आप भगवान हैं, शैतान मत बनिये……..

चिकित्सा सेवा वास्तव में मानवता की सेवा का प्रतिबिंब है और यही कारण है मनुष्य पर विपदा आने पर वह सरकार, प्रशासन न्यायालय नहीं बल्कि डॉक्टर के पास जाता है ताकि उसको बीमारी से मुक्ति मिले, मिलता रहा है, मिल भी रहा है लेकिन कलियुग के प्रभाव के कारण चिकित्सा सेवा भी बदनामी का दाग लेकर दर-बदर भटक रहा है। पहले इस सेवा में डॉक्टरों का वर्चस्व था लेकिन अब विभिन्न क्षेत्र के ठेकेदार, क्रिमिनल, राजनेता, अमिताभ बच्चन जैसा कलाकार भी लीलावती हास्पिटल का संचालन कर रहा है। जहां दवा, इंजेक्शन और अन्य चिकित्सीय संसाधन का होना चाहिए वहाँ 7 स्टार जैसे होटल की सुविधा उपलब्ध है। अमीर परिवार बीमारी से मुक्ति के लिए अपने स्टेटस के हिसाब से लोग हॉस्पिटल का चयन करते हैं जबकि मध्य एवं गरीब परिवार के लिए हीं सरकारी अस्पताल है।अगर हमारी सोच और सेवा सकारात्मक है तो हॉस्पिटल प्रबंधन को CCTv कैमरा लगाने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वैसे तो हॉस्पिटल के कैश काउंटर पर, वेटिंग हॉल में CCTv कैमरा हॉस्पिटल के उद्घाटन समय से ही लगा हुआ है तो सिर्फ ICU में CCTv कैमरा लगाने से कौन सी गोपनीयता भंग हो जायेगी? यह सवाल सभी मरीज के परिजन को उद्देलित करती है कि ICU के भीतर उसके मरीज का कैसा देखभाल और चिकित्सीय सेवा हो रहा है या फिर इलाज के नाम और आर्थिक दोहन! जब हॉस्पिटल प्रबंधन की नियत मरीज के नाम पर महालूट की नहीं है तो उसको CCTv कैमरा लगाने से उसकी साख भी मजबूत होगी और परिजनों के बीच विश्वास भी बढ़ेगा। डॉक्टर साहब को खुद सोचना चाहिए की कोई भी कंपनी तभी कोई उपहार देती है जब उस कंपनी की दवा को डॉक्टर साहब लिखते हैं और जो डॉक्टर उस कम्पनी की दवा नहीं लिखता तो कंपनी उस डॉक्टर के क्लिनिक तक नहीं जाती। एम्बुलेंस हॉस्पिटल का, जाँच घर हॉस्पिटल का, मेडिसिन काउंटर, हॉस्पिटल का, एक्सरे-अल्ट्रा हॉस्पिटल का और इसके बाद भी मरीज की बीमारी समझने में एक सप्ताह लग जाये इसकी जाँच तो होनी ही चाहिए। CCTv कैमरा थाना में लगना चाहिए, स्वास्थ्य विभाग में लगना चाहिए यह डॉक्टर भी मांग करता है लेकिन जब बात उसके हॉस्पिटल के ICU की आती है तो मौनव्रत धारण कर लेता है। जब बीमार आपके हॉस्पिटल आता है न कि थाना, न्यायालय के पास जाता है वैसे में बीमार को स्वस्थ करना डॉक्टर की जिम्मेवारी है और जिम्मेवार डॉक्टर हैं तो CCTv कैमरे से परहेज क्यों। CCTv कैमरा से मरीज का कुशल क्षेम जानने का अधिकार उस परिजन को अवश्य है जो डॉक्टर के एक आवाज पर अपने मरीज को बचाने के लिए लाखों रुपये पानी की तरह बहा देता है। अपने हॉस्पिटल का फीस तय कीजिये लेकिन एक वेटिंग हॉल अवश्य बनाइये जिसमे ICU के मरीज के एक परिजन को पास दीजिये ताकि वह आपके परिश्रम को स्क्रीन पर देख सके। डॉक्टर साहब एक बार यह पहल करके देखिए आपको परिजन भगवान की तरह पूजेंगे अन्यथा जिस दिन किसी मृतक के परिजन को प्रतिशोध की ज्वालामुखी फट गईबन रहेगा हॉस्पिटल न रहेंगे आप। आपको शपथ लेना होगा कि हम अपने कर्तव्य को सही साबित करेंगे अन्यथा सृष्टि के प्रथम डॉक्टर ने सम्पूर्ण संसार में CCTv कैमरा लगा रखा है और जो जैसा करता है उसको वैसा ही दंड भी देते हैं। आप पृथ्वी के भगवान हैं अपनी उपयोगिया और विश्वनीयता कायम रखें।