रक्षा बंधन के अवसर पर शुभकामनाओं के साथ विशेष आलेख।…
प्रभाकर चौबे,/रक्षा बंधन भाई बहन का त्योहार माना जाता है। लेकिन गोवर्धन पूजा भैया दूज ही भाई बहन का वास्तविक त्योहार है।श्रावण पूर्णिमा तो ब्राह्मणों के श्रावणी पूजा का दिन है। किसी नदी के तट पर पार्थिव पूजा रुद्राभिषेक होना चाहिए। वहीं लोग जाकर ब्राह्मणों से रक्षा बंधन करवा कर दक्षिणा देते।घर घर बांधने जाना पड़ता है। यह ठीक नहीं है। इस दिन का पूरा सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। ब्राह्मण रक्षा बंधन ही करेंगे तब श्रावणी महोत्सव कैसे होगा।भाई को बहन रक्षा बांधती है। आशीर्वाद देती है और रक्षा का वचन लेती है। द्रौपदी ने शिशुपाल वध के समय सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की अंगूठी चोटिल हो जाने और खून बहने पर अपनी साडी फाड़कर बांधा था। श्री कृष्ण ने उसकी लाज रखी राज सभा में जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब श्री कृष्ण ने उस साड़ी की कीमत चुकाई। साड़ी बढ़ती ही जा रही थी। दु: शासन थक गया लेकिन द्रौपदी को नंगा नहीं कर पाया। आज का भाई अगर बहन की रक्षा करने को दृढ़ संकल्प युक्त होता तो बहनों को भटकने नहीं देता जो प्रेमानंद ओर अनिरुद्धाचार्य के विरुद्ध खड़ी हैं।कुछ लड़कियों ओर लड़के बूढ़े भी अपनी आवारागर्दी का प्रदर्शन सोशल मीडिया में कर रहे /रही हैं और ब्लैक मेलिंग के जरिए धन बनाने की कोशिश कर रही हैं।कुछ सरे बाजार प्रेमी के हाथ में हाथ ओर कंधे पर हाथ रख कर घूम रही हैं। कुछ मुस्लिम के लव जिहाद के शिकार हो जा रही हैं।किसने इनको इतनी छूट दे दी , कानून ने ? सनातन धर्म संस्कृति का नाश करने के लिए? ऐसे कानून अपनी जगह रहे। भाइयों का क्या कर्तव्य है यह विचारणीय प्रश्न है।जिनसे शादी नहीं हुई है आपकी वह सब प्रेमिका नहीं हैं न हो सकती हैं।उनको बहन मानो न मानो उसकी रक्षा भाई की तरह करना धर्म है कि नहीं? मुस्लिम से शादी करे घूमे किसी जाति में कर ले ।लव इन
रिलेशनशीप में रहे तब बहन की रक्षा कहां हुई। सनातन धर्म संस्कृति तो नारियों के शुद्ध आचरण ओर शील पर टीका हुआ है।नारियां दूषित हो जाएंगी तब घर परिवार सब बिखर जाएगा और वर्णसंकर पैदा होगा जो सनातन धर्म संस्कृति को लील जाएगा। वह कुल घाती होगा । धर्म, देव ,ऋषि ,पितर, ब्राह्मण ,संत द्रोही होगा और राष्ट्र घातक भी। सनातन धर्म संस्कृति बहुत शोध युक्त है और सभी ज्ञान विज्ञान तत्व ज्ञान, मनो विज्ञान, प्रकृति विज्ञान, स्वास्थ विज्ञान , गुण धर्म के विकास के सिद्धांत आदि समस्त विज्ञानो को मथ कर जो ज्ञान का नवनीत निकला है उसपर आधारित है।यह पाश्चात्य अधूरे ज्ञान पर आधारित व्यवस्था नहीं है। श्रेष्ठतर को छोड़ निकृष्टतम कुसंस्कार को ग्रहण करना रोकना ही रक्षा बंधन है।बहन से इसका संकल्प लेकर ही राखी बंधवाए ओर खुद संगठित होकर अपने उदात्त संस्कृति रूपी बहन की बचाने में लग जाएं ।वह बच गई तो बहने भी सुरक्षित हो जाएंगी।
भगवान भोले नाथ का पूजन करें और ब्राह्मणों के घर पर जाकर रक्षा बंधन करवाएं अगर वे आ गए तो सौभाग्य मानिए। बहनों से भी बंधवाए। फर्स्ट ईयर में राखी बंधवाईए दोस्ती करने के लिए । सेकंड ईयर से लव ओर फोर्थ ईयर में शादी या लिव इन रिलेशन शीप। फिफ्थ ईयर से टुन्ना,टुन्नी ,मुन्नी , । वाह रे रक्षा बंधन। सम्बन्ध बहन का बनाया ओर हो गई बीबी तब तुम हिंदू हुआ या तुर्क?
बहन जिसको बनाओ तो संबंध को निभाओ। धर्म संस्कृति की रक्षा हेतु प्रेमिका नहीं बहन बनाओ। प्रेमिका बनाना भी हो तो किसी एक को बनाओगे शेष को तो बहन मानोगे या सबको प्रेमिका बनाएगा? अब तो देश में बूढ़े भी समलैंगिक हो गए हैं। युवक भी । भारत को स्वाधीन करना था हो गया स्वतंत्र । कानून और व्यवस्था ही ऐसा बना डाला । यह विकास है या विनाश। हमारी पहचान अपने उदात्त संस्कृति के चलते ही हमे विश्व गुरु बनाएगा। न कि रण्डीबाजी समलैंगिकता और अंतरजातीय विवाह। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने चले हो या म्लेच्छ राष्ट्र? जवाब दो । मंदबुद्धि अभागे , अग्यानी ,सत्ता ओर जातीय स्वार्थ में पड़े बनमानुसो और भैंसभाई साहबों अपने क्षणिक सुख के लिए तथा पूर्वाग्रह के कारण पूरे संनातनी संस्कृति को ही के डूबेगा । प्रभाकर चौबे