उच्च शिक्षा में स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने का उद्देश्य समावेशिता को बढ़ाना है….
विजय गर्ग/उच्चतर प्रदान करने के खतरे स्थानीय भाषाओं में शिक्षा उच्च शिक्षा में स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने का उद्देश्य समावेशिता को बढ़ाना है, लेकिन यह शिक्षा की गुणवत्ता के लिए चुनौतियाँ भी पैदा कर सकता है शिक्षा अंग्रेजी में दी जानी चाहिए या किसी क्षेत्रीय भाषा में, यह बहस हमारे स्वतंत्रता के बाद के समाज में सक्रिय रूप से चलती रही है। यह सच है कि एक राष्ट्र के रूप में हमें अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करना होगा, लेकिन साथ ही, हमें अपनी वर्तमान पीढ़ी को भविष्य में अंतरिक्ष युग और एआई जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने की आवश्यकता है। उपनिवेशीकरण के दौरान विदेशियों का काम आसान करने के लिए अंग्रेजी हम पर थोपी गई। उस प्रक्रिया में हमारी भूमि पर शासन करने वाले विदेशी शासकों ने हमारे समृद्ध वैज्ञानिक ज्ञान को समझने के लिए देशी भाषाएँ भी सीखीं, कभी-कभी देशी भारतीयों से भी बेहतर। इस वजह से, वे मूल भारतीयों की तुलना में भारतीय ज्ञान प्रणालियों के बारे में बेहतर विद्वतापूर्ण कार्य करने में सक्षम थे। इससे लंबे समय में दुनिया को भारतीय ज्ञान को पहचानने में मदद मिली है। दूसरी ओर, अंग्रेजी के प्रभुत्व ने कई देशी भाषाओं की स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया है। ब्रिटिश शैक्षिक सुधारों ने विशेषकर उच्च स्तरों पर अंग्रेजी-माध्यम शिक्षा को प्राथमिकता दी। इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई जहां अंग्रेजी में दक्षता सत्ता, नौकरियों और सामाजिक गतिशीलता तक पहुंच का पर्याय बन गई। कई शिक्षित भारतीयों ने, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, क्षेत्रीय भाषाओं को दरकिनार करते हुए अंग्रेजी को अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में अपनाना शुरू कर दिया। इसने अंग्रेजी-शिक्षित अभिजात वर्ग और मूल भाषा बोलने वाले लोगों के बीच एक भाषाई विभाजन पैदा किया। ऐतिहासिक एनईपी 2020 में शिक्षा प्रणाली में क्षेत्रीय भाषाओं पर हमारा ध्यान फिर से केंद्रित करने की कल्पना की गई है। दुर्भाग्य से, विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा में स्थानीय भाषा को बढ़ावा देने पर इसका ध्यान अत्यधिक सक्रियता के कारण समस्याग्रस्त हो गया है। कई राज्य विज्ञान, इंजीनियरिंग और चिकित्सा पाठ्यपुस्तकों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने में शामिल हैं। हालाँकि ये हमारी भाषाओं को संरक्षित करने के लिए एक मूल्यवान दस्तावेज़ के रूप में काम करेंगे, लेकिन ये उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद नहीं करेंगे। एनईपी से पहले भी कई राज्य विश्वविद्यालयों में विज्ञान को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में लिखने का प्रावधान था। लेकिन उसके लिए बहुत कम खरीदार थे। आज भी जब हम क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रचार-प्रसार करते हैं तो उसका क्रियान्वयन एकसमान रूप से नहीं हो पाता है। ये सभी नीतिगत बदलाव, अच्छे या बुरे, केवल सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को प्रभावित करेंगे। दुर्भाग्य से, हमारे सरकारी कर्मचारियों, राजनेताओं या यहां तक कि कार्यकर्ताओं के किसी भी बच्चे इन सार्वजनिक क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों में नहीं पढ़ते हैं, इसलिए उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि इससे गुणवत्ता में सुधार होगा या नहीं। तो यह सारा भाषा प्रेम ‘केवल दूसरों के लिए है, मेरे लिए नहीं’। यह संस्कृति फिर से हमारे समाज में भाषाई विभाजन पैदा कर रही है, जो अंग्रेजों ने बहुत पहले हमारे साथ किया था। हम इसे पसंद करें या नहीं, अंग्रेजी ही एकमात्र भाषा है जो हमारे देश के विभिन्न वर्गों को जोड़ने वाले पुल के रूप में कार्य करती है। और उच्च शिक्षा में, विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रमों में जहां जानकारी अन्य देशों में उत्पन्न ज्ञान से एकत्र की जाती है, यह एकमात्र ऐसी भाषा बन गई है जो हमें वैश्विक ज्ञान केंद्र से जोड़ सकती है। यदि वे अंग्रेजी समझने में सक्षम नहीं हैं तो हम अच्छे इंजीनियर या वैज्ञानिक कैसे तैयार कर सकते हैं? यदि क्षेत्रीय भाषा में इंजीनियरिंग या विज्ञान पाठ्यक्रम की पेशकश की जाती है तो क्या कोई खरीदार होगा? हमारे भविष्य के युवा कैसे जीवित रहेंगे?एक एआई प्रभुत्व वाली डिजिटल दुनिया जहां वैश्विक कार्यबल के लिए अंग्रेजी भाषा है? वे अंतरिक्ष कॉलोनी में कैसे जीवित रहेंगे? अंग्रेजी निस्संदेह विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान की वैश्विक भाषा है। अधिकांश अत्याधुनिक वैज्ञानिक पेपर, इंजीनियरिंग मैनुअल और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट अंग्रेजी में प्रकाशित होते हैं। हालाँकि जटिल वैज्ञानिक तथ्यों को पढ़ाने के लिए शिक्षा की द्विभाषी पद्धति को अपनाया जा सकता है, लेकिन हमारी उच्च शिक्षा से अंग्रेजी की पूरी तरह से उपेक्षा हमारे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए मौत का जाल होगी। अनावश्यक भाषाई अंधराष्ट्रवाद उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को नष्ट कर देगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट -152107 पंजाब
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आवास की तलाश में हिंसक होते जीव
विजय गर्ग
उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिले बहराइच में पिछले दिनों भेड़ियों का भीषण आतंक फैला था। वहां बीते मार्च में शुरू हुए भेड़ियों के हमलों में अब तक सर्वाधिक शिकार इलाके के छोटे-छोटे बच्चे हुए हैं। इन हमलों में अब तक नौ बच्चों समेत लगभग दर्जन भर लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि चालीस से अधिक लोग घायल हुए हैं। घायलों में भी अधिकांश बच्चे ही हैं। यों भेड़िए ही नहीं, हाथी, शेर, सियार, तेंदुआ, चीता, भालू और बाघ जैसे बेहद खूंखार और भयावह वन्य पशुओं की मानव बस्तियों में घुसपैठ और उनके द्वारा मनुष्यों, विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं पर हमले की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। महाराष्ट्र में बाघों, भालुओं, तेंदुओं और जंगली हाथियों, मध्यप्रदेश में सियारों और पूर्वोत्तर के राज्यों में जंगली हाथियों के हमले जैसे आए दिन की बात हैं। निर्विवाद रूप से ये घटनाएं अत्यंत दुखद और भयावह हैं। इसलिए लोगों का आक्रोशित होना उचित है, लेकिन प्रश्न है कि आखिर जंगल में आजाद विचरने, छोटे वन्य पशुओं का शिकार कर अपना तथा परिवार का भरण-पोषण करने और सामान्यतया अपने परिवार के साथ जीवन यापन करने वाले ये भेड़िए इतने खूंखार क्यों हो गए कि छोटे-छोटे मासूम बच्चों को मारकर खाने लगे।
