भारत में झारखंड राज्य देश के पूर्वी भाग मे स्थित है और अपनी संस्कृति, विशिष्ट चित्रकला, परंपराओं और त्योहारो के लिए जाना जाता है।
अर्चना मिश्रा/झारखंड का इतिहास बहुत समृद्ध, विविध और पुराना है। प्राचीन काल मे यहाँ कई राजवंशों का शासन रहा। झारखंड का इतिहास पाषाण युग से जुड़ा है। इस क्षेत्र में ताम्र पाषाण काल के तांबे के औजार मिले हैं। 1947 में आजादी के बाद यह क्षेत्र मध्य प्रदेश, ओडिशा, और बिहार मे बंट गया।
झारखंड चारों ओर से हरे भरे परिदृश्य, आदिवासी संस्कृति और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों की भूमि है। यह भारत की जीवित कला के रूप में खड़ी है। 15 नवंबर 2000 मे झारखंड को बिहार के दक्षिणी हिस्से से अलग किया गया था। यह युवा राज्य अपने ऐतिहासिक महत्व, सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक क्षमता के साथ तेजी से प्रगति के पथ पर है।
भगौलिक रूप से यह क्षेत्र छोटा पठार और पूर्वी घाट को कवर करता है जिसमे पहाड़िया, घाटियां एवं विशाल जंगल शामिल हैं। दामोदर ,स्वर्ण रेखा और शंख ये प्रमुख नदियाँ इस राज्य मे बहती हैं जो कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का पोषण करती हैं।
इसके प्रमुख खनिजों मे कोयला, लौह अयस्क, यूरेनियम, अभ्रक और बॉक्साइट शामिल है।
झारखंड की सांस्कृतिक समृधि इसके विविध आदिवासी समुदायों में पाई जाती है। संथाली नृत्य और पुरुलिया के छऊ नृत्य ने पूरे देश में राष्ट्रिय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। सरहुल, करम और सोहराई जैसे आदिवासी त्यौहार झारखंड के सांस्कृतिक रूप रेखा को जीवंतता से जोड़ते हैं।
झारखंड अपनी कला और शिल्प के
लिए भी जाना जाता है, जिसमे मिट्टी के बर्तन, धातु का काम और बांस का काम शामिल है। कुछ प्रसिद्ध कला के रूपों में मधुबनी और सोहराई कला शामिल है।
झारखंड के पारंपरिक वस्त्रों में लाल पाढ की सफेद साडी, गमछा और चादर शामिल हैं जो अक्सर आदिवासी महिलाओं द्वारा पहना जाता है।यहाँ धार्मिक विविधताएं देखने को मिलेंगी। झारखंड का खानपान भी विविधताओं के लिए जाना जाता है। दाल, चावल, रोटी और सब्जियों की प्रधानता तो होती ही है किंतु छोटा नागपुर क्षेत्र मे चावल के आटे से कई प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं। जैसे धुसका, डुबकी, पारंपरिक इडली, चिल्का रोटी, पूआ आदि शामिल हैं।
झारखंड प्रकृति से घिरा राज्य है। यहाँ के मुलवासी आदिवासी ही हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं। जिस ऋतु मे जो फल या सब्जियों की पैदावार होती है उसे ये भोग स्वरूप पहले प्रकृति देवी को अर्पित करते हैं। कटहल और सहजन यहाँ की पारंपरिक फल और सब्जी है।
फ़ुटकल, रूगडा, केन जैसे कुछ वनस्पति होते हैं जो अमूमन चटनी, सब्जी और औषधि के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं।
झारखंड मे कई भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें खोरठा, नागपुरी, संथाली, मुंडारी, भूमिज, हो, खडिया, कुडुख, मगही, अंगिका प्रमुख है। झारखंड का राजकीय फूल पलाश है। पलाश के फूल वसंत ऋतु मे खिलते हैं और झारखंड की संस्कृति और प्रकृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पलाश के फूल को जंगल का आग भी कहा जाता है क्योंकि इसके चटक केसरिया रंग पूरे जंगल को अपने रंग में ढाल लेते हैं। झारखंड की संस्कृति और प्रकृति का एक अहम हिस्सा है पलाश। पलाश के फूल का उपयोग होली के रंगों, धार्मिक समारहों एवं पारंपरिक कलाकृतिओं में किया जाता है। पलाश के फूलों, छाल,पत्ती और बीजों का उपयोग कई तरह के औषिधि दवाओं को बनाने मे किया जाता है।
झारखंड के धार्मिक स्थलों मे बाबा वैद्यनाथ धाम, वासुकि धाम, बाबा शुम्भेश्वर नाथ धाम धौनी, पारसनाथ, रजरप्पा, जगन्नाथ मन्दिर, देवरी मंदिर, इटखोरी का भद्रकाली मंदिर पहाड़ी मन्दिर आदि शामिल हैं।
पर्यटन के लिए भी झारखंड बड़ा ही रमणिक स्थल है। घूमने के लिए रांची, देवघर, बेतला नेशनल पार्क, जमशेदपुर, घाटशिला, हजारीबाग, नेतरहाट, बोकारो स्टील सिटी, दशम फाल, धनबाद,मैथन और पतरातु घाटी प्रकृति प्रेमीयों के लिए आनंददायक जगह है।
झारखंड की संस्कृति एक जीवंत और गतिशील संस्कृति है जो लगातार विकसित हो रही है। राज्य की संस्कृति में विभिन्न समुदायों के मिश्रण ने इसे एक अद्वितीय और आकर्षक सांस्कृतिक विरासत प्रदान की है।