ब्रेकिंग न्यूज़राज्य

राजस्व व्यय के बजाय अब पूंजीगत व्यय हो गया है।…

एनडीए का बजट मंत्र: सुधार, परिवर्तन, प्रदर्शन

त्रिलोकी नाथ प्रसाद :-अब से कुछ सप्ताह के बाद, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का 10 वां केंद्रीय बजट पेश करेंगी। बजट-पूर्व परिदृश्य से पता चलता है कि केंद्रीय बजट, यह देखते हुए कि कोविड-19 का खतरा वापस आ गया है, जीवन बनाम आजीविका के संतुलन पर अपने ध्यान को केंद्रित रखना जारी रखेगा। सतत विकास पर नजर रखते हुए उद्यमिता की भावनाओं को और अधिक अवसर देने तथा उन्हें प्रेरित करने के साथ ही विभिन्न नई योजनाओं के अनावरण किए जाने की भी उम्मीद है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा केंद्रीय बजट पर उद्यम पूंजीदाताओं और निजी इक्विटी निवेशकों के एक समूह के साथ आयोजित पहली गोलमेज बैठक में इस आशय का संकेत मिलता है। खासतौर पर तब, जब प्रधानमंत्री ने वैश्विक पूंजी की सर्वाधिक प्रमुख हस्तियों से ‘कारोबार करने में आसानी’ को और बेहतर बनाने के लिए आवश्यक अभिनव विचारों के बारे में जानकारी ली थी।

जाहिर है, इसमें एक योजना मौजूद है।

वास्तव में, यह मोदीनॉमिक्स का प्रमुख संकेत रहा है। लेकिन कभी-कभी अप्रत्याशित घटनाक्रम सुचारु रूप से चल रही कार्यप्रणाली में कई बाधाएं खड़ी कर देते हैं, तथापि एनडीए को योजना ही न होने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता है।

सरसरी तौर पर नजर डालने से पता चलता है कि शासन और विकास दोनों के लिए एक नई वास्तुकला विकसित की जा रही है और इसके लिए प्रत्येक बजट क्रमिक रूप से निर्माण-कार्य को पूरा कर रहा है। वैश्विक आर्थिक व्यवधानों या हाल ही में कोविड-19 महामारी से हुए नुकसान को कम से कम करने के उपायों के साथ-साथ उक्त सभी कार्यों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

एनडीए कार्यकाल के शुरुआती बजटों में भ्रष्टाचार विरोधी और गरीबी उन्मूलन उपायों पर जोर दिया गया था, जबकि नियम-आधारित शासन स्थापित करने की दिशा में छोटे कदम उठाए गए, जो अपवाद-आधारित शासन में संचालित सात दशकों के परंपरागत तरीकों के विपरीत थे। ये परंपरागत तरीके कोयला खदानों और स्पेक्ट्रम की नीलामी आदि के जरिये एक ऐसा इकोसिस्टम बनाते थे, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता था।

अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए उठाए गए कदमों में 2016 में किए गए उच्च मूल्य की मुद्राओं के विमुद्रीकरण एवं आधार को आयकर पैन से जोड़ने और सार्वजनिक सामानों एवं सेवाओं की लक्षित आपूर्ति शुरू करने सहित अवैध धन के खिलाफ कार्रवाई शामिल है। सार्वजनिक सामानों एवं सेवाओं की लक्षित आपूर्ति के लक्ष्य को जाम (जनधन, आधार और मोबाइल) के संक्षिप्त नाम वाले एक डिजिटल ढांचे का लाभ उठाते हुए हासिल किया गया था।
बदले में, इसका दोहरा फायदा हुआ।

पहला, जाम की तिकड़ी ने प्रत्येक लाभार्थी के लिए एक आर्थिक जीपीएस को संभव बनाया जिसने सब्सिडी वाली रसोई गैस, ग्रामीण रोजगार सुरक्षा जाल, किसानों को आय सहायता और कोविड-19 संबंधी राहत सहित कई सामाजिक सुरक्षा भुगतानों की लक्षित आपूर्ति सुनिश्चित की। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के परिणामस्वरूप मार्च 2020 के अंत में राजकोष में कुल 1.7 ट्रिलियन रुपये की बचत हुई।

