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दक्षिण भारतीय राज्यों का जनसंख्या के आधार पर परिसीमन का विरोध बिहार के साथ अन्याय: उपेन्द्र कुशवाहा

मुकेश कुमार/” एक व्यक्ति एक वोट और सबके वोट का मूल्य बराबर” ही संविधान की मूल भावना

*2011 की जनगणना के आधार पर बिहार में होती लोकसभा की 60 से अधिक सीट
26 से 28 अप्रैल को वाल्मीकिनगर में रालोमो का राजनीतिक मंथन शिविर

राष्ट्रीय लोक मोर्चा के पटना स्थित कैंप कार्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने प्रेस को संबोधित किया। उपेन्द्र कुशवाहा ने प्रेस को यह जानकारी दी कि आगामी 26 से 28 अप्रैल को वाल्मीकिनगर में रालोमो का राजनीतिक मंथन शिविर आयोजित किया जाएगा। इस शिविर में पार्टी के राष्ट्रीय, प्रदेश एवं जिला स्तर के लगभग 250 पदाधिकारी शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि आगामी विधानसभा चुनाव तो शिविर में मंथन का विषय रहेगा ही साथ ही साथ वो सभी मुद्दे जिसको पार्टी समय समय पर उठाती रही है वो भी शिविर में मंथन का विषय होगा।
उपेन्द्र कुशवाहा ने बताया कि आजकल दक्षिण भारत के राजनीतिक दल परिसीमन को लेकर अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। इन दलों के नेता कह रहे हैं कि परिसीमन से दक्षिण के राज्यों का नुकसान होगा। जबकि स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है। इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करते हुए श्री कुशवाहा ने मीडिया से अनुरोध किया कि इस विषय पर लोगों तक सही जानकारी पहुंचाइ जाय। उन्होंने बताया कि संविधान की यह मूल भावना है कि एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार हो और सबके वोट का मूल्य बराबर हो। यही सही मायने में लोकतंत्र का उचित सम्मान है। जबकि आज स्थिति ये है कि दक्षिण के 21 लाख लोग मिलकर एक सांसद चुनते हैं वहीं उत्तर भारत में 31 लाख लोग मिलकर एक सांसद चुन रहे हैं। जो वोट के सामना मूल्य के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है। इस संबंध में कांग्रेस के कारनामे को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद केवल 1951,1961 एवं 1971 में संविधान के मूल भावना के अनुसार परिसीमन किया गया। दुर्भाग्य की बात है कि उसके बाद साल 1976 को आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में संशोधन कर न केवल 25 वर्षों के लिए परिसीमन के नियमों में संशोधन कर दिया और चुनाव क्षेत्रों की संख्या पर कैप लगा दिया ताकि संख्या बढ़ाई नहीं जा सके। उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि दक्षिण भारत के राजनीतिक दलों का तर्क तथ्यहीन है। ये नेता कहते हैं कि चूंकि उन्होंने दक्षिण के क्षेत्र की जनसंख्या पर नियंत्रण रखा है इसलिए जहां ज्यादा जनसंख्या बढ़ी है वहां परिसीमन का लाभ हो जाएगा उनकी सदस्यों की संख्या बढ़ जाएगी।इस तर्क को काटते हुए कुशवाहा ने बताया कि जे एन यू के शोधकर्ता रवि मिश्रा के रिसर्च के अनुसार दक्षिण के राज्यों का साल 1881 से 1971 तक उत्तर भारत की तुलना में जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी थी तब तक परिसीमन ठीक था। उसी दौरान उत्तर भारत अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ लड़ रहा था जनसंख्या वृद्धि का अनुपात इस क्षेत्र में उस समय तक कम था। उसके बाद उत्तर भारत में जब परिस्थित सामान्य होने के बाद आज परिसीमन की जरूरत है तो दक्षिण के राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। उनका उद्देश्य आपसी भेदभाव पैदा कर राजनीतिक लाभ उठाना है।
श्री कुशवाहा ने कहा कि ये तो ऐसा ही है जैसे खुद पंगत लगाकर भर पेट भोजन कर लिया जाए और फिर दूसरों की जब बारी आए तो कहा जाय कि पंगत ही नहीं लगेगी। उन्होंने कहा कि इसलिए मेरा मानना है कि सरकार को जल्द से जल्द परिसीमन को लेकर निर्णय लेना चाहिए ताकि बिहार जैसे राज्यों को अनदेखी न हो।

पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता नितिन भारती ने बताया कि आज की इस प्रेस वार्ता में मंच पर पार्टी के प्रभारी प्रदेश अध्यक्ष मदन चौधरी, जीतेंद्र नाथ पटेल, प्रशांत पंकज,अंगद कुशवाहा, ई हेमंत कुमार, नितिन भारती, ब्रजेन्द्र पप्पू, बसंत पटेल आदि भी उपस्थित थे।

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