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कटिहार जिले के बेलवा गाँव के सरस्वती मंदिर जहां मां सरस्वती ने दिए थे संस्कृत विद्वान महाकवि कालिदास को दर्शन

मान्यता के अनुसार इस मंदिर की स्थापना कालिदास ने की थी। यहां पूरे साल मां सरस्वती की पूजा की जाती है। ग्रामीणों की आराध्य देवी भी मां सरस्वती ही हैं।

कटिहार/धर्मेन्द्र सिंह, बिहार के कटिहार जिले कि एक अनोखा कहानी जिससे आप शायद ही जानते होंगे। आपको बता दें कि जहां संस्कृत विद्वान कालिदास को ज्ञान प्राप्त हुआ था वो बिहार के कटिहार जिला था। बता दें कि यहां ही कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बिहार राज्य के कटिहार में वसन्त पञ्चमी के मौके पर बारसोई निकट बेलवा गांव में श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। इस क्रम सबकी आस्था का इस जगह केंद्र होता है। इतना ही नही बिहार का प्रसिद्ध नील सरस्वती मंदिर है। यहा के ही नही वल्की पुरे बिहार के लोग कहते हैं कि महाकवि कालिदास को इसी गांव यानि कि कटिहार जिले में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कालिदास की वह एक प्रसिद्ध कथा, “जिसमें वह प्यास से बेहाल हो जाते हैं” और तब एक वृद्धा ने उनका अभिमान दूर कर दिया था, कहा जाता है कि वह कथा, बिहार के कटिहार में इसी बेलवा गांव की है। वहीं कालिदास ने की थी उपासना मान्यता के मुताबिक इस मंदिर की स्थापना कालिदास ने ही की थी। आपको बता दें कि यहां पूरे साल मां सरस्वती कि पूजा की जाती है। प्राचीन सरस्वती स्थान में महाकाली, महागौरी और महासरस्वती की संयुक्त प्रतिमा स्थापित की हुई है। वहीं स्थानीय लोग बताते हैं कि बेलवा से चार किलोमीटर दूर वारी हुसैनपुर गांव में अभी भी राजघरानों के अवशेष हैं। मान्यता है कि महाकवि कालिदास की ससुराल भी  यहीं थी। इतना ही नही पत्नी से नाराजगी हो जाने के बाद कालिदास ने इसी सरस्वती स्थान में आकर उपासना की थी। हालांकि बांग्ला साहित्य में बताया गया है कि महाकवि कालिदास यहीं से उज्जैन जाकर प्रसिद्ध हुए थे। उन्हें कहां ज्ञान प्राप्त हुआ, लेकिन इसकी जानकारी किसी पुस्तक में नहीं है। लेकिन आपको बता दें कि बांग्ला साहित्यकार बंकू बिहारी मंडल की कृति ओचैना शक्तिपीठ बेलवा व कालीदास उपाखन नामक पुस्तक में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। इतना ही नही बताया गया हैं कि यहां सदियों पुरानी चमकीले पत्थर वाली नील सरस्वती की प्रतिमा स्थापित थी। लेकिन 1989 में प्रतिमा चोरी हो गई थी, जिसके बाद भी ग्रामीणों की आस्था कम नहीं हुई है। बल्कि मां सरस्वती की स्थायी प्रतिमा स्थापित कर ग्रामीण साल भर यहां पूजा-अर्चना करते रहे थें। बता दें कि सरस्वती पूजा के दिन यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में बिहार राज्य के लोग ही नही बल्कि पड़ोसी राज्य बंगाल से भी लोग इस मेले का अनंद लेने आते हैं। हालांकि तीनों देवियों के संयुक्त रूप में होने के वजह से यहां पहले बलि देने की प्रथा थी। लेकिन बाद में यह प्रथा बंद हो गई। और अब माता को सिर्फ नारियल को प्रसाद चढ़ाया जाता है। आपको बता दें कि इस जिले में वर्ष 2017 में यहां अष्ठधातु की सात मूर्तियां जमीन के अंदर से मिली थीं।

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