पृथ्वी पर डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है यह कुछ मामलों में सच भी साबित हुआ है पर कुछ लालची व्यापारियों की जमात डॉक्टरी पेशा में शामिल होकर भगवान को भी कलंकित कर रहे हैं। गाजर – मूली की तरह मरीजों एवं उनके परिजनों के साथ व्यापार जैसा व्यवहार करने वाले हॉस्पिटल संचालक इस्तेमाल करते हैं और बेचारों के हाथ आती है तो ” सिर्फ मौत।” स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि हॉस्पिटल के संचालक मरीज के मरने के बाद भी ” आईसीयू और भेंटीलेटर ” पर रखकर मशीन से जिंदा रखकर लाखों रुपए वसूलते हैं। एक खबर काफी वायरल हो रहा है सुशासन बाबू के बिहार का बहुचर्चित निजी हॉस्पिटल * पारस * में कोरोना संक्रमित महिला का गैंगरेप ICU में हो गया। पारस हॉस्पिटल विगत वर्षों में बदनामी का कई दाग ले चुका है। सबसे बड़ी बात की बिहार सरकार के पूर्व मंत्री श्याम रजक का भी पीठ जलाने का आरोप लग चुका है। इस भी नहीं है कि मौत हत्या जे खेल में सिर्फ पारस हॉस्पिटल ही शामिल है बल्कि शहर के की नामचीन हॉस्पिटल का माहौल एक ही जैसा है। चिकित्सा सेवा को प्रदूषित कर रहे हैं मौत के सौदागरों ने चंद ही वर्षों में करोड़ों- अरबों की कोठी तैयार कर ली है और उनकी आमदनी बड़ी ही आसानी से देखी जा सकती है। देखते ही देखते एक डॉक्टर करोड़पति बन जाता है लेकिन कैसे? इस विषय पर स्वास्थ्य विभाग और सरकार जागृत नहीं दिखती अन्यथा आर्थिक मंदी के दौर में चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में बड़ा बाजार नहीं दिखता। सरकारी अस्पतालों में महंगी आपूर्ति दवा और महंगी सुई को बड़ी ही चतुराई के साथ निजी नर्सिंग होम/ निजी अस्पतालों सहित ट्रामा सेंटर में पहुंचा दिया जाता है और जिसकी कीमत भर्ती मरीज के परिजन को चुकाना पड़ता है। सरकार से वेतन लेने वाले डॉक्टर अपना निजी अस्पताल भी चला रहे है और यही प्रमुख कारण है कि सरकारी सेवा बेहतर होने के बाद भी लाचार दिखती है और उसको और लाचार बना दिया जाता है। पृथ्वी के भगवान के यहां जीवन दान की उम्मीद लेकर गए मरीज को मौत से जूझना पड़ता है और तो और उसके परिजन महंगे इलाज और जीवनदान के चक्कर में अपना जमीन – जायदाद तक बेच देते हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवा का व्यापार कर रहा डॉक्टर मरीज को बचाने से ज्यादा उसके परिजन से पैसे ऐंठने का काम पूरी निष्ठा से करता है। एक बार जैसे ही मरीज निजी नर्सिंग होम/ ट्रामा सेंटर या हॉस्पिटल में पहुंचा तो उसका इलाज हो या नहीं पर उसके परिजन के पॉकेट का संपूर्ण इलाज करने में यह कामयाब