पार्ट ८: कहाँ गए वो दिन?

लेखक :-बिहार प्रदेश के पूर्व महानिदेशक की कलम से
बिहार के एक ज़िले में पुलिस अधीक्षक था। एक गाँव में भीषण डाका पड़ा जिसमें एक ग्रामीण की हत्या भी हुई। उन दिनों, पुलिस के दृष्टिकोण से यह सबसे गंभीर घटना हुआ करती थी। सूचना मिलते ही निकल पड़ा। ग्रामीण स्वाभाविक रूप से उत्तेजित थे। उनका गुस्सा गाँव के ही एक व्यक्ति के विरुद्ध था जिसने डकैतों को बुला कर यह कराया था। स्थानीय भाषा में इसे लाइनर कहते थे। केस के सम्बन्ध में तत्परता से तहक़ीकात मेरे द्वारा प्रारंभ करने पर, ग्रामीणों का गुस्सा कम हो गया था अन्यथा यह गुस्सा पुलिस पर भी बरस सकता था।मैंने तुरन्त उस ग्रामीण के गिरफ़्तारी का आदेश लिखित रूप में पारित जांच के दौरान ही कर दिया क्योंकि पूरा गाँव इस बिंदु पर एक मत था।अगले दिन, स्थानीय विधायक मिलने आए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि मैंने ग़लत आदेश पारित किया है। थोड़ा खीज कर मैंने पूछा कि ग्रामीणों ने, जिन्होंने घटना को प्रत्यक्ष देखा है, की बात मानूँ अथवा आपकी जो पैरवी कर रहे हैं? वे मुझसे अधिक शान्त दिखे। एक सुझाव आया – मुझे अपना प्रतिनिधि देना था, जिसे कोई नहीं जानता था और जो विधायक जी के साथ उनका संबंधी बन कर उसी गाँव में जाएगा। विधायक जी के साथ जो ग्रामीणों की वार्ता होगी, वह लौटकर मुझे बताएगा। विधायक जी का यह सुझाव मुझे नेक लगा। मेरे कार्यालय में एक IAS पदाधिकारी प्रशिक्षण के लिए दो दिन पहले ही आए थे। उन्हें कोई पहचानता भी नहीं था। उनसे मैंने कहा कि आप विधायक जी की गाड़ी में उनके साथ तुरन्त जाएँ और जितनी चर्चा ग्रामीणों के साथ हो, उसे लौटकर बताएँ। उन्होंने तुरन्त अपनी वेश-भूषा एक ग्रामीण की बनाई और दोनों रवाना हो गए।देर शाम IAS पदाधिकारी लौट कर आए। ज्ञातव्य होगा यह पदाधिकारी राज्य के मुख्य सचिव पद तक पहुँचे। उन्होंने जो बताया, वह मुझे झकझोर गया।ग्रामीणों ने मुझे जिस व्यक्ति का नाम बताया था, वह सरासर ग़लत था। वह व्यक्ति उद्दंड था, ग्रामीणों को परेशान करता था, पर उसने इस घटना को अंजाम नहीं दिया था।ग्रामीणों ने अपने विधायक से बताया कि एक स्वर से मेरे सामने उस व्यक्ति का नाम लेने का उन्होंने मन बना लिया था। मुझे अपने आप से ग्लानि हुई। मैंने ज़िले की CID टीम लगा कर, गहरी छान-बीन की और इस तथ्य को सही पाकर, अपने आदेश को स्वयं बदल दिया।
राजनीतिज्ञ न्याय दिलाने में भी सार्थक भूमिका निभा सकते हैं, शर्त यह कि पदाधिकारीगण न्याय के प्रति सजग रहें।