आइये जानते है, पत्रकारिता क्या है उसकी सीमा क्या है ? ऐसे प्रश्न हमारे मन में आते हैं और उन्हें जानना अनिवार्य है…

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। पत्रकारिता एक जिम्मेदारी भरा कार्य होता है,जिसे सही ढंग से पूर्ण करना होता है।हर पत्रकार की खबर, समाज और देश को लेकर चौकन्ना रहना चाहिए।एक छोटी सी गलती पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान पर भारी पड़ सकती है।और उसकी गरिमा को ठेस पंहुचा सकती है पत्रकारिता की भी एक सीमा रेखा होती है जिसे हम पत्रकारिता का आचार संहिता भी कह सकते हैं। उदाहरण के लिए टीवी पर या अखबार में रेप पीड़िता का नाम, फोटो या उससे संबंधी किसी भी जानकारी को प्रकाशित या प्रसारित करना अपराध की श्रेणी में आता है, इस मामले में पत्रकारिता संस्थान और पत्रकार पर कार्रवाई भी हो चुकी है। अत: हर पत्रकार को अपनी सीमा का ध्यान रखना चाहिए:-पत्रकारिता की आचार संहिता का रखें ध्यान-यह अति आवश्यक है पत्रकार को किसी भी विचारधारा से प्रभावित होकर खबर का प्रकाशन प्रसारण नहीं करना चाहिए।पत्रकार को हर समय न्यायनिष्ट और निष्पक्ष रहना चाहिए।और सारी जानकारी उसके पास होनी चाहिए।खबर की मूल आत्मा के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।खबर जो है ठीक वैसे ही पेश करना चाहिए।समाचारों में तथ्यों को तोडा मरोड़ा न जाये न कोई सूचना छिपायी जाये। किसी के सम्मान को ठेस न पहुंचे।व्यावसायिक गोपनीयता का निष्ठा से अनुपालन का ध्यान रखना चाहिए।पत्रकार अपने पद और पहुंच का उपयोग गैर पत्रकारीय कार्यों के लिए न करें।उदाहरण के लिए- प्राय: ऐसा देखा जाता है कि कई बार ट्रैफिक नियम का पालन ना करने पर जब पत्रकार को दंडित किया जाता है तो वह खुद को प्रेस से बताकर अपने पद का दुरुपयोग करता है।पत्रकारिता पर कई बार पेड न्यूज जैसे दाग लग चुके हैं।अत: पत्रकारिता की मर्यादा का ध्यान रखते हुए एक पत्रकार को रिश्वत लेकर समाचार छापना या न छापना अवांछनीय,अमर्यादित और अनैतिक है।हर व्यक्ति की इज्जत उसकी निजी संपत्ति होती है।जिस पर सिर्फ उसी व्यक्ति का अधिकार होता है किसी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में अफवाह फैलाने के लिए पत्रकारिता का उपयोग नहीं किया जाये।यह पत्रकारिता की मर्यादा के खिलाफ है।अगर ऐसा समाचार छापने के लिए जनदबाव हो तो भी पत्रकार पर्याप्त संतुलित रहे।
कुछ मुख्या बात ऐसे भी है
- पर्याप्त समय सीमा के तहत पीड़ित पक्ष को अपना जवाब देने या खंडन करने का मौका दें।उनकी बात सुने।
- किसी व्यक्ति के निजी मामले को अनावश्यक प्रचार देने से बचें।
- किसी खबर में लोगों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए उसमें अतिश्योक्ती से बचें।
- निजी दुख वाले दृश्यों से संबंधित खबरों को मानवीय हित के नाम पर आंख मूंद कर न परोसा जाये।मानवाधिकार और निजी भावनाओं की गोपनीयता का भी उतना ही महत्व है।
- धार्मिक विवादों पर लिखते समय सभी संप्रदायों और समुदायों को समान आदर दिया जाना चाहिए।
- अपराध मामलो में विशेषकर सेक्स और बच्चों से संबंधित मामले में यह देखना जरूरी है कि कहीं रिपोर्ट ही अपने आप में सजा न बन जाये और किसी जीवन को अनावश्यक बर्बाद न कर दे।
चोरी छिपे सुनकर (और फोटो लेकर) किसी यंत्र का सहारा लेकर,किसी के निजी टेलीफोन पर बातचीत को पकड़कर,अपनी पहचान छिपाकर या चालबाजी से सूचनाएं प्राप्त नहीं की जायें।सिर्फ जनहित के मामले में ही जब ऐसा करना उचित है और सूचना प्राप्त करने का कोई और विकल्प न बचा हो तो ऐसा किया जाये।कुछ ऐसी बातें हैं जिससे पत्रकार को फिल्ड में या डेस्क पर काम करते वक्त हमेशा दो-चार होना पड़ता है, इसलिए उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखने के साथ-साथ एक पत्रकार को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि-खबर, विजुअल या ग्राफिक्स में रेप पीड़िता का नाम, फोटो या किसी तरह का कोई पहचान ना हो, फोटो को ब्लर करवाकर इस्तेमाल किया जा सकता है।न्यायालय को इस देश में सर्वश्रेष्ठ माना गया है इसलिए न्यायालय की अवहेलना नहीं होनी चाहिए।देशहित एक पत्रकार की प्राथमिकता होती है। अत: पत्रकार को देश के रक्षा और विदेश नीति के मामले में कवरेज करते वक्त देश की मर्यादा का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।न्यायालय जब तक किसी का अपराध ना सिद्ध कर दे उसे अपराधी नहीं कहना चाहिए इसलिए खबर में उसके लिए आरोपी शब्द का इस्तेमाल करें।अगर कोई नाबालिग अपराध करता है तो उस आरोपी का विजुअल ब्लर करके ही चलाना चाहिए।
रिपोर्ट:-सोनू यादव