दरअसल, देश भर में जंगलों की बेतरतीब कटाई के कारण वन्य पशुओं का आशियाना दिनोंदिन उजड़ता जा रहा है। आज विश्व की कुल जनसंख्या आठ अरब से अधिक हो चुकी है और प्रति वर्ष इससे दो गुने से ज्यादा, लगभग अठारह अरब वृक्षों की कटाई हो रही है। पेड़ों की इस अंधाधुंध कटाई की भरपाई का एक ही तरीका हो सकता है और वह है तीव्र गति से नए पौधों का रोपण और उनकी देखभाल करना । यानी जितने पेड़ प्रति वर्ष काटे जा रहे हैं, कम से कम उतने पौधे भी दुनिया भर में लगाए जाएं। हालांकि उन पौधों के पेड़ बनने में कई वर्ष लग जाते हैं। इसलिए वास्तव में पौधरोपण की जो वर्तमान दर और गति है, उससे लगातार नष्ट किए जा रहे जंगलों के एवज में नए जंगल उगा पाना संभव नहीं है। पौधरोपण वन्य पशुओं के प्राकृतिक रहवास और पर्यावरण दोनों को बचाने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प है, किंतु इस कार्य में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त करने के लिए पौधरोपण की गति को इस हद तक बढ़ाना होगा कि जितने वृक्ष प्रति वर्ष दुनिया भर में काटे जाते हैं, कम से कम उससे डेढ़ गुना पौधे लगाए जाएं। फिलहाल प्रति वर्ष अठारह अरब काटे जाने वाले वृक्षों की तुलना में दुनिया भर में मात्र पांच अरब पौधे लगाए जा रहे हैं। जाहिर है में कि इस प्रकार पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की भरपाई संभव नहीं होगी।
भारत में भी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने 21 मार्च, 2022 को बताया था कि वर्ष 2020-21 के दौरान भारत में सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और विकास के लिए लगभग 31 लाख पेड़ काट दिए गए। वन (संरक्षण) अधिनियम के अंतर्गत काटे गए पेड़ों के बदले में प्रतिपूरक वनीकरण की योजना चलाकर केंद्र सरकार ने 359 करोड़ रुपए की लागत से 3.6 करोड़ से अधिक पौधे लगाए, जो नाकाफी लगते हैं, क्योंकि फिलहाल इससे संबंधित कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि उनमें से कितने पौधे बचाए गए और कितने नष्ट होने के लिए छोड़ दिए गए। बहरहाल, वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण दिनोंदिन वन्य पशुओं का प्राकृतिक रहवास सिकुड़ता जा रहा है, इससे इनके लिए भोजन- पानी की समस्या पैदा हो गई है। इसीलिए वन्य पशु भोजन-पानी की तलाश में मानव बस्तियों की ओर पलायन करने पर मजबूर हुए हैं। वैसे, भेड़िए स्वभाव से खूंखार तो होते हैं, पर सारे भेड़िए आदमखोर नहीं होते। हालांकि प्रतिशोध लेने में ये बड़े माहिर होते हैं इसलिए अगर इनको या इनके परिवार के सदस्यों को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया जाए, तो ये कतई सहन नहीं करते और अपने शत्रुओं से बदला लेते हैं।
