्यालय में क्वारंटीन कैंप का संचालन किया जा रहा है।तीन मई के अपडेट्स के अनुसार ऐसे 1387 क्वारंटीन सेंटर हैं जहां 13,800 लोगों को रखा गया है।बहरहाल, इन दिनों करोना बीमारी के बहाने खासकर कोटा में फंसे बिहारी छात्रों और प्रवासी मजदूरों के नाम पर जमकर बहस हो रही है और इस बहस के केंद्र में होते हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।जो अपने इस शुरूआती फैसलेे पर स्टैंड कायम किये हुए थे कि जब तक लॉकडाउन है तब तक वो अन्य राज्यों की तरह अपने छात्रों या दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को वापस नहीं लायेंगे।उनके इस कदम का कुछ लोगों ने स्वागत किया तो कुछ इसी आधार पर उन्हें कमजोर मुख्यमंत्री घोषित करने पर तुले थे।जब कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ था तब सबसे पहले नीतीश ने अपने नजदीकियों को बताया था कि इसका खतरा मुख्य रूप से दो श्रोतों से है-एक विदेश से आने वाले लोग और दूसरा प्रवासी मजदूर।इसलिए जैसे ही मार्च महीने के तीसरे हफ्ते में कुछ राज्यों से विशेष ट्रेनें बिहार के लिए चलना शुरू हुई, नीतीश ने तुरंत रेल मंत्री पीयूष गोयल से बात कर ट्रेन सेवा ही नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी से बात कर विमान सेवा भी बंद करने का अनुरोध किया और जब दोनों सेवा बंद हुई तो ट्वीट कर सार्वजनिक रूप से उन लोगों को धन्यवाद भी दिया।ये भी सच है कि बिहार में शुरू के दो मरीज जिनसे सबसे ज्यादा संक्रमण हुआ, उनमें से एक दुबई से और दूसरा कुवैत से लौटा था और इन दोनों की लापरवाही से करीब 60 लोगों में ये बीमारी फैली।वही एक मरीज की मौत भी हुई।बाद में ऐसा एक मरीज नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में भी मिला, जिसके चक्कर में 26 लोग संक्रमित हुए।इसके अलावा राजधानी पटना में जो पहली मरीज मिली वो भी विदेश से लौटी थी।इसलिए नीतीश कुमार की आशंका निर्मूल नहीं थी, लेकिन जैसे ही मार्च महीने के अंतिम हफ्ते में दिल्ली से वहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोग से बसों से प्रवासी मजदूरों को वापस भेजा जाने लगा तो नीतीश कुमार ने इस पर सार्वजनिक रूप से अपना विरोध ये कह कर जताया कि यह लॉकडाउन के मूल उद्देश्य को पराजित कर देगा।लेकिन गनीमत की बात यह रही कि करीब दो लाख लोग आये, उसमें एक भी व्यत्ति संक्रमित नहीं निकला।लेकिन इनके गांव में प्रवेश में कई जगहों पर ग्रामीणों के अच्छे खासे विरोध का सामना करना पड़ा।जिससे नीतीश कुमार को इस बार अंदाजा हो गया कि ग्रामीण इलाकों में लोग इस बीमारी के संक्रमण से डरे हुए हैं, जिससे बाहर से लोगों को बुलाना और गांव में उनकी एंट्री कराना उतना आसान नहीं होगा। लेकिन नीतीश कुमार के लिए असल मुश्किलें खड़ी कीं राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने जब योगी आदित्यनाथ ने ये घोषणा कर दी कि वो कोटा में फंसे अपने राज्य के छात्रों को वापस लाने के लिए सैकड़ों की संख्या में बसें भेजेंगे और उन्होंने घोषणा ही नहीं की बल्कि 2 दिनों के अंदर अपने ही छात्रों को केवल नहीं बुलाया बल्कि उसमें बिहार के भी कई छात्र आए, जिन्हें बिहार-उत्तर प्रदेश सीमा पर रोका गया।लेकिन छात्रों की संख्या को देखते हुए नीतीश कुमार ने उन्हें घर में क्वॉरेंटीन करने की शर्त पर जाने दिया।नीतीश की मुश्किलें केवल योगी आदित्यनाथ ने ही नहीं बढ़ायी बल्कि बिहार भाजपा के एक विधायक जो पार्टी के विधानसभा में मुख्य सचेतक भी है, अनिल सिंह ने अपनी बेटी को लाने के लिए न केवल अनुमति ली बल्कि इस पूरी प्रक्रिया को उत्साहजनक भी कर दिया, जिसके कारण नीतीश कुमार की सरकार की अच्छी खासी किडकीड़ी हुई।हालांकि अनुमति देने वाले एसडीओ, गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर से लेकर अनिल सिंह के दोनों अंगरक्षकों को भी निलंबित कर दिया गया।लेकिन बीजेपी ने विधायक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे कोटा में फंसे छात्रों को ये कहने का बल मिला कि चूंकि वो किसी वीवीआईपी की संतान नहीं हैं, इसलिए उनकी उपेक्षा की जा रही है।यहां भी योगी के इस कदम से असहमति जताते हुए नीतीश ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया कि ये लॉकडाउन के सिद्धांत से अन्याय है, लेकिन पूरे देश में यह बहस शुरू हो गई जब पहली बार मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ अपने छात्रों और फिर प्रवासी मजदूरों को वापस ला सकते हैं तो 4 बार से सत्ता में बैठे नीतीश कुमार आखिर किन मजबूरियों से अपने ही फंसे हुए लोगों को वापस नहीं लाना चाहते हैं, इस बीच बिहार में नए मामले सामने आने लगे, जिसमें अधिकांश प्रवासी मजदूर या वो लोग संक्रमित मिल रहे थे जो अपने संबंधी का इलाज करवाने बाहर गये, लेकिन खुद संक्रमित हो गये।नीतीश का अब दूसरा शक भी सच होने लगा।इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उन्होंने पूरी तैयारी कर, ना केवल केंद्र के कानून का वो अंश पढ़ा बल्कि पूरे देश में एक तरह के कानून बनाने का आग्रह कर डाला।नीतीश अब बिल्कुल चिढ़ गये थे।उन्हें मालूम था कि अगर योगी ऐसे कदम उठा रहे हैं, जिसका दूसरे राज्य अनुसरण कर रहे हैं तो इसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय की मौन सहमति भी है और उन्हें विलेन बनाने की एक कोशिश अपने ही सत्ता में सहयोगी के द्वारा हो रही है, लेकिन तथ्यों पर इतना मजबूत होने के बावजूद नीतीश कुमार इस कोरोना संकट में अपनी एक जिद के कारण मात खा रहे हैं और वो है मीडिया से उन्होंने एक दूरी बनायी हुई थी।हर राज्य के मुख्यमंत्री, भले उस राज्य में सर्वाधिक मामले हों या मौत हो रही हो, लेकिन मीडिया के सवालों से नहीं भागे।वहीं नीतीश ने, जिनके कई कदमों जैसे प्रवासी लोगों के खाते में एक हजार रुपये डालने की योजना हो या तीन-तीन महीने का पेन्शन देने का फैसला हो या हर राशन कार्डधारी को एक-एक हजार देने का कदम हो, जिसका कई राज्यों ने अनुसरण किया।उसके बावजूद वह प्रचार-प्रसार में बिल्कुल फिसङी रहे।जिसके कारण उनकी छवि एक ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में बनायी गई, जिसे अपने बच्चों या फंसे हुए मजदूरों की कोई परवाह नहीं है और वो उनके साथ संवाद करने में तनिक भी विश्वास नहीं करते हैं।सच्चाई इससे भिन्न थी, लेकिन विरोधियों को एक आधार मिल गया।जबकि सचाई यही है कि नीतीश कुमार के हर दिन मॉनिटरिंग का नतीजा है कि खबर लिखे जाने तक बिहार में अब तक 600 से कम मरीज हैं और मृत लोगों की संख्या मात्र पांच है, लेकिन जमीनी हकीकत यह भी है कि आज बिहार के 25 लाख लोग फंसे हुए हैं और उनके घर लौटने की इच्छा को जैसे आपराधिक कदम नहीं माना जा सकता।वैसे ही फिलहाल ना जमीन पर उनके जांच के लिए पर्याप्त किट हैं और ना उनको संक्रमण से बचाने के लिए कोई फॉर्मूला।