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संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर हमला बन्द करो – भाकपा माले

धार्मिक आयोजनों से दूर रहे सरकार

गुड्डू कुमार सिंह भोजपुर राम मंदिर को कोरोना वायरस का इलाज बताकर अंधविश्वास फैलाना बन्द करो!कोरोना नियंत्रण में विफलता को लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ के जरिये ढकना बन्द करो!धर्म का राजनीतिकरण करना बंद करो!जन स्वास्थ्य के बजाय धार्मिक आयोजन को प्राथमिकता देना बंद करो आदि प्लेकार्ड के साथ गड़हनी और अगिआंव के दर्जनों गांव में प्रतिवाद मना।इन कार्यक्रमों में माले के केन्द्रीय कमिटी सदस्य सह इनौस राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल , माले के राज्य कमिटी सदस्य सह गड़हनी सचिव नवीन कुमार , जनकवि निर्मोही, शायर अमीन भारती , सामाजिक कार्यकर्ता जफर व खेड़ी गांव में जयकुमार यादव ,किसान नेता सह पंचायत समिति सदस्य चंद्रधन राय ,बड़गाँव पंचायत के मुखिया बिनोद चौधरी ,भुलेटन चौधरी शामिल हुए।ऐपवा नेता सलमा , इनौस नेता सोनू , धनकिशोर रजक , हरिनारायण साव भी शामिल हुए।गड़हनी ऑफिस पर प्रखंड कमिटी नेता श्यामलाल प्रसाद और किसान नेता वासुदेव सिंह ने प्लेकार्ड दर्शा कर विरोध दर्ज किया।इस मौके पर अपनी बात रखते हुए मनोज मंजिल ने कहा कि प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास कर रहे हैं. अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन समारोह का सरकारी आयोजन में तब्दील हो जाना और उत्तर प्रदेश के प्रशासन और केंद्र सरकार की इसमें पूर्ण भागीदारी, भारतीय संविधान की मूल भावना को सोच समझ कर नष्ट करने का कृत्य है. सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले ने मंदिर निर्माण की राह खोली, उसी फैसले में 06 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढाहने की आपराधिक कृत्य के रूप में स्पष्ट तौर पर आलोचना की गयी है. केंद्र सरकार का प्रधानमंत्री के स्तर पर भूमि पूजन में शरीक होना, उस अपराध को वैधता प्रदान करने की कार्यवाही है. यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त का मखौल उड़ाना तो है ही, भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर भी हमला है।यह आयोजन केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी कोविड 19 से बचाव के प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन है, जिसमें धार्मिक आयोजनों, बड़ी जुटान एवं 65 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों की भागीदारी पर रोक है. अयोध्या में पुजारी और तैनात पुलिस वालों का कोरोना पॉज़िटिव पाया जाना, बढ़ती महामारी के बीच लोगों को आमंत्रित करने से मानव जीवन के लिए पैदा किए जा रहे खतरे को रेखांकित करता है. राम मंदिर को कोरोना वाइरस का इलाज बताने वाले भाजपा नेताओं के बयान संघ-भाजपा की धर्मांधता और कोरोना महामारी के बीच सरकार की अनुपयुक्त प्राथमिकताओं को ही दर्शाते हैं। जब कोरोना के केस दिन दूनी-रात चौगुनी गति से बढ़ रहे हैं, तब सरकार अपनी पूर्ण विफलता को लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ के जरिये ढकना चाहती है।हम जनता से अपील करते हैं धर्म का राजनीतिकरण करने और जन स्वास्थ्य के बजाय धार्मिक आयोजन को प्राथमिकता देने के मोदी सरकार की कार्यवाही को खारिज करें और धर्मनिरपेक्षता व न्याय के संवैधानिक उसूलों को बुलंद करें।
विरोध में शामिल माले नेताओं ने कहा कि शारीरिक दूरी का पालन करते हुए हम अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं. तख्तियों/पोस्टरों या वीडियो के जरिये निम्नलिखित सवाल उठा रहे हैं -उच्चतम न्यायालय जिसने अयोध्या की जमीन मंदिर ट्रस्ट को दी, उसने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना एक अपराध था. भारत के प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनकी सरकारें, शिलान्यास में शामिल हो कर उस आपराधिक कृत्य का राजनीतिक लाभ क्यूँ उठाना चाहते हैं? भारत के नागरिक के तौर पर हम बाबरी मस्जिद गिराने के अपराधियों को राजनीतिक लाभ नहीं सजा दिये जाने की मांग करते हैं। अनलॉक-3 के दिशा – निर्देशों के अनुसार सभी धार्मिक आयोजनों पर रोक है और 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को घर पर और भीड़भाड़ से अलग रहने की सलाह दी गयी है. जब 69 वर्षीय प्रधानमंत्री इन दिशा निर्देशन का उल्लंघन करते हैं और धार्मिक समारोह में शामिल होते हैं, क्या वे सभी भारतीयों को कोरोना से बचाव के दिशा – निर्देशों को अनदेखा करने और उनका उल्लंघन करने के लिए उकसा नहीं रहे हैं।भारत का संविधान इस बात में दृढ़ है कि धर्म और राजनीति का मिश्रण नहीं होना चाहिए. तब भारत के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री क्यूँ एक मंदिर के भूमिपूजन समारोह से राजनीतिक लाभ बटोरने की कोशिश कर रहे हैं।पूरा देश कोविड-19 और लॉकडाउन संकट से जूझ रहा है, साथ ही बाढ़ भी झेल रहा है, जो हर साल अपने साथ अन्य महामारियां भी लाती है. ऐसे समय में जनता को इन जानलेवा संकटों से बचाने के बजाय भारत के प्रधानमंत्री, मंदिर के शिलान्यास समारोह को राजनीतिक मंच में तब्दील करने में लगे हैं।

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