दूसरा, इसने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के एक युग्म के केंद्र के रूप में ‘आधार’, जोकि देश के सभी निवासियों को जारी की गई 12-अंकों वाली विशिष्ट पहचान है, के साथ भारत में डिजिटल तरीकों के एक नए सेट का शुभारंभ भी किया।
यह ठीक वही चीज थी, जिसने भुगतान का आधार बनी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस या यूपीआई को इस कैलेंडर वर्ष में एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के लेन-देन का रिकॉर्ड दर्ज करने में सक्षम बनाया। सिर्फ यूपीआई ने ही फिनटेक क्रांति को बढ़ावा नहीं दिया है, बल्कि अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क, जोकि छोटे और मध्यम उद्यमों के नकदी प्रवाह डेटा को जमानत-मुक्त ऋण तक पहुंचने में मदद देगा, के निर्माण के उद्देश्य से अंतर्निहित प्रौद्योगिकियों के युग्म का लाभ उठाने वाले नवाचार वित्तीय समावेशन में अभूतपूर्व गति से तेजी ला रहे हैं।

इन नए डिजिटल तरीकों का एक महत्वपूर्ण पहलू भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने पर जोर देना है। फिलहाल तीन-चौथाई से अधिक भारतीयों के पास बैंक खाता है, जोकि औपचारिक होने की दिशा में एक आवश्यक कदम है।

औपचारिक होने की दिशा में अब तक का सबसे बड़ा कदम वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत थी, जिसने पहली बार देश को आर्थिक रूप से एकीकृत किया। रातोंरात, भारत जटिल अप्रत्यक्ष करों के चक्रव्यूह से निकलकर ‘एक देश, एक कर’ की ओर बढ़ गया। तथ्य यह है कि राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा अपनी संप्रभुता को सहेजने की प्रक्रिया ने एक नई संघीय राजनीति-सहकारी संघवाद- की नींव भी रखी।
साथ ही हाल के वर्षों में केंद्रीय बजट का उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था का स्‍वरूप एकदम नए सिरे से तय करने के बारे में संकेत देने के लिए किया गया है, जिसमें निजी उद्यमों की अब समान हिस्सेदारी है। जहां तक निजी उद्यमों का सवाल है, इनमें न केवल भारतीय कॉरपोरेट जगत, बल्कि तेजी से विकसित हो रहे स्टार्ट-अप्‍स और छोटे उद्यम भी शामिल हैं।

‘कारोबार करने में और आसानी’ सुनिश्चित करने के अलावा महामारी का प्रकोप शुरू होने के बाद पेश किए गए पहले बजट में एक अभूतपूर्व और साहसिक निर्णय लिया गया जिसके तहत य‍ह घोषणा की गई कि सार्वजनिक क्षेत्र अब अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र नहीं रह गया है। बजट में फिर एक कदम और आगे बढ़कर यह घोषणा की गई कि सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) की परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण किया जाएगा, ताकि बुनियादी ढांचागत सुविधाओं या अवसंरचना में नए निवेश हेतु आवश्‍यक धनराशि का इंतजाम करने के लिए दुर्लभ पूंजी को जारी किया जा सके। उल्‍लेखनीय है कि देश में अपेक्षा के अनुरूप अवसंरचना न होने के कारण वस्‍तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति में बड़ी बाधा उत्‍पन्‍न होती रही है जिस वजह से अर्थव्यवस्था के विकास की गति निरंतर तेज नहीं हो पा रही है।

दरअसल, वित्‍त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट ने न केवल पिछले चार दशकों की राजकोषीय खामियों को ठीक करके केंद्र सरकार के बही-खातों को बिल्‍कुल दुरुस्‍त कर दिया है, बल्कि इसके साथ ही खर्च करने के स्‍वरूप को भी बदल दिया है जो

अंतिम विश्लेषण में यह स्पष्ट हो गया है कि नए सिरे से मौलिक बदलाव लाने वाले इन समस्‍त बजटीय उपायों का एक ही उद्देश्य है: सतत विकास।

अनिल पद्मनाभन एक पत्रकार हैं जो @capitalcalculus ट्वीट करते हैं।
****

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button
error: Content is protected !!