हो जाते हैं। जो बीमारी ₹2 के गोली से ठीक हो सकती है उसके इलाज के लिए ₹200000 तक वसूलने में थोड़ा भी नहीं हिचकते। हद तो यह है कि कोरोना वायरस के इलाज के नाम पर महालूट का खेल बदस्तूर जारी है जिसकी बदनामी की डर की वजह से सरकार ने एक दिन में कितना खर्च होगा का राशि भी सार्वजनिक कर दी है। एम्बुलेंस संचालको के बढ़ते आतंक के मद्देनजर सरकार ने प्रति कीलोमिटर दर को जारी किया तब जाकर कुछ अवैध वसूली पर विराम लगा। निजी हॉस्पिटल में नित्य कारनामे से चर्चा में बना रहता है और यह सर्वविदित है कि अब तक नवजात बच्चों को बेच दिया जाता था, तो अब किसी का ऑपरेशन के नाम पर किडनी तक निकाल ली जाती है और उसको बड़ी कीमत लेकर जरूरतमंद को बेच दिया जाता है जैसी घटनाओं में बड़ी तेजी से GDP की तरह इजाफा हो रहा है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना या बीपीएल कार्ड, आयुष्मान भारत धारियों के कार्ड से इलाज कराने के नाम पर भी उसकी कार्ड से मोटी रकम डकार लेते हैं। कुकुरमुत्ता की तरह विभिन्न शहरों में प्रतिदिन खुल रहे निजी नर्सिंग होम/ ट्रामा सेंटर और और हॉस्पिटल में हो रहे कालाबाजारी के साथ मरीजों एवं उनके परिजनों का आर्थिक शोषण का दौर चल रहा है। 2 हजार की सुई कोरोना संक्रमण के काल मे 40 से 50 हजार में बिक रहा है। यह बात खुलकर सामने आ गयी है कि ऑक्सीजन की व्यवस्था करने में नाकामयाब प्राइवेट हॉस्पिटल में ही ज्यादा लोगों की मौत हुई है।अधिकांश निजी हॉस्पिट /ट्रामा सेंटर/ नर्सिंग होम में आईसीयू बनाकर सभी मरीजों से आर्थिक शोषण का खेल का राजनीति होता है ताकि निवेश किया गया पूंजी को जल्दी से निकाल लिया जाए और कई संस्थानों में तो सभी प्रकार के चिकित्सीय उपकरण भी उपलब्ध नहीं रहते लेकिन मरीजों से इलाज के नाम पर उनका बिल का मीटर चलता रहता है। बात यहीं नहीं थमती बल्कि सूत्रों की मानें तो मरीज को असली दवा भी नहीं मिलता जो उसके परिजन ने अस्पताल प्रबंधन को खरीद कर दिया था तथा सरकारी अस्पतालों से गायब महंगी दवा का भी राजनीति खेल निजी चिकित्सा प्रबंधन में बखूबी देखा जा सकता है। अधिकांश संस्थान दलालों को गांव स्तर पर छोड़ देते हैं जो गांव से निजी हॉस्पिटल/ ट्रामा सेंटर/ नर्सिंग होम के आईसीयू तक पहुंचा देते हैं और ऐसे कई मामले सार्वजनिक हो चुके हैं। एम्बुलेंस वालों को भी मरीजो को हॉस्पिटल पहुंचाने का कमीशन मिलता है। पृथ्वी का दूसरा भगवान कहलाने वाला डॉक्टर व्यापारी बनकर सरकार एवम प्रशासन की मिलीभगत से धड़ल्ले से मरीजों का आर्थिक दोहन करता है और डॉक्टरों की लापरवाही से मरीज मर भी गया तो थाना मैनेज है। बात समाप्त हो जाती है कि परिजन लाश का अंतिम संस्कार करें या फिर प्रबंधन से लड़ें।
आपका भाई ब्रजेश मिश्र उरवारपटना, बिहार 9431073769 editor brajesh mishra ( facebook page से जुड़े, like, comment और share करें )#health #public #gov #hospital #doctor #pmo#covid19 #cmobihar