आज से लगभग पच्चीस वर्ष पहले ऐसी ही एक घटना सुर्खियों में आई थी, जिसमें उत्तर प्रदेश के जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में सई नदी के कछार पर भेड़ियों के हमलों में इलाके के पचास से भी अधिक मासूम बच्चों की मौत हो गई थी उसकी पड़ताल करने पर पता चला था कि इंसान के कुछ बच्चों ने भेड़ियों की एक मांद में घुसकर उनके दो बच्चों को मार डाला था, जिसके प्रतिशोध में भेड़ियों ने हमले कर मनुष्यों के पचास से अधिक मासूम बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था। उस दौरान वन विभाग द्वारा चलाए गए भेड़ियों के धर-पकड़ अभियान में कुछ भेड़िए पकड़े भी गए थे, लेकिन उनके बीच में मौजूद आदमखोर जोड़ा हमेशा बचता रहा और बदला लेने के कोशिश में लगातार कामयाब भी होता गया। हालांकि बाद में आदमखोर भेड़ियों को वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा गोली मार दी गई और अंततः भेड़ियों का खूनी आतंक खत्म हो पाया था। गौर करें तो बहराइच की घटनाओं में भी भेड़ियों का वही व्यवहार नजर आता है। इसलिए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि भेड़िए अपने बच्चों को नुकसान पहुंचाने या उनकी हत्या करने का बदला ले रहे हों। बहरहाल, दुख की बात यह है कि एक बार फिर भेड़ियों की जान खतरे में आ गई है, क्योंकि शासन-प्रशासन की ओर से इन्हें गोली मारने का आदेश दे दिया गया है। वैसे भेड़ियों के विरुद्ध की जाने वाली सरकारी कार्रवाइयों पर गौर करें तो उनके जीवन का सर्वाधिक स्याह पक्ष अंग्रेजों के समय का है, जब ब्रिटिश सरकार की ओर से भेड़ियों को मारने का बड़ा अभियान चलाकर चालीस वर्षों में एक लाख से अधिक भेड़ियों को शिकारियों ने मार डाला था और ब्रिटिश राज की तरफ से ईनाम भी प्राप्त किया था।
देखा जाए तो मनुष्य और वन्य पशुओं के बीच जारी संघर्षो का यह सिलसिला बेहद गंभीर और चिंताजनक है। इसलिए समय रहते इसका हल ढूंढ़ना जरूरी है अन्यथा यह समस्या अत्यंत विकराल रूप ले सकती है। जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकारें वन्य प्राणी विशेषज्ञों की सलाह लेकर वन्य पशुओं के प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करने तथा बड़े स्तर पर वनीकरण अभियान चलाकर वनों के विकास करने की दिशा में कुछ ठोस और सकारात्मक कदम उठाएं, ताकि हमारे वन्य जीव आजादी से अपने घरों में बेफिक्र होकर रह सकें। संभव है कि इन प्रयासों के फलीभूत होने में कई वर्ष लग जाएं, लेकिन इस दौरान एक कार्य किया जा सकता है, वह है इन वन्य प्राणियों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर इन वन्य पशुओं के विरुद्ध क्रूरता के बदले में दया का भाव दर्शाया जाए और इनको लाड़-प्यार दिया जाए, तो मनुष्यों के प्रति इनके हिंसक व्यवहार में भी परिवर्तन आ सकता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट -152107
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जेनरेटिव एआई में कर लें अपनी तैयारी
विजय गर्ग
आटिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में जेनरेटिव एआई का इन दिनों बोलबाला है। लगभग सभी उद्योग एआई का उपयोग अपने डिजिटल मंच पर कर रहे हैं। इसी के चलते वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की मानें, तो एक ओर पहले से चली आ रही कुछ तरह की नौकरियां खत्म हो जाएंगी, तो वहीं 13.3 करोड़ से ज्यादा नई नौकरियों के मौके बनेंगे। जिसमें से कई एक में एआई और मशीन लर्निंग के स्किल की जरूरत होगी। इसी रिपोर्ट के अनुसार एआई और मशीन लर्निंग के क्षेत्र में आने वाले साल तक 9.7 करोड़ नई नौकरियां बनेंगी। यानी टेक्नोलॉजी के पेशेवरों और ग्रेजुएट्स के लिए इस क्षेत्र में तैयारी करने का सही समय है, ताकि वे भविष्य में इन मौकों का लाभ उठा सकें। इस महत्वपूर्ण तकनीक से संबंधित स्किल की तैयारी में सही आदशों को भी ध्यान में रखना होगा।
क्या है जेनरेटिव एआई
जेनरेटिव एआई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एक शाखा है, जो नया कंटेंट बनाने में मददगार बन रही है। इस तरह यह कई एक उद्योगों में बड़े बदलाव लाने में समर्थ हो रही है। जेनरेटिव एआई के माध्यम से सोशल मीडिया के लिए लेख लिखने, इमेजेस बनाना, नए संगीत की रचना करने और उत्पादों को डिजाइन करने और यहां तक कि कोडिंग जैसे काम भी लिए जा सकते हैं।
मौके और पद
यह तेजी से विकास करता तकनीकी क्षेत्र है, जो टेक्नोलॉजी संबंधित उद्योगों, हेल्थकेयर, मनोरंजन और फाइनेंस के क्षेत्र में देश और विदेश में काम के मौके बना रहा है। इस क्षेत्र में एआई रिसर्च साइंटिस्ट्स, मशीन लर्निंग इंजीनियर और क्रिएटिव एआई डेवलपरों की बहुत मांग है। कैसे तैयारी करें
■ गैर तकनीकी क्षेत्र के लोगों के लिए अगर आप गैर तकनीकी क्षेत्र से हैं, तो पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के इंट्रोडक्टरी कोर्स करें यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से संबंधित आधारभूत जानकारी से आपको लैस करेगा। कोर्सेरा, एडएक्स और खान एकेडेमी में काफी ऐसे कोर्स मिल जाएंगे, जो आप आसानी से कर सकेंगे।
■ तकनीकी क्षेत्र के लोगों के लिए: अगर आपके पास तकनीकी डिग्री है या टेक दुनिया के पेशेवर हैं, तो मशीन लर्निंग, नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग और अन्य प्रमुख एआई संबंधित सिद्धांतों पर पकड़ बनानी होगी। मशीन लर्निंग और एआई के लिए पायथन आदर्श लेंग्वेज है। टैसरफ्लो, पाईंटॉर्च और केरास जैसी लाइब्रेरी की जानकारी लें ये टूल्स मॉडल के विकास करने और उस पर प्रयोग करने में सहायक होते हैं। कोडिंग का अभ्यास करें। न्यूरल नेटवर्क, बैकप्रपोगेशन ऑप्टिमाइजेशन एल्गोरिदम, वेरिएशनल ऑटोएनकोडर्स (बीएई), जेनरेटिव एडवरसरियल नेटवर्क्स (जीएएन) और रिकरेंट न्यूरल नेटवर्क के बारे में जानकारी हासिल करें। अगर आपको एआई की अच्छी समझ है और रुचि भी है, तो एआई में मास्टर्स कोर्स या एडवांस कोर्स करने की जरूर सोचें। इस क्षेत्र में शोध कार्यों के मौकों को लेकर आपकी योग्यता बढ़ेगी।
■ रियल वर्ल्ड एप्लीकेशन पर ध्यान दें : जेनरेटिव एआई सिर्फ कोडिंग नहीं है। यह समझें कि कैसे आर्ट और लेखन जैसे क्षेत्रों में यह उपयोग की जा रही है। साथ ही सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, साइंस, मार्केटिंग और बहुत से क्षेत्रों में भी इस क्षेत्र में एक समग्र नजरिया आपको आगे रखेगा।
■ व्यावहारिक अनुभव लें एआई मॉडल को बनाने और प्रशिक्षित करने का व्यावहारिक परिस्थितियों में अभ्यास बहुत जरूरी है। जेनरेटिव एआई से इमेज क्रिएशन, राइटिंग और अनुवाद आदि की प्रतियोगिताओं, जैसे कोडिंग बूटकैंप, हैकेथॉन आदि में हिस्सा लें अलग-अलग मॉडल्स के आर्किटेक्चर पर काम करें, ताकि उनके काम करने की प्रक्रिया की समझ बढ़े। ऐसे लोगों से ऑनलाइन और ऑफलाइन संपर्क बनाएं, जो इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। फोरम से जुड़ें। ऑफलाइन सेमिनार या वर्कशॉप करें।
