सांसद विहीन वायनाड और चुनाव आयोग।…
जितेन्द्र नाथ मिश्र-वर्तमान समय में एक व्यक्ति लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र से लड़ते हैं। कारण अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता का सेवा नहीं वरन् लोकसभा/विधानसभा में बैठ अपने गंदे स्वार्थ को पूरी करना होता है। चुनाव आयोग की नियमावली के तहत् यदि कोई उम्मीदवार दोनों निर्वाचन क्षेत्र से विजयी होता है तो उसे एक निर्वाचन क्षेत्र की सदस्यता को त्याग देना पड़ता है।
वर्तमान लोकसभा चुनाव में यही परिदृश्य देखने को मिला। लोकसभा में विपक्षी दल के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य श्री राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ा। चुनाव जितने के बाद अपनी परम्परागत क्षेत्र (वायनाड)की सदस्यता को त्याग दिया। सच कहा जाए तो यह वायनाड की जनता से विश्वासघात किया गया है।
आज वायनाड प्राकृतिक आपदा का शिकार बना है। वहां प्राकृतिक आपदा में लगभग दो सौ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।पर वायनाड की जनता के पास लोकसभा में उनका कोई प्रतिनिधि ही नहीं है जो वायनाड की जनता की समस्या को संसद में उठा सके। भले राहुल गांधी अपने बचाव में कह सकते हैं कि आपदा ग्रस्त वायनाड को देखने और वहां की जनता की समस्या को सुनने समझने के लिए मैं वायनाड गया। वायनाड तो अन्य दलों के नेता भी जाएंगे लेकिन वायनाड सांसद विहीन है इसे आज वायनाड ही नहीं समुचा भारत कहेगा।
चुनाव आयोग पुनः चुनाव की घोषणा करेगा। चुनाव में पुनः करोड़ों रुपए व्यय होंगे। इस अनावश्यक व्यय की खामियाजा भारतीय जनमानस क्यों भुगते। चुनाव आयोगको चाहिए कि उस सांसद से हर्जाना वसूल करे जिसने सांसदी से त्यागपत्र है दिया है।
चुनाव आयोग को चाहिए कि अपनी नियमावली में संशोधन करते हुए एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र से किसी उम्मीदवार द्वारा पर्चा दाख़िल करते ही उन्हें हमेशा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए।