विजया दशमी के दिन नीलकंठ का दर्शन शुभ व भाग्यवर्धक।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, भगवान श्रीराम के आराध्य शिव के प्रिय पक्षी नीलकंठ का विजयदशमी के दिन दर्शन करने का परम्परा है। नीलकंठ का दर्शन आध्यात्मिक रूप से शुभ माना जाता है। नीले रंग की अनुपम छटा वाले इस पक्षी का विजया दशमी के दिन दर्शन करने मात्र से साल भर हर कार्य में विजय मिलती है। इसी मनोकामना के साथ इस बेहद खूबसूरत पक्षी को देखने के लिए श्रद्धालु/भक्तजन बेसब्री से इस दिन का प्रतीक्षा करते हैं। खासकर बिहार राज्य के मिथिलांचल क्षेत्र में नीलकंठ दर्शन के लिए विशेष उत्सुकता रहती है। नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध भात का भोजन करियो, हमरी बात राजा श्रीराम से कहियो। इस गीत से वातावरण गुंजायमान हो उठा। जनश्रुति के अनुसार नीलकंठ भगवान का प्रतिनिधि है। इसीलिए दशहरा पर्व पर इस पक्षी से मिन्न्त कर श्रद्धालुओं ने अपनी बात शिव तक पहुंचाने की फरियाद की। माना जाता है कि विजय दशमी के दिन भगवान श्रीराम ने भी नीलकंठ के दर्शन किए थे। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन नीलकंठ का दर्शन अत्यंत शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है। इसीलिए विजयादशमी के दिन नीलकंठ के दर्शन की परम्परा रही है। ताकि साल भर उनके कार्य शुभ हों। दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन होने पर धन-धान्य में वृद्धि होती है। फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो शुभ होता है। जीत तो जीत है। इसका जश्न मनाना स्वाभाविक है। फिर चाहे बुराइयों पर अच्छाई की जीत हो या फिर असत्य पर सत्य की। विजय दशमी का पर्व भी जीत का पर्व है। अहंकार रूपी रावण पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की विजय से जुड़े पर्व का जश्न पान खाने-खिलाने और नीलकंठ के दर्शन से जुड़ा है। इस दिन हम सत्य मार्ग पर चलने का बीड़ा उठाते हैं। दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है। ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी को व्यक्त करते हैं और यह बीड़ा उठाते हैं कि वह हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेंगे। शास्त्रोंक्त मान्यता है कि पान का पत्ता मान-सम्मान का प्रतीक है। इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है।