इसलिए नीतीश कुमार चाहते हैं कि केंद्र ने जो लॉकडाउन के नियम बनाकर किसी के आने जाने ओर प्रतिबंध लगाये हैं वैसे ही इस पाबंदी को खत्म करने की पहल भी वो ही करे, खैर ! हिन्दी के प्रसिद्ध कवि रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’ की एक पुरानी कविता की पंत्तिफ़ है-‘मैं सुलगते प्रश्नवाचक चिन्ह सा हूं, तुम रही यदि मौन तो उत्तर कौन देगा ?’ सारी दुनिया में महामारी ने जो जीवन, समाज, राज व्यवस्था, शासन-प्रशासन, व्यापार-वाणिज्य और उत्पादन वितरण की रोजमर्रा की प्रक्रिया पर इतने सारे प्रश्नचिन्ह् सुलगा दिए हैं, जिनसे जूझते रहना ही भविष्य की मनुष्यता के समक्ष अनायस आ खड़ी हुई दिन-प्रतिदिन की खुली चुनौती है।सातों दिन, चौबीसों घंटों गतिशीलता के साथ निरंतर गतिमान रहने वाली समूची मनुष्यता हतप्रभ है।इतने सारे प्रश्नचिन्हों की लपटों को देखकर क्या हम सब इसी तरह सांस के साथ झुलसते रहेंगे या निरापद नागरिक जीवन की कोई राह हमारे अंतर्मन में अंकुरित होगी।दुनियाभर में सुलगते प्रश्नचिन्हों से हम कैसे हिल मिलकर निपटेंगे यह आज के काल का यक्ष प्रश्न है।मनुष्य सभ्यता के इतिहास में ऐसी वैश्विक चुनौती एक साथ दुनिया की हर बसाहट, बस्ती, दिशा और हर कौने में इतने कम समय में एक साथ इससे पहले कभी इस तरह नहीं आई।क्या महल ? क्या झोपड़ी ? डर गई हर झोपड़ी ! एक ऐसा रोग जिसके बारे में सारी दुनियां एक मत है, इसकी कोई अचूक दवाई आज तक दुनिया खोज नही पाई, तो एक ही दवाई तत्काल सारी दुनियां में आपातकाल में मानी गई कि सब घर तक सिमट जाओ ‘स्टे होम’।अपने आपको घर में कैद कर लो। पर सारी दुनिया में चाहे वो विकसित दुनिया हो, विकासशील हो या विपन्न दुनिया हो, हर एक के बड़े शहर से लेकर छेाटे गांव-कस्बों तक करोड़ों लोग हैं, जिनके पास आज तक घर नहीं हैं।वे घरों में कैद कैसे हों तो वे जहां हैं, जैसे हों वैसे ही पड़े रहें।दुनियांभर के लोग जिन छोटे, मंझौले और दैत्याकार विमानों से चौबीसों घंटे सारी दुनियां में घूमते रहते थे, उसे दुनियाभर में रोक दिया।‘न घूमेगा मनुष्य न फैलेगी बिमारी।सारी दुनिया में एक अनोखा दृश्य उत्पन्न है।जो घर में है वो भी डर से परेशान है और जो घर में नहीं, घर से दूर है वो भी डर से परेशान कि घर नहीं जा पा रहे हैं।पूरी की पूरी दुनियां के देशों के लोग आशंकित, परेशान और फंसे हुए हैं कि अपने घर या देश जा पाएंगे या नहीं ? अविकसित और विकासशील देशों की युवा पीढ़ी विकसित देशों में पढ़ने-लिखने, उच्च अध्ययन और धन-धान्य से भरपूर निरापद जीवन की तलाश में पिछले कई दशकों से जा रही थी, पढ़ रही थी, अच्छे ऐश्वर्यशाली जीवन को जी रही थी।इस सुलगते प्रश्नचिन्ह ने इन सारे देश-विदेश के जीवन के सपने को ध्वस्त कर दिया।देश को विदेश की चिन्ता विदेश में देश की चिन्ता।इस घटनाक्रम ने समूची मनुष्यता के बारे में यह महत्वपूर्ण तथ्य स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया कि हम सब बहुत गहरे से भयभीत मनुष्य हैं।हमारे समूचे ऐश्वर्य, भौतिक आनन्द, साम्राज्य और व्यवस्था तंत्रें, राजा से रंक और शासकों एवं शासितों सभी को एकरूपता से भयग्रस्त कर दिया।यह अंधी महामारी, बीमारी है और हम आंखवाली दुनियां, दिमाग वाली दुनियां, संसाधनों वाली टेक्नोलॉजी से युत्त ताकतवर दुनियां, आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रें, परमाणु बमों से सुसज्जित दुनियां एक छोटे से कालखड में सारा ऐश्वर्य, संसाधन, तरक्की, तकनीकी और वैज्ञानिक विकास के होते हुए भी अपने आपकों ठगा हुआ महसूस कर रही है।ऐसी अफरा-तफरी तो मनुष्यकृत आधुनिक विकसित ऐश्वर्यशाली दुनियां में कभी मची ही नहीं।