■ अपना हुनर दिखाएं भी इस तकनीक में अपनी योग्यता जाहिर करने के लिए सुरक्षित और उपयोगी जेनरेटिव एआई एप्लीकेशन के कुछ प्रोजेक्ट बनाएं। इसके लिए ओपन सोर्स प्रोजेक्ट्स की टीम का हिस्सा बनें अपनी जानकारी जाहिर करते उपयोगी ब्लॉग्स लिखें। ऐसे मेंटर ढूंढें, जो जेनरेटिव एआई को रचनात्मक क्षेत्रों से जोड़ते हुए बढ़िया काम करने के लिए जाने जाते हो। उनका मार्गदर्शन आपके लिए मददगार साबित होगा। # क्षेत्र विशेष के लिए एआई के स्किल सीखें: एआई के उपयोग से कंपनियां अपने उत्पादों और कामकाज को बेहतर बनाती हैं। उन्हें ऐसे लोगों की जरूरत होगी, जो इस तकनीक से मदद कर सकें। ऐसे में आपको क्षेत्र विशेष की गहरी जानकारी होना भी जरूरी है। जैसे हेल्थकेयर, शिक्षा, टूर एंड ट्रैवेल का क्षेत्र। इससे आपको रोजगार पाने की क्षमता और महत्व बढ़ेगा। जेनरेटिव एआई में आपको जगह बनाने के लिए मेहनत तो लगेगी, लेकिन भविष्य आपका होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कोर चंद वाली मंडी हरजी राम वाली मलोट पंजाब
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सक्रियता बनाम ठहराव
विजय गर्ग
जीवन सतत गतिमान बने रहने का नाम है। जब तक जीवन है, हमें सक्रिय रहना है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी भी है कि हम खुद को क्रियाशील बनाए रखें। लगातार लोगों से मिलते रहना, बोलते और सुनते रहना, सोचते रहना, अपने काम में मसरूफ रहना, एक तरह की अनवरत यात्रा में बने रहना, यकीनन खुशियां देता है, अवसाद से दूर रखता है। पर, जब भीतर से मन ठहराव चाह रहा हो, तब क्या कुछ देर के लिए किनारे जाकर खुद को मुक्त कर देना सक्रियता की तरह ही आवश्यक और स्वाभाविक नहीं होना चाहिए ?
ऐसा भी नहीं कि हमें लगातार चलते ही जाना है। लंबी यात्रा के लिए कुछ पड़ाव भी जरूरी होंगे। जीवन मे गति जरूरी है, लेकिन उतना ही जरूरी है थोड़ा-सा ठहराव । कुछ भी न करने का भाव, किसी को कुछ भी जताने, दिखाने, अपने आप को सिद्ध करने, उम्मीदों पर खरे उतरने, खुद को बदलने या लगातार बेहतर करते रहने की सनक में तब्दील होती तीव्र इच्छा जैसे अनावश्यक बोझ से खुद को कुछ समय के लिए मुक्त करने का भाव । यही जीवन का मानसिक ठहराव और तनिक विश्राम का जरूरी पड़ाव है, जो हमारी आगे की यात्रा को अर्थपूर्ण और सहज बनाता है ।
कुछ भी न करने का मन, स्वस्थ और सक्रिय व्यक्ति के मन में भी आ सकता है । असल में यह मानसिक परेशानी नहीं है। यह अपने मन को आराम देने का तरीका हो सकता है, जिससे मानसिक दबाव, अवसाद से भी बचाव संभव है। यह जरूर है कि अगर ऐसा लगातार बना हुआ है, शारीरिक, मानसिक परेशानियां भी हम महसूस कर रहे हैं तो हमें चिकित्सक या अपनों से सलाह लेनी चाहिए। अपनी तात्कालिक परिस्थिति को पूरी तरह स्वीकार करते हुए हर हाल में संतुष्ट बने रहने का भाव या ठहराव, यात्रा की गति में अवरोधक नहीं बनता है । यह अल्प विराम बहुत जरूरी है, ताकि हम सही दिशा में सही तरीके से गतिवान बने रह सकें । जिस तरह सतत सक्रिय बने रहना ही हमारे अस्तित्व या जीवन का प्रमाण नहीं है, वैसे ही