आधुनिक और वैज्ञानिक रूप से विकसित होने के हमारी दुनियां के सारे गर्व या एहसास ध्वस्त हो गए।विकास के समुद्र के साथ खड़ी सारी दुनियां अपनी समूची राजनीति, अर्थशास्त्र, विश्व व्यापार, मनोरंजन, पर्यटन, शिक्षा स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण, खान-पान, रहन सहन के संबंध में बुनियादी बदलाव करेगी या कुछ काल बाद पहले जैसे थे, वैसी ही अवस्था में हम फिर से पहुंच जाएंगे।हमारे दार्शनिक, चिंतक और संत हमें समझाते सिखाते आए हैं कि ‘मृत्यु से खतरनाक मृत्यु का भय होता है’।भयमुत्त जीवन या चिन्तामुत्त जीवन को आदर्श माना गया है।आज के काल में तो हर सांस ही चिन्ताग्रस्त हो गई है।हमारी हंसी भी बनावटी लगती है। हंसी की ओट में छिपी आशंका हमारे जीवन को आनंद से सरोबार नहीं कर पा रही है।कैंसर, कुष्ठ रोग, काला ज्वर, फ्रलू, चिकनगुनिया, एड्स, बर्ड फ्रलू जैसी वैश्विक बीमारियां भी सारे विश्व को इस तरह भयभीत नहीं कर पाई थी जैसे इस महामारी ने समूचे मानव समाज का भयग्रस्त किया है।इस महामारी ने हमारी भाषा और सोच की पोल खोलकर रख दी है।हम एक दूसरे को बीमारी का जिम्मेदार मान रहे है।बीमारी की संक्रामक ताकत को नहीं पहचान पा रहे हैं। एक-दूसरे को देख-सुनकर भयभीत हो रहे हैं, हमारे मुंह से निकलने वाले सांत्वना के शब्द भी बनावटी एवं भय मिश्रित है।हमारी त्रसदी यह हो गई है कि हम सब भयग्रस्त है।यहीं से एक वैचारिक पगडंडी मनुष्य के दिल दिमाग में मिलती है कि इस बीमारी से निजात पाने के लिए हमें सतर्क जीवन के साथ भयमुत्त मन की राह की अपने मन के अंदर प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी।जैसे हवाई जहाज उड़ते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो सभी यात्रियों की अकाल मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम सब हवाई यात्रा को प्रायः निरापद या दुर्घटना की संभावना वाली यात्रा मानते हुए भी बिना डरे हवाई यात्रा करते हैं। जैसे कार दुर्घटना में सारी दुनियां में प्रतिदिन हजारों मौतें होने के बाद भी कार का होना धनी-मनी और समृद्ध गतिशीलता का प्रतीक मानकर बिना भय के यात्रा करते हैं।सुनामी से समुद्र किनारे के बड़े शहर के जलमग्न होने के बाद फिर से जीवन समुद्र के किनारे फिर खड़ा हो जाता है।बड़े से बड़े विनाशकारी भूकंप के बाद मनुष्य अपने मुकाम में सोने, रहने, खाने-पीने, उठने-बैठने को जीवन के लिए निरापद मानने लगता है।जंगल की आग हो या विनाशकारी बाढ़, दोनों ही मनुष्य को न तो डरा पाये और न मृत्यु का ख़ौफ खड़ा कर पाए।इन्हें भी मनुष्य जीवन का हिस्सा मानकर ही हम सब चलते हैं। इस वैश्विक महामारी ने भीड़ भरी दुनियां और गतिशील दुनियां को आजीवन सतर्क, चौकन्ना और एक दूसरे के प्रति संवेदनशील होने की नई पगडंडी भी बनाई है।अपने शरीर की ताकत और मन की सतर्कता को चिन्तामुत्त स्वावलम्बी और प्राकृतिक जीवन शायद हमारे मन के भय को दूर करेगा।बनावटी जीवन के खोखले भय से इस महामारी ने हमारी मुलाकात करवाई है।हमारी धरती बड़ी है हम सबको एकजुट रहकर ही भविष्य के कालखंड में जीते रहने की राह का निरापद रास्ता पकड़ना होगा।जगत के विस्तार में जीव की हैसियत एक माइक्रो कण से भी कम है, पर जीव के मन का विस्तार जगत से परे भी है।हमारा अंतर्मन भय के भूत से मुत्त हो, तभी हम सारी दुनियां में नागरिक जीवन को निरापद बना पाएंगे।

अमित कुमार (संयुक्त संपादक, केवल सच एवं केवल सच टाइम्स)

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