विश्राम या ठहराव की स्थिति भी किसी अंत की घोषणा नहीं होती। कभी- कभी ठहराव के बाद ही सही और सार्थक शुरुआत होती है । नया रास्ता दिखाई देने लगता है जो लक्ष्य के करीब पहुंचना सुगम कर देता है। स्वस्थ, नवोन्मेषी विचारों का प्रादुर्भाव भी समुचित ठहराव के बाद और शांत मनःस्थिति में संभव हो पाता | मुश्किल यह है कि जीवन की तमाम आपाधापी में इस आवश्यक विश्राम या ठहराव के बारे में हम सोच नहीं पाते। लगातार जुटे रहते हुए हमारा ध्यान इस बात पर जाता नहीं कि वास्तव में इतने क्रियाशील और अधिक व्यस्त हो गए हैं कि रुकने, थमने का थोड़ा भी समय हम नहीं निकाल पा रहे।
हम सभी के पास सीमित शारीरिक क्षमता होती है । अपने सामर्थ्य से अधिक काम करने पर थक जाना एक स्वाभाविक लक्षण है। हमें विश्राम की जरूरत पड़ने लगती है। विचारों के उद्वेग से उत्पन्न मानसिक दबाव को लंबे समय तक झेला तो जा सकता है, लेकिन उसका दुष्प्रभाव हमारे मस्तिष्क को भी थकाने का काम करता है । यही कारण है कि मनुष्य को नींद लेने की नैसर्गिक सौगात मिली हुई है । यह एक ऐसा दैनिक ठहराव या विश्राम का दैनिक पड़ाव है, जिससे हमारे तन और मन का जरूरी रखरखाव होता रहता है।
जल्दी से जल्दी गंतव्य तक पहुंचने की जिद में शरीर और दिमाग को तेज दौड़ाने के प्रयास भी हम करते हैं कभी-कभी । दिमाग को निरंतर अनावश्यक रूप से सक्रिय बनाए रखते हैं । थोड़ी फुर्सत में खाली बैठते हैं, तब भी दिमाग मे कोई न कोई विचार उछलकूद करता रहता है । भूतकाल के कष्ट और भविष्य के सपने और सवाल मन को बेचैन बनाए रहते हैं। जबकि वर्तमान, जो हमारा वास्तविक जीवन है, उसमें सक्रियता और ठहराव के लिए निकट के प्रत्यक्ष अवसर हम नहीं देख पाते । मानसिक विश्राम को लेकर समाज में, हमारे खुद के मन में बड़ी उदासीनता मौजूद है। रात को भरपूर नींद लेना या किसी पर्यटन स्थल पर चले जाना ही जीवन में ठहराव नहीं है। इस जरूरी सुकून और ठहराव के लिए रोजमर्रा की गतिविधियों में भी अपने ध्यान को केंद्रित कर राहत और विश्राम के पलों को जीया जा सकता है। किसी निर्माणाधीन मकान के सामने आराम से बैठ कर उसके बनने की प्रक्रिया को निहारने के अलावा किसी बगीचे में माली को काम करते या बालकनी में बैठकर सड़क की ओर देखा जा सकता है। समय निकालकर अपनी घरेलू सहायक या सहायिका के दुख-दर्द को सुना और उसकी खुशियों के भागीदार बना जा सकता है। जिन्हें हम देख रहे हैं, वे क्रियाशील और हम विश्राम की स्थिति में होते हुए भी थकान का अनुभव करने लगते हैं ।
कई बार गैरजरूरी सक्रियता के चंगुल में हम फंस जाते हैं। जब शरीर को आराम देने का वक्त होता है, तब भी हम लगातार सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ पढ़, देख रहे होते हैं। सोशल मीडिया पर अपनी किसी एक गतिविधि को लंबे समय तक प्रसारित करते हुए सक्रिय बने रहते हैं । यह सक्रियता अनावश्यक -सी व्यस्तता में तब्दील हो जाती है। यह हमें ऊर्जा तो नहीं देती, थकावट अवश्य दे जाती है। सक्रियता के साथ ठहराव को भी खुले मन से स्वीकार करने की जरूरत है । हमने ठहरना ठीक से सीखा नहीं है। हम अपने आप को सक्रियता, दौड़-भाग से अलग करके सोच ही नहीं पाते। जब हम खुद को बंधे – बंधाए प्रारूप मुक्त करके तनिक ठहराव की मानसिकता बनाएंगे तो सचमुच एक खूबसूरत दुनिया हमारे सामने होगी।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कोर चंद वाली मंडी हरजी राम वाली मलोट पंजाब
(5 ) पांच कानून जिनके बारे में हर भारतीय महिला को पता होना चाहिए
विजय गर्ग
भारत का विशाल सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य समानता और न्याय के लिए प्रयासरत महिलाओं के लिए अपनी चुनौतियों के साथ आता है। इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, महिलाओं को उनके लिए उपलब्ध कानूनी सुरक्षा के बारे में जागरूक होना महत्वपूर्ण है। इन कानूनों को समझने से न केवल महिलाओं को अपने अधिकारों की रक्षा करने में मदद मिलती है बल्कि उन्हें अपनी सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने का अधिकार भी मिलता है। एडवोकेट डॉ. रेनी जॉय ने टीओआई के साथ पांच महत्वपूर्ण कानून साझा किए हैं, जिन्हें हर भारतीय महिला को सुरक्षित रहने के लिए जानना चाहिए।
समान काम के लिए समान वेतन
भारतीय कानून के तहत प्रमुख सुरक्षाओं में से एक समान वेतन का अधिकार है। समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 (ईआरए) के अनुसार, समान कार्य या समान कार्य करने वाले पुरुषों और महिलाओं को समान भुगतान किया जाना चाहिए। यह कानून नियुक्ति और पदोन्नति में लैंगिक भेदभाव को भी रोकता है। समान वेतन की गारंटी देकर, ईआरए महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने में मदद करता है और कार्यस्थल में निष्पक्षता सुनिश्चित करता है, खासकर उन उद्योगों में जहां आमतौर पर पुरुषों का वर्चस्व होता है
कार्यस्थल उत्पीड़न के विरुद्ध सुरक्षा
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, या पीओएसएच अधिनियम, कार्यस्थल पर उत्पीड़न के खिलाफ मजबूत सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत कंपनियों को यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिए सिस्टम स्थापित करने और आंतरिक शिकायत समितियां (आईसीसी) स्थापित करने की आवश्यकता है। महिलाओं को उत्पीड़न की रिपोर्ट करने का अधिकार है, जो एक सुरक्षित और अधिक सम्मानजनक कार्य वातावरण बनाने में मदद करता है।
घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (2005) एक महत्वपूर्ण कानून है जो शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, यौन और आर्थिक हिंसा सहित घर पर दुर्व्यवहार के विभिन्न रूपों से सुरक्षा प्रदान करता है। यह कानून महिलाओं को दुर्व्यवहार करने वाले परिवार के सदस्यों के खिलाफ कानूनी उपचार और सुरक्षा आदेश लेने की अनुमति देता है। यह अपराधियों के लिए कठोर दंड का भी प्रावधान करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि महिलाओं को उनके अपने घरों में नुकसान से बचाया जाए।
निःशुल्क कानूनी सहायता तक पहुंच
कठिन समय के दौरान, जैसे कि यौन उत्पीड़न या घरेलू हिंसा का सामना करना, महिलाओं को अक्सर वित्तीय और भावनात्मक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं, विशेष रूप से बलात्कार पीड़ितों को मुफ्त कानूनी सहायता मिले। यह अधिकार गारंटी देता है कि महिलाएं अपनी वित्तीय स्थिति की परवाह किए बिना कानूनी सहायता प्राप्त कर सकती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि हर किसी को न्याय पाने का उचित अवसर मिले।